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बकरी पालन भारत के लोकप्रिय व्यवसायों में से एक है, बकरियों को एक सामाजिक प्राणी के रूप में जाना जाता है। भारत की कुल बकरी आबादी 70।25 मिलियन है। यह बेरोजगार किसानों के लिए एक अच्छा रोजगार है, क्योंकि कृषि मौसम पर निर्भर करती है, लेकिन बकरी की फार्म (Farm) पूरे साल निरंतर चलते रहते हैं। उच्च लाभप्रद व्यवसाय होने के कारण बकरी पालन इसका व्यवसाय बढ़ता जा रहा है। जैसे-जैसे भारतीय आबादी बढ़ रही है मांस प्रेमियों की संख्या भी बढ़ती जा रही है, जिसके चलते बकरी की आबादी भी धीरे-धीरे बढ़ रही है। बकरियों से हमें न केवल मांस वरन् दूध, फाइबर (Fiber), और खाद भी प्राप्त होती है, जिनकी बाजार में उच्च मांग है। बकरी को भारत में गरीब आदमी की गाय के रूप में जाना जाता है और यह शुष्क भूमि कृषि प्रणाली में एक बहुत ही महत्वपूर्ण पशुधन है। सीमांत या अवाप्त भूमि अन्य प्रकार के जानवरों जैसे गाय या भैंस, के लिए अनुपयुक्त हैं, लेकिन बकरियों के लिए उपयुक्त हैं।
बकरी पालन भूमिहीन, श्रमिक और सीमांत किसानों के लिए आय का एक मुख्य स्रोत बन गया है। बकरी पालन में भारत का विश्व में पहला स्थान है। भारत में कुल बकरियों की आबादी में उत्तर प्रदेश 11।53% योगदान देता है। ऐसा माना जाता है कि कुल बकरी पालन में 1।5 करोड़ बकरी की आबादी के साथ उत्तर प्रदेश का दूसरा स्थान है। उत्तर प्रदेश में न केवल देशी नस्लों को पाला जाता है बल्कि पड़ोसी राज्य बकरी की नस्लों को भी पाला जाता है। अच्छी बकरी की नस्ल और संरक्षण का प्रसार बकरी पालन का मुख्य उद्देश्य है। मेरठ के निकट मवाना में कई बकरी फार्म हाउस हैं जहां पर विभिन्न नस्लों की बकरियां पायी जाती हैं। जिनमें से कुछ प्रमुख इस प्रकार हैं:
बरबारी बकरी (Barbari Goat Breed): बरबारी एक सुंदर मध्यम श्रेणी की बकरी की नस्ल है। सफेद रंग की इस बकरी के शरीर में सुंदर भूरे धब्बे होते हैं जो की हिरण के जैसी दिखती है। मूल रूप से बरबरी बकरी की नस्ल पूर्वी अफ्रीका (East Africa) के बरबेरा सोमालिया (Berbera Somalia ) की है। भारत में यह उत्तर प्रदेश और पंजाब प्रांतों में विशेष रूप से उत्तर पश्चिमी भारत और पाकिस्तान (Pakistan) में पायी जाती है। मेरठ में सर्वश्रेष्ठ बरबारी बकरी फार्म उपलब्ध हैं। इस नस्ल को इसके मांस उत्पादन और गुणवत्ता के लिए बेहतर माना जाता है। बरबरी बकरियों को इनकी तीव्रता से परिपक्वता के लिए भी जाना जाता है। यह मध्यम आकार की बकरी की नस्ल है जिनके छोटे कान होते हैं, उभरे हुए नुकीले सींग होते हैं और उभरी हुई आँखें होती हैं जो प्राकृतिक रूप से इसकी सुंदरता को बढ़ाती हैं।
जमुनापारी बकरी (Jamunapari Goat): जमुनापारी बकरी की नस्ल मांस और दूध उत्पादन के लिए लाभदायक नस्ल मानी जाती है जो कि उत्तर प्रदेश के इटावा जिले की मूल बकरी की नस्ल है जमुनपारी नस्ल को डेयरी बकरी की नस्ल भी कहा जाता है। इस नस्ल में दूध देने की क्षमता बहुत अच्छी होती है। जमुनपारी बकरी सभी के बीच सबसे लंबी बकरी की नस्ल है। यह नस्ल मेरठ, मथुरा, भिंड और मध्य प्रदेश के मुरैना जिले में भी पाई जाती है लेकिन इसकी शुद्ध नस्ल केवल बटपुरा और इटावा जिले के चकरनामेरुत में पाई जाती है।
