उत्तर प्रदेश की गंगा नहर (the Ganges Canal) से गंगा और यमुना के बीच का दोआब क्षेत्र सिंचित होता है। यह नहर मुख्यतः सिंचाई के लिए प्रयोग की जाती है परंतु कुछ जगह परिवहन के लिए भी इसका उपयोग होता है।
गंगा नहर दो भागों में बांटी गई है- ऊपरी गंगा नहर (Upper Ganges canal) और निचली गंगा नहर (Lower Ganges canal)। ऊपरी गंगा नहर का निकास ‘भीमगोड़ा बैराज’ (Bhimgoda) से हुआ है जो ‘हर की पौड़ी’ हरिद्वार के निकट स्थित है। यह मेरठ, बुलंदशहर से गुज़रकर अलीगढ़ तक पहुंचती है। अलीगढ़ से आगे नहर दो भागों में विभाजित हो जाती है- कानपुर और इटावा शाखाओं में। निचली गंगा नहर- अलीगढ़ में ही नरोरा बैराज से एक शाखा लाकर इसमें जोड़ दी जाती है। यह सेंगर नदी और सिरसा नदी से भी आगे शिकोहाबाद तक पहुंचती है। मैनपुरी जिले में पहुंचकर यह भोगनीपुर शाखा (Bhoganipur Branch) में बदल जाती है।
ब्रिटिश राज में 1837 से 1838 के बीच आगरा में एक भयानक सूखा पड़ा था जिसमें करीब 8 लाख लोगों की जान गई थी। तब ब्रिटिश ईस्ट इंडिया कंपनी (British East India Company) के करों में भी भारी गिरावट आई थी। जिसके बाद से ही ईस्ट इंडिया कंपनी ने नहरों के प्रस्तावों पर विचार करना शुरू कर दिया था। इस नहर की शुरुआत करने का श्रेय कर्नल प्रोबी कॉटली (Proby Cautley) को दिया जाता है। कई मुश्किलों के बाद वे आखिरकार 560 किलोमीटर लंबाई वाली मुख्यधारा का 8 अप्रैल 1854 को उद्घाटन करने में सफल रहे।
1877 में गंगा नहर के निचले हिस्से में बहुत से बदलाव लाए गए। इसमें नरोरा से एक और जलधारा जोड़ी गई जिसे भोगनीपुर शाखा कहा जाता है। इस नहर के बनने से भारत के पहले इंजीनियरिंग कॉलेज ‘कॉलेज ऑफ सिविल इंजीनियरिंग, रुड़की’ (College of Civil Engineering, Roorkee) जो आज ‘आईआईटी, रुड़की’ (IIT, Roorkee) के नाम से जाना जाता है की नींव डाली।
इंजीनियरिंग की दृष्टि से यह नहर एक चमत्कार ही मानी जाती है। इस नहर की बनावट और इस पर बने जल-सेतु बेशक अन्य किसी भी नहर से बेहद अच्छे थे। इसके सुपर मार्ग (super passage) मानव निर्मित ऐसे पहले आश्चर्य थे। नहर के पहले लगभग 32 किलोमीटर तक ऐसे 4 सुपर मार्गों द्वारा नहर अन्य जल स्रोतों से होकर निकलती है। एक जगह तो सूखे मौसम में नहर को गुजारने के लिए एक सुरंग बनी है, जो वर्षा ऋतु में एक दूसरी नहर से लेवल क्रॉसिंग (Level crossing) से होकर गुजरती है। 19वीं सदी में बने इस नहर के ढांचे के कई हिस्सों में बदलाव किया गया है, परंतु इसकी मौलिकता आज भी बरकरार है।
अन्य नहरों की तरह गंगा नहर की भी वार्षिक रूप से साफ सफाई होती है। इस नहर से उत्तर प्रदेश के 15 जिलों में पानी की आपूर्ति की जाती है। परंतु जिसकी सफाई वाले समय में जब यह आपूर्ति बंद हो जाती है तो 15 ज़िलों के लोगों को जल संकट का सामना करना पड़ता है। गाज़ियाबाद और नोएडा जैसे बड़े शहरों में भूमिगत जल की गुणवत्ता खराब होने से उनमें गंगा का जल 90% या कहीं-कहीं 60 से 70% लाकर जलापूर्ति की जाती है। नहर के बंद होने के बाद इन जिलों में पीने के पानी का संकट और बड़ा हो सकता है क्योंकि इनके भूमिगत जल को आर ओ सिस्टम (R.O. System) के प्रयोग के बिना उपयोग करना संभव नहीं है।
नहरों के आसपास बसे शहरों में ऐसे संकट को कम करने के लिए सरकार को दूसरे आपातकालीन विकल्पों को तलाशना चाहिए। वर्षा जल संग्रहण एक अच्छा विकल्प है परंतु इसमें समय और लागत अधिक है। नहरों के जल को और अधिक क्षमता वाले बैराजों और तालाबों में भंडारण कर लेना चाहिए जिसका संकट के समय उपयोग हो सके।
वैश्विक महामारी के समय गंगा नदी तथा इसकी जल धाराओं की स्थिति काफी सुधर गई थी। उद्योगों के बंद होने से इसमें गिरने वाले औद्योगिक अपशिष्ट में काफी कमी आई थी। केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड के आंकड़ों के अनुसार कई निगरानी केंद्रों पर गंगा का पानी नहाने के लिए उपयुक्त माना गया। पहले उत्तराखंड से उत्तर प्रदेश में पहुंचते ही नदी बेहद चिंताजनक रूप से प्रदूषित होती थी। जिससे कई जगह इसका जल नहाने के उपयोग में भी नहीं ला सकते थे। विशेषज्ञों का मानना है कि औद्योगिक जगहों पर भी लॉकडाउन के लगने से नदी के जल की स्थिति बेहद अच्छी हुई है।
संदर्भ:
https://bit.ly/3b1QFm1
https://en.wikipedia.org/wiki/Ganges_Canal
https://bit.ly/376BXJ2
https://bit.ly/2wdBYvF
https://bit.ly/2QkbuPY
चित्र संदर्भ:
मुख्य चित्र में गंगा नहर को दिखाया गया है। (विकिमीडिया)
दूसरी तस्वीर में गंगा की सफाई के लिए गंगा नहर सूखते दिखाया गया है। (विकिमीडिया)
तीसरी तस्वीर नगला कबीर उत्तर प्रदेश में गंगा नहर पर लघु पनबिजली बांध को दिखाती है। (विकिमीडिया)
अंतिम तस्वीर में हरिद्वार का हवाई दृश्य दिखाया गया है। (विकिमीडिया)