नृत्य (Dance), संगीत (Music), पाक-कला (Cooking), चित्रकारी (Painting), तलवारबाजी (Swordplay), निशानेबाजी (Shooting), युद्ध-कौशल (War-Skills) और कोई विशेष अस्त्र-शस्त्र विद्या आदि न जाने कला (Art) के कितने रूप होते हैं। इन्हें सीखने में और इनमें पारंगत (Expert) होने में एक कलाकार (Artist) को वर्षों का समय लग जाता है। किसी भी कला को कुशलता से (Efficiently) निष्पादित (Execute) करने के लिए ध्यान (Attention), धैर्य (Patience), अनुशासन (Discipline) और अभ्यास (Practice) की विशेष रूप से आवश्यकता होती है। युद्ध एवम् अस्त्र-शस्त्र कला प्राचीन काल (Ancient Times) से ही मनुष्य के जीवन के अभिन्न अंग रहे हैं। राजतंत्र (Monarchy) के समय हर बालक फिर चाहे वह राजा का उत्तराधिकारी (King's Heir) हो या भविष्य में बनने वाला सैनिक (Soldier) को इसकी शिक्षा बचपन से ही दी जाती थी। कई राज्यों में स्त्रियों को भी तलवारबाजी आदि का ज्ञान दिया जाता था ताकि समय आने पर वह अपनी और अपने राज्य की रक्षा कर सकें। यहि कारण है कि यह विद्या आज भी हमारे पारंपरिक संस्कृति (Traditional Culture) की पहचान बनीहुई हैं। चक्का-भाला, तीर-कमान, तलवार इत्यादि इन शस्त्रों के कुछ उदाहरण हैं। ऐसा ही एक और शस्त्र उरूमी (Urumi) है। इसे चुट्टुवल (Chuttuval) के नाम से भी जाना जाता है। यह लोहे की चाबुक जैसी (Iron Whip) दिखने वाली और धातु (Metal) की बनी धारदार ब्लेड (Blade) जैसी होती है किंतु अधिक लचीली तलवार (Flexible Sword) होती है। ब्लेड की लंबाई (Length) आमतौर पर 4 फ़ीट (Feet) से 5.5 फ़ीट तक और चौड़ाई लगभग 2.5 सेमी (0.98 इंच) होती है। ब्लेड एक अंगूठा-रक्षक (Thumb-Guard) और एक जोड़-रक्षक (Knuckle-Guard) के साथ जुड़ी होती है। यूरुमी का उपयोग करते समय इसे उचित तरिके से पकड़ने से लेकर वार करने तक की तकनीक का सही प्रकार से प्रयोग करना अति आवश्यक है। इसे पकड़ने के लिए कम बल (Force) के साथ पकड़ा जाता है और एक फ्लेल आर्म (Flail Arm) की तरह संभाला जाता है। इसके अलावा इसे चलाते समय विशेष रूप से स्पिन (Spins) और फुर्तीली (Agile) का अभ्यास किया जाता है। युद्ध में उरूमी का उपयोग करने के लिए उचित ज्ञान होना अति आवश्यकता है अन्यथा यह बहुत खतरनाक हो सकती है। इस तलवार का अस्तित्व (Existence) प्राचीन संगम काल (Sangam Period) से माना जाता है। इस शस्त्र की उत्पत्ति भारत (India) के केरल (Kerela) राज्य में हुई थी। यह तलवार एक ब्लेड वाली और एक से अधिक ब्लेड वाली भी होती है। श्रीलंका (Shreelanka) में इस तलवार का एक रूप 32 ब्लेड वाला भी होता है।
भारत (India) और कई अन्य देशों में मार्शल-आर्ट (Martial Art) का बहुत चलन है। इसके अंतर्गत आक्रमण (Attack) और बचाव (Defense) के कई तरीके सिखाए जाते हैं। उरूमी तलवार का प्रयोग करना भारतीय मार्शल आर्ट जैसे कलारीपयट्टू (Kalaripayattu) में विशेष रूप से सिखाया जाता है। हालाँकि उरूमी का उपयोग युद्ध में पारंपरिक (Traditional) रूप से नहीं होता है लेकिन कला के प्रदर्शन की दॄष्टि से यह एक मुख्य हथियार है। यह जितना रोचक दिखाई पड़ता है उतना ही हानिकारक (Dangerous) भी हो सकता है। इस कला को सीखते समय विशेष रूप से ध्यान देने की आवश्यकता होती है अन्यथा यह विरोधी से ज्यादा स्वयं (योद्धा) को क्षति पहुँचा सकती है।
कलारीपयट्टू (Kalaripayattu)
भारतीय मार्शल आर्टस पूरे विश्व में प्रचलित है, इसमें प्रयोग किए जाने वाले अस्त्र-शस्त्र (Weapon) और उनको इस्तेमाल करने की अद्वितीय तकनीक (Unique Technique) कई वर्षों से इसकी पहचान हैं। कलारीपयट्टू (Kalaripayattu) जिसे आम भाषा में कलारी (Kalari) भी कहा जाता है प्रचीन भारतीय मार्शल आर्टस में से एक है। ऐसा माना जाता है कि यह तीसरी शताब्दी ईसा पूर्व से अस्तित्व में है और आज भी यह अपनी पौराणिक पहचान (Traditional Identity) बनाए हुए है। इस मार्शल आर्ट में हिंदू धर्म के विभिन्न अनुष्ठानों (Rituals) का प्रदर्शन सुंदरता से किया जाता है। इसमें उरूमी तलवार का कुशलता से उपयोग करना शामिल है। भारतीय मार्शल आर्ट और उरूमी तलवार दोनो ही हिंदू धर्म (Hinduism) में विशेष महत्व (Special Significance) रखते हैं। इसकी प्रस्तुति (Presentation) को ईश्वर की आराधना (Worship) के समान माना जाता है। यही कारण है कि मार्शल आर्ट सीखने (Learn) में और ऊरूमी चलाने में महारत हासिल करने के लिए व्यक्ति को कई वर्षों का समय लग जाता है, तब कहीं जाकर क्षण भर में वार (Fight) और बचाव (Defend) करने का कौशल उस व्यक्ति में उजागर होता है। आज के समय में भी यह कला हमारे जीवन में विशेष महत्व रखती है और भविष्य में भी आने वाली पीढ़ी इस प्राचीन धरोहर (Ancient Heritage) को संजोए रखेगी।
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