उस्मानाबादी बकरी (Osmanabadi goat): उस्मानाबादी बकरी की नस्ल महाराष्ट्र के लातूर और उस्मानाबाद जिले से है। यह लंबे आकार की बकरी है जो सामान्यत: काले रंग की होती है। उस्मानाबादी बकरियाँ अपनी रोग प्रतिरोध क्षमता के लिए जानी जाती हैं, अन्य बकरी की नस्ल की तुलना में उनकी रोग प्रतिरोधक क्षमता अधिक होती है इसलिए इसे वाणिज्यिक बकरी फार्म के लिए अच्छी नस्ल माना जाता है। इसके अलावा दूध देने की क्षमता और प्रजनन इस नस्ल में बहुत अच्छा है आमतौर पर वे दो बार बच्चों को जन्म देते हैं जिनमें जुड़वा बच्चे बहुत आम हैं।
सिरोही बकरी (Sirohi Goat): सिरोही बकरी की नस्ल को बकरी फार्म में पालन के लिए लाभदायक नस्ल माना जाता है। इस बकरी की नस्ल राजस्थान के सिरोही जिले से है। यह मुख्य रूप से मांस उत्पादन के लिए पाली जाती है। सिरोही नस्ल को राजस्थान राज्य के निकटवर्ती शहरों में मुख्य रूप से जयपुर, अजमेर और उत्तर प्रदेश में देखा जा सकता है।
बकरी पालन का व्यवसाय शुरू करने से पहले कुछ ध्यान रखने वाले बिंदु:
प्रशिक्षण लें:
इस व्यवसाय में जाने से पहले आप अपने निकटतम किसी पशुधन पालन प्रशिक्षण केंद्र से बकरी पालन का प्रशिक्षण ले सकते हैं। बकरी पालन व्यवसाय को सफलतापूर्वक चलाने के लिए यह बहुत आवश्यक है। बकरी पालन पर एक प्रशिक्षण से आप बकरी और उनके पालन के तरीकों के बारे में व्यावहारिक ज्ञान प्राप्त कर सकते हैं। आप कुछ बुनियादी और आवश्यक बकरी देखभाल जैसे बकरी रोग, बकरी स्वास्थ्य परीक्षण, बकरियों की प्रत्येक किस्म की नस्लें, उनके घर में आवश्यक स्थान, भोजन, स्वास्थ्य प्रबंधन, बच्चों की देखभाल, गर्भवती बकरियों की देखभाल आदि के अनुसार कर सकेंगे।
बकरी पालन के लिए ऋण और सब्सिडी:
भारत में बड़ी मात्रा में मांस और दूध का उत्पादन होता है। भारत में बकरी पालन करने वाले किसान मुख्यत: आर्थिक रूप से पिछड़े हुए हैं, इनके व्यवसाय को बढ़ावा देने के लिए केंद्र सरकार और राज्य सरकार से सहायता दी जा रही है। किसानों के लिए ऋण और सब्सिडी को रेखांकित करने के लिए कई योजनाएं चलाई गयी हैं। किसानों को नाबार्ड से सहायता मिलती है, परियोजना के फार्म और क्षेत्र के आकार के अनुसार ऋण और सब्सिडी मंजूर की जाती है। अधिक जानकारी के लिए ग्रामीण, सहकारी बैंकों से जानकारी ली जा सकती है या फिर नाबार्ड की आधिकारिक वेबसाइट (Website) पर जा सकते हैं।
बकरी आवास प्रबंधन:
बकरियों के गहन उत्पादन के लिए बकरी आवास व्यवस्था बहुत महत्वपूर्ण है। बकरियों के आवास के लिए बहुत कम साधनों की आवश्यकताएं होती हैं। अधिकतम लाभ के लिए बकरियों की सुविधाओं और आराम को सुनिश्चित करना अनिवार्य है।
1. बकरी के फार्म में वायु-संचालन की अच्छी व्यवस्था होनी चाहिए।
2. बकरी फार्म को साफ और सूखा होना चाहिए।
3. बकरी के फार्म में जल निकासी की अच्छी सुविधा होनी चाहिए।
4. फार्म का निर्माण ऊँचाई वाले स्थान पर किया जाना चाहिए ताकि बाढ़ की स्थिति में इसे हानि ना हो।
5. बारिश का पानी फार्म में नहीं जाना चाहिए।
6. फार्म पर आराम करने के लिए बकरियों के पास पर्याप्त जगह होनी चाहिए।
आवश्यक चीजें और उपकरण खरीदें:
आपको अपनी बकरियों के लिए कुछ उपकरणों की आवश्यकता होती है, जैसे पानी के बर्तन, चारे की टोकरी, दवाइयाँ आदि। अपनी बकरी को अपने फार्म में लाने से पहले सभी आवश्यक उपकरण तैयार कर लें।
चारा प्रबंधन:
बकरी पालन में चारा प्रबंधन प्रमुख भूमिका निभाता है। बकरियों फार्म शुरू करते समय किसान को बकरी पालन का बुनियादी ज्ञान होना चाहिए और बकरियों के लिए चारे की भी व्यवस्था होनी चाहिए। गर्भवती बकरियों और दुधारू बकरियों की अतिरिक्त देखभाल की जानी चाहिए। बकरियों को उम्र और मौसम के अनुसार अलग अलग चारा उपलब्ध कराया जाना चाहिए। हर उम्र और मौसम के लिए बकरियों का चारा बदल जाता है।
