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भारत उन 12 देशों में से एक है, जहां अत्यधिक जैव-विविधता पायी जाती है। इसलिए इसे अपनी समृद्ध जैव विविधता के लिए विशेष रूप से जाना जाता है। भारत का भौगोलिक क्षेत्र मध्य हिंद महासागर क्षेत्र का एक अभिन्न अंग है, जिसमें अरब सागर, बंगाल की खाड़ी और हिंद महासागर जैसे तीन अलग-अलग समुद्री पारिस्थितिक तंत्र क्षेत्र शामिल हैं। भारत 20.2 लाख वर्ग किलोमीटर के एक विशेष आर्थिक क्षेत्र, 8000 किलोमीटर से अधिक के तट और तटीय पारिस्थितिकी प्रणालियों की एक किस्म के साथ संपन्न है। भारत में ज्ञात समुद्री मछली प्रजातियों की अनुमानित संख्या 2443 है, जिन्हें 230 परिवारों में वितरित किया गया है। प्रकृति संरक्षण के लिए अंतर्राष्ट्रीय संघ (International Union for Conservation of Nature - IUCN) (2014) के अनुसार, इनमें से 50 प्रजातियां संकटग्रस्त (उनमें से 6 गंभीर रूप से संकटग्रस्त, 7 संकटग्रस्त और 37 संवेदनशील हैं) हैं। भारत में लगभग 13,000 समुद्री प्रजातियाँ दर्ज की गयी हैं तथा यहां की तटरेखा भी लगभग 2500 लाख लोगों की आजीविका चलाने में सहायता करती है। समुद्री और तटीय पारिस्थितिकी प्रणालियों की पारिस्थितिक सेवाओं का भारत की अर्थव्यवस्था के विकास में भी महत्वपूर्ण योगदान है। भारत में समुद्री वनस्पतियों की विविधता को देंखे तो, यहां समुद्री शैवाल की 844 प्रजातियाँ (समुद्री खरपतवार), जो 217 वंश (Genera) से सम्बंधित हैं, समुद्री घास की 14 प्रजातियाँ और मैंग्रोव (Mangroves) की 69 प्रजातियाँ शामिल हैं। वहीं जीवों की बात करें तो, भारतीय तटीय जल में स्पंज (Sponges) की 451 प्रजातियां, कोरल (Corals) की 200 से अधिक प्रजातियां, क्रस्टेशियन (Crustacean) की 2900 से अधिक प्रजातियां, समुद्री मोलस्क (Molluscs) की 3370 प्रजातियां, ब्रायोज़ोअन (Bryozoans) की 200 से अधिक प्रजातियाँ, इचिनोडर्म (Echinoderm) की 765 प्रजातियाँ, ट्यूनिकेट्स (Tunicates) की 47 प्रजातियां, 1300 से अधिक समुद्री मछलियां, समुद्री सांपों की 26 प्रजातियां, समुद्री कछुओं की 5 प्रजातियां और समुद्री स्तनधारियों की 30 प्रजातियां (डुगोंग (Dugong), डॉल्फ़िन (Dolphins), व्हेल (Whales) आदि) शामिल हैं। इसके अलावा, समुद्री पक्षियों की एक विस्तृत विविधता को भी तट के आसपास देखा जा सकता है।
हालांकि, जीव जंतुओं और वनस्पतियों की यह घनी विविधता भारत की जैव विविधता को समृद्ध बनाती है, किंतु ऐसे अनेक कारण हैं, जिनकी वजह से इस विविधता को अत्यधिक नुकसान का सामना करना पड़ रहा है। इन कारणों में मुख्य रूप से मानव गतिविधियां शामिल हैं, जो इस समृद्ध विविधता के लिए नुकसान का कारण बन रही हैं। इन गतिविधियों में प्रजातियों पर अत्यधिक निर्भरता, आवास का नुकसान, संबंधित विनाशकारी हार्वेस्टिंग (Harvesting) पद्धतियां, आक्रामक विदेशी प्रजातियों का प्रसार, कृषि, घरेलू और औद्योगिक अपशिष्टों के कारण होने वाले प्रदूषण का प्रभाव, समुद्र में होने वाला तैलीय प्रदूषण, सार्वजनिक गंदे नाले आदि शामिल हैं। इसके अलावा जलवायु परिवर्तन भी जैव विविधता के नुकसान का कारण बन रहा है।
इन सभी कारकों ने मछलियों की जलीय प्रजाति को अत्यधिक प्रभावित किया है। केंद्रीय समुद्री मत्स्य अनुसंधान संस्थान (Central Marine Fisheries Research Institute) द्वारा किये गये एक अध्ययन के अनुसार 2016 में मछलियों की कुल 709 प्रजातियां दर्ज की गयी, जबकि, 2015 में यह संख्या 730 थी। जलीय पारिस्थितिक तंत्र के समुदायों में अपने कार्यात्मक महत्व के कारण जलीय विविधता का संरक्षण अत्यंत आवश्यक है। विविधता जहां, जलीय पारिस्थितिक तंत्र के संतुलन का संकेतक है वहीं, मानवता के अस्तित्व के लिए भी अत्यधिक महत्वपूर्ण है। एक प्रजाति का विलोपन अन्य प्रजातियों को भी प्रभावित करता है और श्रृंखला प्रतिक्रिया के माध्यम से अधिक प्रजातियों के विलुप्त होने में तेजी ला सकता है। इसलिए, भविष्य में समुद्री जैव विविधता के सतत उपयोग को बनाए रखने के लिए इससे सम्बंधित प्रबंधन और संरक्षण उपायों की अत्यधिक आवश्यकता है। जलीय विविधता के संरक्षण के लिए स्टॉक संवर्धन (Stock enhancement) और समुद्री रैंच (Ranch) को एक प्रभावी उपाय माना जा रहा है। समुद्री स्टॉक संवर्धन मछली पालन प्रबंधन का एक अभिन्न अंग है जिसमें घटते समुद्री मछली स्टॉक को बढ़ाने या पुनर्स्थापित करने के लिए सुसंस्कृत (Cultured) मछलियों को समुद्र में निस्तारित किया जाता है। इसी प्रकार के अनेक प्रयास जीव-जंतुओं और वनस्पतियों की इस जलीय विविधता के लिए किए जा रहे हैं, ताकि इन्हें भविष्य के लिए संरक्षित किया जा सके।
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