भारत में हर रोज करोड़ों यात्री सार्वजनिक परिवहन (public transport) का इस्तेमाल करते हैं। विकासशील भारत में बहुत से लोगों के लिए कार आज भी एक विलास की वस्तु है और अधिकतर लोग इसे नहीं खरीद सकते। निजी वाहन ना होने की वजह से यात्रियों का एक बड़ा भाग सार्वजनिक परिवहन पर निर्भर रहता है। भारत में सार्वजनिक परिवहन की स्थिति और कार्यकुशलता बेहद ही खराब हैं। फिर भी छोटी दूरी की यात्राओं के लिए भारतीय सबसे अधिक बसों का प्रयोग करना पसंद करते हैं। बड़े-बड़े महानगरों में जहाँ हर रोज लाखों यात्री यात्रा करते हैं वहां बस सेवाओं का महत्व और भी अधिक बढ़ जाता है।
अभी तक भारत में चलने वाली सार्वजनिक बसें डीजल (Diesel) या सीएनजी (CNG) को ईंधन के तौर पर इस्तेमाल करती रही हैं। सीएनजी बेशक थोड़ा कम प्रदूषण करती है परंतु आधुनिक भारत के पास अब उससे भी बेहतर विकल्प है और वह है इलेक्ट्रिक बसों (Electric buses) का। इलेक्ट्रिक बसें सिर्फ पर्यावरण की दृष्टि से ही एक बेहतर विकल्प नहीं हैं बल्कि यात्रियों के लिए भी अधिक सुविधाजनक हैं। इलेक्ट्रिक बसें ऊर्जा के लिए विद्युत (electricity) का इस्तेमाल करती हैं जिससे कार्बन डाइऑक्साइड (Carbon dioxide) का उत्सर्जन नहीं होता। संयुक्त राष्ट्र संघ (United Nations) के जलवायु परिवर्तन पर अंतर सरकारी पैनल (Intergovernmental Panel on Climate Change) की एक रिपोर्ट के अनुसार विश्व में होने वाले कार्बन डाइऑक्साइड के उत्सर्जन का लगभग 23% हिस्सा केवल यातायात से होता है। वैश्विक तापन (Global warming) और प्रदूषण से लड़ने के लिए इलेक्ट्रिक वाहनों का प्रयोग बेहद मददगार साबित हो सकता है।
पुणे के भेकराई नगर (Bhekarai Nagar) के बस डिपो वर्ष 2019 में भारत की पहली ऐसी बस डिपो बन गई जो पूर्ण रूप से विद्युतचालित (Electrically operated) है। इस डिपो में 130 से अधिक बसें लोगों की यात्रा को सुगम बनाने के लिए मौजूद हैं। इनमें सफ़र करने वाले यात्रियों ने अपने अनुभवों को साझा करते हुए इन बसों की खूबियाँ गिनाईं। उनके अनुसार डीजल या सीएनजी बसों की बेहद शोर वाली और धूल भरी यात्राओं की अपेक्षा इलेक्ट्रिक बसों की बेहद शांत और स्वच्छ यात्रा बहुत सुखद होती है। ये बसें यूएसबी चार्जिंग पोर्ट्स (USB Charging Ports), स्वचालित दरवाज़ों (Automated doors) और व्हीलचेयरों (wheelchairs) के लिए निर्धारित जगह जैसी आधुनिक सुविधाओं से लैस हैं।
इन बसों का अधिक सुविधाओं से लैस होने का मतलब यह बिल्कुल नहीं है कि लोगों पर इसका मौद्रिक बोझ पड़ेगा। ये बसें पहले वाली तय दरों पर ही किराया वसूल करेंगी। इलेक्ट्रिक बसों के अधिक प्रयोग से भारत का कच्चे तेल (crude petroleum oil) के आयात पर होने वाला खर्चा भी बचेगा। ऊर्जा पर्यावरण और जल पर काउंसिल (Council on Energy, Environment and Water) के एक अध्ययन के मुताबिक यदि भारत 2030 तक कुल वाहनों में 30% इलेक्ट्रिक वाहनों के अपने लक्ष्य को छू पाया तो इससे 1 लाख करोड़ रुपए प्रति वर्ष की बचत होगी जो अभी कच्चे तेल के आयात पर खर्च हो जाते हैं। इलेक्ट्रिक वाहन अपने साथ उद्योगों के विकसित होने के लिए एक नया क्षेत्र भी लाएंगे। सार्वजनिक परिवहन के लिए इलेक्ट्रिक बसों के प्रयोग से बाजार में उनकी मांग बनेगी। नई कंपनियों को बस, उनके इंजन और अन्य हिस्से, तथा चार्जिंग स्टेशन (charging station) आदि विकसित करने का अवसर प्राप्त होगा। इससे कई लोगों को रोजगार भी मिलेगा और औद्योगीकरण से अर्थव्यवस्था में भी एक सकारात्मक बदलाव दिखेगा।