गार्डन और किचन (Garden and Kitchen) के अपशिष्ट:
अच्छे आहार के लिए बकरियों को गार्डन और किचन का अपशिष्ट खिलाया जा सकता है। फलों और सब्जियों के अपशिष्ट हिस्सों को इन्हें खिलाया जा सकता है, यह ऊर्जा और पोषक तत्वों का एक अच्छा स्रोत होते हैं।
घास: बकरियों के लिए घास पोषक तत्वों का एक महत्वपूर्ण स्रोत है। बकरियों को खिलाया जाने वाला घास उच्च गुणवत्ता का होना चाहिए। बरीक घास में बड़ी मात्रा में पोषक तत्व निहित होते हैं, इसलिए इसे बकरियों को खिलाया जाना चाहिए। बकरियों को जो घास खिलाई जाती है, वे लेस्पेड्ज़ा (Lespedeza), तिपतिया घास (clover) और अल्फाल्फा (alfalfa) हैं।
अनाज: बकरियों के कुल चारे में 12-16% तक अनाज खिलाया जाना चाहिए। बकरियों को धीरे-धीरे पचने वाला भोजन और पूरक आहार खिलाने से उनका वजन बढ़ता है। बकरियों को दानेदार अनाज खिलाया जाना चाहिए यह कार्बन और ऊर्जा के अच्छे स्रोत होते हैं। बकरियों को जौ, राई, मोइल, जई और मकई जैसा अनाज खिलाया जा सकता है।
चरागाह का निर्माण करें
बेहतर होगा कि आप अपनी बकरियों के लिए चारागाह बना लें। यह आपकी बकरियों की चारा लागत को कम करेगा और बकरियों को स्वस्थ रखेगा। आप आसानी से भूमि पर तार या जाल से बाड़ लगाकर एक चारागाह बना सकते हैं। इसे बनाने से पहले किसी विशेषज्ञ की राय ली जा सकती है।
बाजार का निर्धारण करें
बकरी पालन व्यवसाय शुरू करने से पहले सुनिश्चित करें कि आपके फार्म के पास बाजार उपलब्ध हो। जहां आप अपने जरूरी उत्पादों को आसानी से बेच और खरीद सकते हैं।
बकरियों का अर्थव्यवस्था में योगदान:
रोजगार: अकुशल या कम साक्षर किसानों या कम आय वाले किसानों के लिए यह उनकी आजीविका के स्रोत के रूप में कार्य करती हैं।
भंडारण: बकरियों की भंडारण क्षमता अच्छी होती है क्योंकि वे अपने आप में दूध जमा कर सकती हैं। बकरियों को चलने वाला फ्रिज (walking refrigerator) भी कहा जाता है।
भोजन: बकरी के दूध और मांस की भारत के बाजार में उच्च मांग है, इसे दैनिक दिनचर्या में भोजन के रूप में उपयोग किया जाता है।
खरपतवार नियंत्रण: बकरियों को पालने से खेतों में खरपतवार को नियंत्रित किया जा सकता है।
गोबर और अपशिष्ट पदार्थ: बकरियों के गोबर और अपशिष्ट पदार्थ की बाजार में उच्च मांग है क्योंकि इनका उपयोग कृषि फर्मों में खेत की खाद के रूप में किया जाता है।
फाइबर या खाल: खाल या फाइबर का उपयोग करके हम ऊन, बाल और छर्रों जैसे उत्पादों को तैयार कर सकते हैं।
बकरियों के लाभ:
1. बकरी पालन पर प्रारंभिक निवेश बहुत कम है।
2. बकरियों की पाचन क्षमता अधिक होती है, इसलिए उन्हें कच्चे या किसी भी प्रकार के निम्न गुणवत्ता वाला चारा खिलाया जा सकता है।
3. बकरी का दूध मधुमेह, खांसी, दमा आदि सभी स्वास्थ्य समस्याओं को ठीक करने में सक्षम है साथ ही यह पाचन क्षमता में विकास करता है तथा पौष्टिकता से भरपूर होता है। इसलिए बाजार में इसकी उच्च मांग है।
4. कम उम्र में ही बकरी का मांस तैयार हो जाता है।
5. चूंकि बकरियों पर कोई धार्मिक निषेध नहीं होता है, इसलिए बकरियों को समाज के सभी वर्गों द्वारा समान रूप से अपनाया जाता है।
6. बकरी को बहुत कम लागत में आसानी से पाला जा सकता है। बकरियों के लिए किसी विशेष प्रकार की जलवायु की आवश्यकता नहीं होती है, यह सभी प्रकार की जलवायु को सहन कर सकती हैं।
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