आखिर ये बेगम थी कौन जिसके नाम पर मेरठ के मशहूर इलाके के पुल का नाम बेगम पुल पड़ा?
यह जानने के लिये हमें करीब 30 किलोमीटर मेरठ से दूर सरधना नामक जगह पर जाना पड़ेगा जहाँ संगमरमर की कब्र में एक महिला दफ्न है। यह कहानी एक ऐसी महिला की है जिसे समझना किसी पी.एच.डी करने से कम नही है। यह महिला अत्यन्त असुलझी थी तथा उसका इतिहास कई परतों में दबा हुआ है।
समरू के प्रेमी कैप्टन सॉम्बर ने बड़े पैमाने पर ब्रिटिश सैनिकों का कत्ल किया था तथा उसने एक युरोपीय सेना से भी गठन कर लिया था। यही कारण था कि मेरठ में सन् 1803 में मेरठ कैंट की स्थापना की गयी। यह वही समय था जब दिल्ली के मुग़ल साम्राज्य का पतन तेजी से हो रहा था। कालांतर में सॉम्बर को ब्रिटिश ईस्ट ईंडिया से उसके सैन्य टुकड़ी के लिये पैसा भी मिला था परन्तु उसने ब्रिटिश राज को भी ठेंगा दिखा दिया था।
समरू का मुग़ल बादशाह शाह आलम द्वितीय से अच्छा रिश्ता था जिसका पूरा फायदा कैप्टन सॉम्बर उठाना चाहता था। वर्तमान काल के चांदनी चौक का भागिरथ पैलेस मुग़ल बादशाह शाह आलम द्वितीय ने समरू को उपहार स्वरूप में दिया था। सॉम्बर ने सरधना को अपना राज्य स्थापित करने के लिये चुना था जिसका सीधा कारण यह था कि यह गंगा व यमुना दोनो नदियों के मध्य में बसा था तथा हिमालय का तराई क्षेत्र होने के कारण यह स्थान रहने के लिये अत्यन्त सुन्दर व सुगम था।
कैप्टन सॉम्बर को समरू के नाम से जाना जाता था। उसके मृत्यु के बाद सरधना पर बेगम समरू का राज स्थापित हो गया। कैप्टन सॉम्बर की कब्र आगरा में स्थित है। बेगम समरू के कई किस्से आम हुये जिनके अनुसार उसका कई लोगों के साथ रिश्ता बना और टूटा।
वह अत्यन्त रहस्यमयी प्रकार की महिला थी। समय के साथ बेगम समरू वॉरेन हेस्टिंग्स के सम्पर्क में आयी तथा वे मेरठ, सरधना आदि स्थानों पर बड़े पैमाने पर लोगों का धर्म परिवर्तन करवाने लगी थी। सरधना में स्थित बेसेलिका का निर्माण समरू ने ही करवाया था। यह बेसेलिका भारत के सबसे विशिष्ट चर्च में से एक है।
धर्म परिवर्तनों के कारण ही मेरठ में आर्य समाज व अन्य समाजों की स्थापना की गयी। बेगम समरू ने सरधना के अलावा मेरठ के कैंट के बाहर वाले क्षेत्र में कई निर्माण के कार्य करवाए जिसका प्रतिफल है मेरठ का बेगम पुल व अन्य कई कोठियाँ।
बेगम समरू अपने समय की सबसे ताकतवर महिलाओं में से एक थी तथा उसने मुग़ल से लेकर ब्रिटिश शासन दोनो में अपनी पैठ बना कर रखी थी। इसी बेगम समरू के कारण इस पुल का नाम बेगम पुल पड़ा।