भारत एक विकासशील राष्ट्र है और यहाँ किसी भी बड़े प्रोजेक्ट (project) के लिए वित्तीय परेशानियाँ आना आम बात हैं। इलेक्ट्रिक बसों की शुरुआती लागत बेहद अधिक है। जहां एक सीएनजी बस की कीमत लगभग 85 लाख रुपए है वहीं एक इलेक्ट्रिक बस की कीमत ढाई करोड रुपए है। हालांकि बाद का रखरखाव और प्रति किलोमीटर पर ऑपरेटिंग कॉस्ट (operating cost) तथा प्रदूषण के उत्सर्जन में ये बसें सीएनजी बसों से काफी बेहतर हैं। सीएनजी बसों की अपेक्षाकृत इलेक्ट्रिक बसें चलती भी अधिक समय तक हैं।
शुरुआती कीमत का भार राज्य सरकारों पर ना पड़े इसके लिए निजी कंपनियों का साथ लिया जा सकता है। उदाहरण के तौर पर भेकराई नगर, पुणे की इलेक्ट्रिक बस डिपो। यहाँ निजी कंपनी ऑलेक्टर (Olectre) बसें बनाती है, वही उनके रखरखाव और ड्राइवर को रखने के लिए भी जिम्मेदार हैं। सरकारी तथा निजी सेक्टर की साझेदारी से यह बस डिपो बेहद अच्छी तरह से चल रही है और यात्रियों को यात्रा करने के लिए एक बेहतर विकल्प उपलब्ध करा रही है।
उत्तर प्रदेश का मेरठ शहर में उन चुनिंदा शहरों में है जहां इलेक्ट्रिक बसों को चलाने का प्रयोग किया जा रहा है। यहां अब तक लगभग 50 बसें आ चुकी हैं और 100 आनी अभी बाकी हैं। अधिकारियों का कहना है कि जून 2021 तक ये 50 बसें अपनी सेवाएं प्रारंभ कर देंगी। ये देरी होने का कारण है शहर में कोई चार्जिंग स्टेशन ना होना। उत्तर प्रदेश जनसंख्या के हिसाब से भारत का सबसे बड़ा राज्य है और यहां के उद्योग भी तेजी से विकसित हो रहे हैं। इलेक्ट्रिक वाहनों को बढ़ावा देकर और उसके लिए प्रयत्न कर सरकार पर्यावरण और तरक्की की ओर एक बड़ा सकारात्मक कदम उठा रही है।
भारत के लिए और भी अच्छी बात यह है कि यहाँ इलेक्ट्रिक बसों के आयात की जरूरत नहीं पड़ेगी और इससे कई काफी खर्चा बच जाएगा। क्योंकि अब भारत में कई बड़ी घरेलू कंपनियां जैसे टाटा मोटर्स आदि सरकारों के साथ इस दिशा में अपनी रुचि दिखा रही हैं। अब तक कई बसें नई तकनीकों के साथ बन चुकी हैं जिनमें से कुछ हैं-
हिमाचल प्रदेश की गोल्डस्टोन ईबज़ के सेवन (Goldstone Ebuzz K 7)- यह भारत की पहली बस है जिसे सार्वजनिक यातायात के लिए प्रयोग किया गया है। हिमाचल प्रदेश की सरकार ने इस बस को कुल्लू-मनाली-रोहतांग दर्रे वाले मार्ग पर चलाया है। कुछ अन्य बसें हैं- अशोक लेलैंड (Ashok Leyland) की अशोक लेलैंड वर्सा ई वी (Ashok Leyland Versa E V) और जेबीएम (JBM) की लीथियम आयन बैटरी वाली जेबीएम ईकोलाइफ (JBM Ecolife)।
भारत का लगभग हर बड़ा शहर यातायात जाम की समस्या से जूझ रहा है। दिल्ली, मुंबई और बेंगलुरु जैसे महानगरों का तो और भी बुरा हाल है जहां 4 किलोमीटर की दूरी तय करने में ही लगभग आधा घंटा गुजर जाता है। बेहतर यातायात की सेवाएं न सिर्फ यात्रियों का धन और समय बचाती हैं बल्कि सार्वजनिक परिवहन की ओर उन्हें आकृष्ट भी करती हैं। स्वच्छ ईंधन का उपयोग करने वाली आधुनिक इलेक्ट्रिक बसें इस दिशा में एक बेहद अच्छा विकल्प है।
स्रोत-
• https://bit.ly/3pCXa3F
• https://bit.ly/2OPURO4
• https://bit.ly/3bwxsJs
चित्र संदर्भ:
मुख्य तस्वीर बैंगलोर में इलेक्ट्रिक बसों को दिखाती है। (विकिमीडिया)
दूसरी तस्वीर में भेकराई नगर बस डिपो को दिखाया गया है। (विकिमीडिया)
तीसरी तस्वीर में इलेक्ट्रिक और उनका चार्जर दिखाया गया है। (विकिमीडिया)