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हालांकि 2020 काफी निराशाजनक रहा था, लेकिन पिछले वर्ष लॉकडाउन (Lockdown) के चलते भारतीय सड़कों पर सड़क दुर्घटनाओं से 20,300 कम मौतें हुईं थी। राज्यों और केंद्रशासित प्रदेशों द्वारा सड़क सुरक्षा पर सुप्रीम कोर्ट की समिति को दिए गए तिमाही आंकड़ों से पता चलता है कि इस वर्ष अप्रैल से जून के बीच 2019 में इसी अवधि में 41,032 की तुलना में सड़क दुर्घटनाओं में 20,732 जानें गईं, जिसमें 49.47% की गिरावट को देखा गया है। कुल मिलाकर, वर्ष के पहले छह महीनों में सड़क की मृत्यु में लगभग 23,400 की गिरावट आई। जबकि लॉकडाउन अधिक कठोर होने पर इनमें से 85% से अधिक लोगों की जान बचाई गई थी, आंकड़ों से यह भी पता चलता है कि पिछले साल की तुलना में लॉकडाउन लागू होने (जनवरी से मार्च) से पहले घातक परिणाम 8% कम हो गए। सिर्फ मृत्यु दर ही नहीं, देश भर में लॉकडाउन के दौरान दुर्घटनाओं में गिरावट आई।
अप्रैल-जून की अवधि में कुल दुर्घटनाओं में 63,000 से अधिक की कमी आई है। पूर्ण संख्या में, उत्तर प्रदेश में लॉकडाउन के दौरान 3,275 से अधिक मृत्यु दर में गिरावट दर्ज की गई, इसके बाद तमिलनाडु (2,193), महाराष्ट्र (1,617), राजस्थान (1,484) और मध्य प्रदेश (1,449) हैं। राष्ट्रीय राजधानी दिल्ली में 217 कम मृत्यु हुईं। लॉकडाउन से पहले भी सड़क दुर्घटनाओं की संख्या में 6,500 से अधिक की गिरावट आई थी, जबकि जनवरी-मार्च 2020 की अवधि के दौरान सड़क दुर्घटनाओं में 4,457 की गिरावट देखी गई। सड़क सुरक्षा विशेषज्ञों ने कहा कि यह मृत्यु, दुर्घटनाओं और चोटों में कमी दो कारणों से हुई: महामारी के कारण लॉकडाउन के प्रावधान और उच्च दंड के साथ संशोधित मोटर वाहन अधिनियम के अधिनियमन के कारण।
वहीं भारत की सड़क दुर्घटनाओं में शामिल 70% की आबादी 18 से 45 वर्ष की आयु के करीब है। यह आंकड़ा यह भी प्रदर्शित करता है कि यहाँ की ज़्यादातर युवा आबादी जो कि वाहन चलाती है, अनुभवी नहीं है, तभी 70% सड़क दुर्घटनाओं में युवा ही शामिल हैं। विश्व बैंक के विवरण पर नजर डाली जाएं तो इसके अनुसार 2014 से 2038 तक 24 साल की अवधि में यदि भारत में सड़क दुर्घटनाओं में होने वाली चोटों और मौतों को रोक दिया जाए तो भारत की सकल घरेलु उत्पाद की क्षमता 7% तक बढ़ जाएगी। 2018 के आंकड़े की बात करें तो भारत में कुल 4,67,044 सड़क दुर्घटनाएं हुईं जो कि 2017 से करीब 0.5% ज्यादा थी। हालांकि एक विवरण के अनुसार भारत में गाड़ियों की संख्या दुनिया की कुल गाड़ियों का 1% ही है परन्तु यहाँ पर दुर्घटना की स्थिति की बात करें तो दुनिया भर की सड़क दुर्घटनाओं में 6% की भागीदार यहां है।
उत्तर प्रदेश की बात करें तो भारत में यहाँ पर सबसे अधिक सड़क दुर्घटनाएं होती हैं। इन दुर्घटनाओं की संख्या कुल 22,256 है। एक नवीन विवरण के अनुसार इस राज्य में औसतन हर दिन करीब 60 सड़क दुर्घटनाएं दर्ज की जाती हैं। हांलाकि यहाँ पर होने वाली दुर्घटनाओं में घातक दुर्घटनाओं की संख्या कम है अतः यह घातक के माप में तीसरे स्थान पर आ जाता है। दुर्घटना में हुयी मौतों में 36% दोपहिया सवार हैं और उसके बाद 15% पैदल लोग हैं। भारत में सड़क दुर्घटना होने के बाद मौत काफी हद तक निश्चित हो जाती है। इन सभी दुर्घटनाओं में तेज़ गति और शराब पी कर गाड़ी चलाने का कारण प्रमुख है। इन कारणों में से एक दुर्घटना के बाद का परिदृश्य भी है जहां दुर्घटना पीड़ितों के जीवन को बचाने वाली आवश्यक कार्रवाई नहीं की जाती है। निम्न कुछ तरीके हैं जो एक दुर्घटनाग्रस्त व्यक्ति के जीवन को बचाने में मदद कर सकता है:
व्यक्ति के अभिघात होने के बाद के पहले घंटे ‘गोल्डन आवर (Golden Hour)’ होते हैं। यदि उचित और समय पर प्राथमिक चिकित्सा दी जाती है, तो सड़क दुर्घटना पीड़ितों के बचने की अधिक संभावना होती है। शीघ्र अनुयोजन भी चोटों की गंभीरता को कम कर सकती है। यह कहा जाता है कि चार मिनट महत्वपूर्ण होते हैं। गोल्डन आवर के अवसर का उपयोग करने में सक्षम होने के लिए, व्यक्ति को प्राथमिक चिकित्सा के बारे में सीखना चाहिए। लोग अक्सर सोचते हैं कि चोटों और बाद में रक्त की हानि अधिकांश मौत का मुख्य कारण है, लेकिन अवरुद्ध वायुमार्ग के कारण ऑक्सीजन (Oxygen) की आपूर्ति की हानि को दुर्घटना मृत्यु के सबसे सामान्य कारणों में से एक के रूप में गिना जाता है।
सड़क दुर्घटना भले ही किसी भी कारण से हुई हो इसमें घायल व्यक्ति की यदि सही समय पर मदद न की जाएं तो घटक परिणामों का सामना करना पड़ सकता है। हालांकि पिछले कुछ वर्षों में सख्त कानून और लंबी पूछताछ के कारण लोग घायल व्यक्तियों की मदद करने से हिचकिचाते थे। इसको देखते हुए नई सड़क सुरक्षा नीति को लागू किया गया। नए सड़क सुरक्षा नीति के अनुसार कोई भी व्यक्ति किसी भी दुर्घटनाग्रस्त व्यक्ति को अस्पताल पंहुचा सकता है या फिर उसकी मदद कर सकता है। और इसके बाद यह नियम उस व्यक्ति को किसी भी प्रकार के उत्पीड़न से बचाता है। दुर्घटनाग्रस्त लोगों की मदद करने और उसे अस्पताल तक पहुंचाने या किसी और प्रकार की मदद करने वाले व्यक्ति को नेक व्यक्ति के नाम से जाना जाता है। एक नेक व्यक्ति वह होता है जो बिना किसी चाह या इनाम के बारे में सोचे किसी दुर्घटनाग्रस्त व्यक्ति की मदद करता है। अच्छा नागरिक होने के लिए हमें सबसे पहले हर संभव कोशिश करें कि नियमों का उलंघन कम से कम किया जाएं।
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