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विभिन्न देशों, धर्मों, संस्कृतियों आदि में जन्म के बाद पहली बार सारे बाल कटवाने का अपना विशेष महत्व है। हिंदू धर्म में बालों को पूरी तरह से कटवाने की परंपरा मुंडन के नाम से जानी जाती है। जन्म के बाद सिर पर मौजूद बालों को पिछले जन्मों के अवांछनीय लक्षणों से जुड़ा माना जाता है। इसलिए, बच्चे को पिछले जन्म से आजादी दिलाने और भविष्य का जीवन प्रदान करने के लिए उसका मुंडन करवाया जाता है। ऐसा माना जाता है कि, मुंडन करने से बच्चे का मस्तिष्क और तंत्रिकाएं उचित विकास के लिए उत्तेजित हो जाती हैं। हिन्दू धर्म में माता-पिता की मृत्यु के बाद भी कुछ बालों को छोड़कर पूरे सिर के बाल काट दिये जाते हैं। मलिकू (Maliku) में भी जन्म के बीसवें दिन, बच्चों के सिर मुंडवाए जाते हैं। काटे गये बालों को सोने या चांदी से तौला जाता है, जिसके बाद उसे गरीबों को दान कर दिया जाता है। मंगोलियाई (Mongolian) बच्चों के बाल 2-5 वर्ष के बीच कटवाए जाते हैं। चंद्र कैलेंडर (Calendar) के आधार पर, लड़कों का पहली बार मुंडन विषम (Odd) वर्ष में, जबकि, लड़कियों का सम (Even) वर्ष में कराया जाता है। यहाँ मुंडन करने की परंपरा को दाहा' उर्गेह (Daah' Urgeeh) कहा जाता है, तथा मेहमानों को घर बुलाकर सुन्दर आयोजन किया जाता है। रूढ़िवादी यहूदी लोगों में बच्चे का पहली बार मुंडन तीन साल की उम्र में किया जाता है।
मुंडन के समारोह को यहूदी में अपशेरेनिश (Upsherenish) या अपशेरिन (Upsherin) कहा जाता है। मुस्लिम समुदायों में मुंडन के समारोह को अकीकाह (Aqiqah) के नाम से जाना जाता है। जब बच्चा सात दिन का हो जाता है, तब उसके सारे बाल काट दिए जाते हैं तथा सिर का केसर के साथ अभिषेक करवाया जाता है। इस परंपरा के अंतर्गत कटे बालों के भार के बराबर सोना-चांदी दान कर दिया जाता है। मुंडन की परंपरा व्यापक रूप से अत्यधिक पुरानी नहीं है। ऐसा माना जाता है कि, इसकी शुरुआत ईसा मसीह के शिष्यों से हुई थी, जिन्होंने टोरा (Torah) के उस आदेश का पालन किया, जिसमें बताया गया था कि, व्यक्ति को सिर के चारों ओर के बाल नहीं काटने चाहिए। 7 वीं और 8 वीं शताब्दियों में मुंडन के प्रायः तीन रूप थे, जिनमें ओरिएंटल (Oriental), केल्टिक (Celtic), रोमन शामिल हैं।
संदर्भ: