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रंग-बिरंगी मूर्तियां (Colorful Sculptures), चमचमाते आभूषण (Glittering Jewelry), मिट्टी और अन्य धातुओं (Metals) से बने बर्तन (Pottery), आदि हमेशा से ही भारतीय बाज़ारों (Indian Markets) की शोभा बढ़ाते आए हैं। छोटे-छोटे गांवों, कस्बों और कई शहरों में मेले (Fairs) और त्योहारों (Festivals) के दौरान विभिन्न प्रकार की कलाकृतियाँ (Artifacts), हस्तशिल्प कलाएं (Handicrafts), लैंप (Lamp) व दिये (Diyas), मिट्टी के खिलौने और बर्तनों की खरीद (Purchase) दोगुनी हो जाती है। प्रचीन समय से ही लोग घरों में मिट्टी के घड़े (Mud Pots), गमले, कप इत्यादि बनाते थे और बाज़ारों में बेचते थे। आज के समय में जहाँ एक ओर आधुनिक तकनीक (Modern Technology) से मशीनों के द्वारा कम समय में और कुशलता से कई प्रकार की वस्तुओं का निर्माण किया जाता है, वहीं दूसरी ओर पर्यावरण (Environment) की रक्षा और पुराने तौर-तरीकों के पुन: चलन में आने से लोग हाथ से बनी वस्तुओं को न सिर्फ इस्तेमाल करने बल्कि सजावट (Decoration) के लिए भी ख़ूब पसंद करते हैं। भारत के कई क्षेत्रों में आज भी कई सौ साल पुरानी अलग-अलग धातुओं से बनी वस्तुएँ मिलती हैं जो वर्षों पहले उस सभ्यता के अन्त के बाद कहीं विलुप्त हो गईं थी और अब खोजकर्ताओं द्वारा ढूंढ ली गई हैं। उदाहरण के लिए प्राचीन चाँदी के आभूषण (Silver Jewelry) और तांबे (Copper) व पीतल (Brass) के बर्तन (Utensils), कॉपर-सिल्वर की तलवारें (Swords) आदि।
यह सभी वस्तुएँ इस बात का प्रमाण होती हैं कि प्राचीन सभ्यता (Ancient Civilization) में लोग कितने उन्नत थे, उनका रहन-सहन कैसा था और वे कैसे जीवनयापन करते थे। मैसोपोटामिया (Mesopotamia), मिस्र की ममी (Mummies of Egypt), मोहन जोदड़ो (Mohenjo-daro) आदि सभ्यताओं का पता भी उस समय की खोजी गई वस्तुओं से ही चला है। भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण (Archaeological Survey of India) ने पहली बार उत्तर प्रदेश (Uttar Pradesh) राज्य के बाघपत (Baghpat) जिले के एक गांव सिनौली (Sinauli Village) में ज़मीन में दबे तांबे-कांस्य युग (Copper-Bronze Age) लगभग 2000-1800 ईशा पूर्व की अकल्पनीय (unbelievable) वस्तुएँ खोज निकाली हैं। इन वस्तुओं में कुछ कंघे (Combs), धातु की तलवारें (Metal Swords) और खंजर (Daggers), आभूषण और तीन राजशाही ताबूत (Monarchy Coffins) शामिल हैं।
भारत के सबसे बडे़ राज्यों में से एक मध्य प्रदेश (Madhya Pradesh) जहाँ के विशाल वन-भंडारों में कई लाभदायक वृक्ष और अच्छी क़िस्म की मिट्टी पाई जाती है। यहाँ के हस्तशिल्प (Handicraft), कपड़ा और कलीन बुनाई (Carpet Weaving), काँच के मोती (Glass Beads), शंख (Shell), विभिन्न धातुओं के आभूषण, मोतियों से बने शिल्प (Bead Crafts) इत्यादि पूरे देश में ही नहीं बल्कि पूरे विश्व में प्रसिद्ध हैं। टेराकोटा (Terracotta) एक मिट्टीयुक्त चमकदार सेरेमिक (Ceramic) होता है। इसका प्रयोग देश के कई हिस्सों में शिल्पकलाओं, बर्तन (Pottery), खिलौने (Toys), मूर्तियां (Figurines) आदि बनाने के लिए किया जाता है। मध्य प्रदेश राज्य के बस्तर (Bastar) में टेराकोटा मिट्टी से बने पारंपरिक और समृद्ध बर्तन विश्वभर में प्रचलित हैं। ऐसा माना जाता है कि इस मिट्टी से बनी वस्तुएँ 2600–1700 ईशा पूर्व की सिंधु घाटी सभ्यता (Indus Valley Civilization) के खोजे गए अवशेषों में प्राप्त हुई हैं। इस बात से ही इस मिट्टी से बने सामान की प्राचीनता का अनुमान लगाया जा सकता है। छोटे-छोटे गाँवों में पीढ़ियों से यह परंपरा (Tradition) न केवल आजीविका (Livelihood) के उद्देश्य से बल्कि एक कला (Art) के रूप में भी चली आ रही है। हालाँकि यह शिल्पकलाऐं घर-घर में पारंपरिक तरीके (Traditional Method) से बनाई जाती हैं परंतु उच्च कोटि के सजावट के सामान और अन्य आधुनिक वस्तुओं (Modern Items) का व्यापार पूरे देश और कई अन्य देशों में भी बडे़ पैमाने (Large-scale) पर होता है। बड़े-बड़े होटलों (Hotels), मौल (Malls) और संग्रहालयों (Museum) आदि में इस प्रकार की कलाकृतिओं को देखा जा सकता है। टेराकोटा अन्य विलुप्त हुई शिल्प कलाओं से पूरी तरह भिन्न है, क्योंकि समय के साथ बाज़ार में इसकी माँग (Demand) और भी बड़ी है। भारतीय शिल्पकारों को चीनी मिट्टी (Ceramics), थुकल और टैग्रा (Thukral & Tagra), बेनिथा पेरियाल (Benitha Perciyal), कोरियाई जुरे किम (Korean Juree Kim) आदि कई किस्मों की मिट्टी की वस्तुएँ बनाने में महारत हासिल है। गुजरात (Gujarat) राज्य के पुरुष और महिलाएँ अपने हाथों से बनाए गए साथ ही पेंट (Paint) और डि़जाइन (Design) किए गए उत्पादों (Products) के लिए जाने जाते हैं। इसके अलावा तमिलनाड़ु (Tamil Nadu) के अय्यर पंथ (Aiyanar Cult) में टेराकोटा मिट्टी से बने बर्तनों का विशेष महत्व है। राजाधानी दिल्ली (Capital Delhi) के मिट्टी के बर्तन वहाँ की परंपरा का हिस्सा है, जिनके लिए वहाँ विशेषकर सुंदर नीले रंग (Blue Color) का प्रयोग किया जाता है, जो टेरकोटा मिट्टी को एक अलग सुंदरता प्रदान करता है।
हरियाणा (Haryana) राज्य में बने हुक्का (Hukka) और धूम्रपान पाइप (Smoking Pipes), पानी के बर्तन, लैंप आदि की हर साल ख़ूब बिक्री होती है। ऐसे ही एक और राज्य उड़ीशा (Orissa) की आदिवासी परंपरा में भी टेराकोटा के बने बर्तनों (Utensils), छत की टाइलों (Roof Tiles), कप (Cups), गमले (Pots), सजावट का सामान इत्यादि का बहुत चलन है जिसे वहाँ के लोग बनाते हैं और बाज़ारों में भी बेचते हैं। इससे यह सिद्ध होता है कि भारत देश के लगभग हर शहर में टेराकोटा सहित विभिन्न प्रकार की मिट्टी से बने सामानों का परंपरागत महत्व है जो भारतीय संस्कृति की पहचान है। अत: यह सरकार (Government) के लिए राष्ट्रीय आय (National Income) में वृद्धि करने का एक अच्छा अवसर (Opportunity) है। यदि अंतरराष्ट्रीय बाज़ारों (International Market) में इन वस्तुओं को पहुँचाने के और अधिक साधन उपलब्ध हों तो देश के हर शहर (City), गांव (Village) तथा कस्बों (Towns) तक रोजगार के सशक्त साधन उपलब्ध हो सकेंगे और भारतीय शिल्पकारों को एक अलग पहचान मिलेगी।