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दुनिया के सबसे बड़े धार्मिक सम्मेलन कहे जाने वाले कुंभ मेले (Kumbh Mela) का आयोजन इस बार मकर संक्रांति(Makara Sankranti) के दिन, हरिद्वार (Haridwar Kumbh 2021) में हो रहा है। मकर संक्रांति के दिन कुंभ स्नान का विशेष महत्व होता है जो कि पौष मास की शुक्ल पक्ष की प्रतिपदा 14 जनवरी से शुरू होगा। हिंदू धर्म में कुंभ मेला एक बहुत ही महत्त्वपूर्ण पर्व के रूप में मनाया जाता है, जिसमें देश-विदेश से सैकड़ों श्रद्धालु कुंभ पर्व स्थल हरिद्वार, प्रयागराज, उज्जैन और नासिक में स्नान करने के लिए एकत्रित होते हैं। इस बार की खास बात ये है कि हजारों साल पुराना यह मेला 12 वर्षों में एक बार आयोजित होता है, लेकिन इस बार कुंभ 12 वर्ष बाद नहीं बल्कि 11 वर्ष बाद लग रहा है। दरअसल, कुंभ का आयोजन ज्योतिष गणना के आधार पर किया जाता है, लेकिन वर्ष 2022 में बृहस्पति ग्रह कुंभ राशि में नहीं होंगे। इसलिए इसी वर्ष 11वें साल में कुंभ का आयोजन किया जा रहा है। आइए उत्सव पर एक नज़र डालते हैं, जैसा कि 1918 में "अभय चरण मुखर्जी", मुइर सेंट्रल कॉलेज, इलाहाबाद द्वारा लिखित "हिंदू उपवास और पर्व" नामक पुस्तक में वर्णित है।
कहा जाता है कि कुंभ मेले की शुरुआत आदि शंकराचार्य नामक (Adi Shankara) ऋषि ने की थी और कुंभ में स्नान का एक प्रमुख सांस्कृतिक महत्व और आध्यात्मिक गौरव है। कुंभ में स्नान करने से कई प्रकार की बाधाओं से मुक्ति मिलती है। प्राचीन हिंदू पौराणिक कथाओं के अनुसार, महाकुंभ मेला एकमात्र ऐसा स्थान है जो मनुष्य को उन सभी पापों से छुटकारा पाने का सुनहरा अवसर देता है जो उन्होंने अपने जीवन में किए हैं। मान्यता है कि इस दिन गंगा में स्नान करने से सारे पापों से मुक्ति मिल जाती है और मोक्ष की प्राप्ति होती है यानी जन्म और पुनर्जन्म के चक्र से मुक्ति मिल जाती है। माना जाता है कि देव-दानवों द्वारा समुद्र मंथन से प्राप्त अमृत कुंभ से अमृत बूँदें पृथ्वी पर चार स्थानों (हरिद्वार, प्रयागराज, उज्जैन और नासिक) पर गिरी थीं। अमृत प्राप्ति के लिए देव-दानवों में परस्पर बारह दिन तक निरन्तर युद्ध हुआ था और देवताओं के बारह दिन मनुष्यों के बारह वर्ष के तुल्य होते हैं शायद इसलिये ये बारह वर्षों के पश्चात मनाया जाता है। इस बार पहला प्रमुख स्नान मकर संक्रांति पर पड़ रहा है, जो प्रथम स्नान को और भी अधिक विशेष बना रहा है। ज्योतिष गणना के अनुसार इस दिन मकर राशि में सूर्य के साथ गुरु, शनि, बुध और चंद्रमा भी मौजूद रहेंगे। कुंभ स्नान से अशुभता और दोषों से भी निजात मिलती है। कुंभ में स्नान, दान और पूजा से जीवन में सुख शांति और समृद्धि आती है।
कुंभ मेला में इस बार 6 प्रमुख स्नान हैं, ये हैं स्नान की प्रमुख तिथियां
• पहला स्नान: 14 जनवरी संक्रांति के दिन होगा।
• दूसरा स्नान: 11 फरवरी को मौनी अमावस्या पर होगा।
• तीसरा स्नान: 16 फरवरी को बसंत पंचमी पर होगा।
• चौथा स्नान: 27 फरवरी को माघ पूर्णिमा की तिथि पर होगा।
• पांचवां स्नान: 13 अप्रैल चैत्र शुक्ल प्रतिपदा पर होगा।
• छठवां स्नान: 21 अप्रैल को राम नवमी पर होगा।
कुंभ में शाही स्नान का विशेष महत्व है| इस बार कुंभ कुल 4 शाही स्नान हैं। जो इस प्रकार हैं-
• पहला शाही स्नान: 11 मार्च शिवरात्रि
• दूसरा शाही स्नान: 12 अप्रैल सोमवती अमावस्या
• तीसरा मुख्य शाही स्नान: 14 अप्रैल मेष संक्रांति
• चौथा शाही स्नान: 27 अप्रैल बैसाख पूर्णिमा
