City Subscribers (FB+App) | Website (Direct+Google) | Total | ||
3168 | 2 | 0 | 0 | 3170 |
***Scroll down to the bottom of the page for above post viewership metric definitions
मेरठ और उसके आसपास व्यापक रूप से पाया जाने वाले अकेशी केचू (Acacia Catechu) के वृक्ष को कच्छ, टेरा जापोनिका (Terra Japonica) के साथ-साथ ब्लैक केचू (Black Catechu) के रूप में जाना जाता है। इसे हिंदी में खैर और संस्कृत में खदिरा कहा जाता है। औषधीय गुणों से भरपूर इस वृक्ष को कैट (Kat) या काचो (Cacho) के नाम से जाना जाता था। यह पेड़ एक बहुत ही महत्वपूर्ण निर्यात उत्पाद हुआ करता था जिसे 16 वीं शताब्दी के प्रारंभ में भारत से चीन (China), फारस (Persia ) और अरब (Arabia) भेजा गया था। इस पेड़ का उपयोग रंगाई और चरमशोधन के उद्देश्य से किया जाता था। 17 वीं शताब्दी में यूरोप (Europe) के देशों में इस वृक्ष को पेश करने का श्रेय जापान (Japan) को जाता है। वहीं यह वृक्ष पूरे भारत में देखा जा सकता है, लेकिन इसको मुख्य रूप से पश्चिमी घाट और हिमालयी पथ के पूर्वी ढलान में पाया जाता है।
यह वृक्ष पर्णपाती है और इसमें छोटे अंकुशाकार वाले कांटे मौजूद होते हैं जो 9 से 12 मीटर की ऊंचाई तक पहुंचते हैं। इस वृक्ष की पत्तियां लगभग 50 जोड़े पत्तों के साथ द्विपक्ष रूप से मिश्रित होती हैं जो पंख की तरह दिखती हैं। पेड़ की छाल भूरे रंग की होती है जो लंबे और संकीर्ण पट्टी में गिर जाती है। साथ ही वृक्ष के फूल पीले रंग होते हैं और बेलनाकार होते हैं। वृक्ष के चपटे और चमकदार फल में आयताकार फली होती है। खैर की रसदार लकड़ी का रंग सफेद पीला होता है। लकड़ी के अर्क को सांचों में ठंडा किया जाता है और सूखे द्रव्यमान को विभिन्न उपयोगों के लिए चमकदार खुरदरे टुकड़ों में तोड़ दिया जाता है।
वहीं वृक्ष के अंत:काष्ठ, फूलों का शीर्ष, शावक टहनी, छाल, फल और वृक्ष के गोंद के अर्क का उपयोग उपभोग के लिए उत्पाद बनाने के लिए किया जाता है। इन अर्क का उपयोग पीड़ानाशक, जीवाणुनाशक, ठंडक, डिटर्जेंट (Detergent), कसैले, मैस्टिक (Masticatory), कफोत्सारक, उत्तेजक और एक प्रदाहनाशक के रूप में किया जाता है। खैर का उपयोग मुंह से पेट की समस्याओं जैसे दस्त, बृहदान्त्र की सूजन (कोलाइटिस - Colitis) और अपच के लिए सबसे अधिक किया जाता है। यह अस्थिसंधिशोथ (Osteoarthritis) से दर्द के लिए मौखिक रूप से लिया जा सकता है और दर्द, बह रहे खून और सूजन के इलाज के लिए प्रयोग किया जाता है। लेकिन इनमें से किसी भी उपयोग का समर्थन करने के लिए सीमित वैज्ञानिक सबूत हैं।
खैर का उपयोग भोजन में भी किया जाता है। लेकिन बड़ी मात्रा में दवाईयों में इसके उपयोग की पर्याप्त जानकारी उपलब्ध नहीं है। एक विशिष्ट संयोजन उत्पाद जिसे फ्लेवोक्सिड (Flavocoxid - लिम्ब्रेल, प्राइमस फार्मास्यूटिकल्स (Limbrel, Primus Pharmaceuticals)) कहा जाता है, जिसमें 12 सप्ताह तक चलने वाले अनुसंधान अध्ययनों में सुरक्षित रूप से खैर का उपयोग किया गया था। हालांकि, चिंताएं हैं कि इस संयोजन उत्पाद से कुछ लोगों में यकृत की समस्याएं हो सकती हैं। यह पार्श्व प्रभाव सभी में नहीं उत्पन्न होता है और यह केवल उन लोगों में हो सकता है जिन्हें इस से एक प्रकार की असहानुभूतिपूर्ण प्रभाव होते हैं।
विशेष सावधानियां और चेतावनी:
1) गर्भावस्था और स्तनपान: खैर गर्भवती और स्तनपान कराने वाली महिलाओं के लिए सुरक्षित है। जब तक अधिक ज्ञात न हो, तब तक बड़ी औषधीय मात्रा से बचना चाहिए।
2) निम्न रक्तचाप: खैर रक्तचाप को कम कर सकते हैं। एक चिंता यह है कि जिन लोगों में पहले से ही निम्न रक्तचाप है, उनमें यह रक्तचाप को बहुत अधिक कम कर सकता है, जिससे बेहोशी और अन्य लक्षण हो सकते हैं।
3) सर्जरी (Surgery): क्योंकि खैर रक्तचाप को कम कर सकते हैं, तो इस बात की चिंता होती है कि यह सर्जरी के दौरान और बाद में रक्तचाप नियंत्रण में हस्तक्षेप कर सकता है। अनुसूचित सर्जरी से कम से कम 2 सप्ताह पहले खैर का उपयोग करना बंद कर दें।
खैर की उपयुक्त खुराक कई कारकों पर निर्भर करती है जैसे कि उपयोगकर्ता की आयु, स्वास्थ्य और कई अन्य स्थितियां। इस समय खैर के लिए खुराक की एक उपयुक्त सीमा निर्धारित करने के लिए पर्याप्त वैज्ञानिक जानकारी नहीं है। साथ ही ध्यान रखें कि प्राकृतिक उत्पाद हमेशा सुरक्षित नहीं होते हैं और मात्रा निर्धारण महत्वपूर्ण होता है। इसलिए उत्पाद के लेबल (Label) पर प्रासंगिक निर्देशों का पालन करना सुनिश्चित करें और उपयोग करने से पहले अपने चिकित्सक या अन्य स्वास्थ्य देखभाल पेशेवर से परामर्श करें।
© - 2017 All content on this website, such as text, graphics, logos, button icons, software, images and its selection, arrangement, presentation & overall design, is the property of Indoeuropeans India Pvt. Ltd. and protected by international copyright laws.