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हाल ही में उत्तर प्रदेश सरकार ने इस बंजर होती पहाड़ी को फिर से जीवित करने के बारे में विचार किया। यहां के हरित आवरण को बढ़ाने के लिए पांच प्रकार के पौधे- कदम, तमाला, करीरा, पाकर और पिलखान रोपे जाएंगे। सरकार ने 226 करोड रुपए की पहली किस्त आवंटित कर दी है। परंतु अधिकारियों का कहना है कि यमुना का पानी प्रदूषित और अनुपयोगी होने से ऐसा संभव नहीं है। अब राजस्थान के भरतपुर जिले का पानी यहां पर सिंचाई के लिए प्रयोग किया जाएगा ताकि पहाड़ी को हरित आवरण दिया जा सके। 
हिंदू धर्म में इस पहाड़ी का बेहद खास महत्व है। हिंदू दीवाली के अगले दिन गोवर्धन पूजा करते हैं। पौराणिक कथाओं के अनुसार इस दिन भगवान श्री कृष्ण ने वर्षा के देव इंद्र के घमंड को तोड़कर उन्हें परास्त किया था। कथानुसार कृष्ण ने इंद्र देव को वार्षिक रूप से चढ़ने वाली भेंट के लिए गांव में जोर-शोर से होती तैयारियां देखीं। इसके बारे में उन्होंने नंद बाबा से प्रश्न किये। उन्होंने गांव वालों को भी धर्म के बारे में समझाया। कृष्ण ने कहा कि गांव वाले किसान हैं और उनका कर्तव्य है कृषि करना, यही उनका धर्म भी है। उनका धर्म किसी देव के अहं को खुश करना नहीं है। इंसान को अपना धर्म निभाना चाहिए और प्राकृतिक चीज़ों के लिए पूजा और आडंबर नहीं करना चाहिए। गांव वालों ने कृष्ण से सहमत होकर इंद्र की पूजा नहीं की और उन्हें भेंट नहीं चढ़ाई। क्रोधित इंद्र ने अपने अहंकारवश गांव में भीषण वर्षा कराई और उन्हें डुबोने का प्रयत्न किया। तब श्री कृष्ण ने अपने गांव के निवासियों और पशुओं को बाढ़ से बचाने के लिए गोवर्धन पर्वत को अपनी छोटी उंगली पर ही उठा लिया। इंद्र के प्रकोप का गांव पर कोई असर नहीं हुआ तो आखिर उसने अपनी हार मान कर श्रीकृष्ण को बड़ा मान लिया और अपना अहम त्याग दिया। तब से ही गोवर्धन पर्वत की पूजा की जाने लगी जिसने कृष्ण के साथ मिलकर गांव वालों को भीषण बाढ़ से बचाया था।