भारतीयों का प्रमुख पर्व मकर संक्रांति अलग-अलग राज्यों, शहरों और गांवों में वहां की परंपराओं के अनुसार मनाया जाता है। इसी दिन से अलग-अलग राज्यों में गंगा नदी में गंगा स्नान का आयोजन किया जाता है। कुंभ के पहले स्नान की शुरुआत भी इसी दिन से होती है। यह वह दिन है जब सूर्य मकर में प्रवेश करता है। यह त्योहार सर्दियों के महीनों के अंत और वसंत की शुरुआत का प्रतीक है। यह त्यौहार सूर्य देव के सम्मान में मनाया जाता है ताकि उनकी ऊर्जा की कृपा से पृथ्वी जीवन बना रहे। इस त्योहार का सबसे खास पहलू यह है कि यह उन कुछ प्राचीन त्योहारों में से एक है जो हिंदुओं द्वारा सौर चक्र के अनुसार मनाया जाता है। महाभारत में माघ मेले का भी उल्लेख किया गया है, इसका मतलब है कि यह त्योहार लगभग 2000 वर्षों से भारत में मनाया जा रहा है। मकर संक्रांति को नये साल का प्रतीक भी माना जाता है,इस दिन भगवान सूर्य दक्षिणायन से उत्तरायण में आते है। मकर संक्रान्ति से पहले सूर्य दक्षिणी गोलार्ध में होता है अर्थात् इसी कारण भारत में रातें बड़ी एवं दिन छोटे होते हैं तथा सर्दी का मौसम होता है। किन्तु मकर संक्रान्ति से सूर्य उत्तरी गोलार्द्ध की ओर आना शुरू हो जाता है, और इस दिन से रातें छोटी एवं दिन बड़े होने लगते हैं तथा गरमी का मौसम शुरू हो जाता है। इस दिन गुड़ और तिल का दान किया जाता है, साथ ही खिचड़ी का दान करने से अक्षय पुण्य की प्राप्ति होती है। मकर संक्रांति के दिन स्नान का भी विशेष महत्व है। इस दिन प्रात:काल उठकर पवित्र नदी में स्नान करने से पुण्य मिलता है। इस दिन प्रयाग (इलाहाबाद) में संगम स्थान पर स्नान को आध्यात्मिक योग्यता से भरा माना जाता है, और एक पुरानी कहावत में है कि ग्रहण के दिन काशी (बनारस) में स्नान करे,मकर संक्रांति के दिन प्रयाग में, और रामनवमी के दिन अयोध्या में स्नान करे। ये तीनों स्नान पूरे वर्ष में सबसे पवित्र हैं।
गंगा,यमुना व सरस्वती नदियों के संगम और स्वार्गिक अमृत से पवित्र भू-भाग प्रयागराज लोकप्रिय कुम्भ मेला के चार स्थानों में से एक है। मकर संक्रांति के दिन प्रयाग में वार्षिक धार्मिक मेले का आयोजन किया जाता है,जिसे आधिकारिक रूप से माघ मेला (Magh Mela) कहा जाता है,जो पूरे एक महीने तक चलता है। प्रयाग में मकर संक्रांति के अलावा माघ मास की अमावस्या,बसंत पंचमी,सप्तमी, एकादशी और पूर्णिमा को भी घाटों में स्नान के लिये भीड़ लगी रहती है। कुम्भ मेला व माघ मेला में आने वाले तीर्थयात्री अपने धार्मिक कार्य करते हैं, जिसका विषद् वर्णन प्रयाग महात्म्य (Prayaga Mahatmya) में है, जिसे मत्स्य पुराण (Matsya Purana) का हिस्सा माना जाता है। ऐसी मान्यता है कि महाभारत काल में भीष्म पितामह ने अपनी देह त्यागने के लिये मकर संक्रान्ति का ही चयन किया था। ऐसा भी कहा जाता है कि इस दिन जप, तप, दान, स्नान, श्राद्ध, तर्पण आदि धार्मिक क्रियाकलापों का विशेष महत्व है, इस अवसर पर दिया गया दान सौ गुना बढ़कर पुन: प्राप्त होता है।
मकर संक्रांति त्योहार विभिन्न राज्यों में अलग-अलग नाम और परंपराओं से मनाया जाता है:
• उत्तर प्रदेश : मकर संक्रांति को खिचड़ी पर्व कहा जाता है। इस दिन सूर्य की पूजा की जाती है और चावल तथा दाल की खिचड़ी खाई और दान की जाती है।
• गुजरात : उत्तरायण (Uttarayan) पर्व के रूप में मनाया जाता है और इस दिन पतंग उत्सव का आयोजन किया जाता है।
• आंध्र प्रदेश और तेलंगाना : संक्रांति के नाम से चार दिन का पर्व मनाया जाता है। लोग नए कपड़े पहनते हैं, वर्ष की फसल के लिए सूर्य देव को धन्यवाद देते हैं और इस अवसर पर शानदार दावत तैयार करते हैं।
• तमिलनाडु : किसानों का ये प्रमुख पर्व पोंगल (Pongal) के नाम से मनाया जाता है। घी में दाल-चावल की खिचड़ी पकाई और खिलाई जाती है, जिसे ताजे दूध और गुड़ के साथ उबाला जाता है।
• महाराष्ट्र : महाराष्ट्र में मकर संक्रांति तीन दिनों से अधिक मनाई जाती है। इस दिन लोग तिल के लड्डू खाते हैं और एक दूसरे को भेंट देकर शुभकामनाएं देते हैं।
• पंजाब : एक दिन पूर्व लोहड़ी (Lohri) पर्व के रूप में मनाया जाता, धूमधाम के साथ समारोहों का आयोजन किया जाता है।
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