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मेरठ में विविध प्रकार की पक्षी प्रजातियों को देखा जा सकता है, जिनमें काकातुआ (Cockatoo) और मैकॉ (Macaw) भी शामिल हैं। मैकॉ नई दुनिया के तोतों का एक समूह है, जो लंबी पूंछ वाले और अक्सर रंगीन होते हैं। इन्हें या तो पालने के लिए पसंद किया जाता है या फिर एक साथी तोते के रूप में। कई अलग-अलग सिटेसिड्डी (Psittacidae – वास्तविक तोते) वंश में से, छह को मैकॉ के रूप में वर्गीकृत किया गया है, जिनमें आरा (Ara), एनोडोरिन्चस (Anodorhynchus), सिनोप्सिट्टा (Cyanopsitta), प्रिमोलियस (Primolius), ऑर्थोप्सिटाका (Orthopsittaca) और डायोप्सिटाका (Diopsittaca) शामिल हैं। मैकॉ, मध्य अमेरिका (America) और उत्तरी अमेरिका (केवल मैक्सिको - Mexico), दक्षिण अमेरिका और पूर्व में कैरेबियन (Caribbean) के मूल निवासी हैं। इनकी अधिकांश प्रजातियां वनों से जुड़ी हैं, विशेष रूप से वर्षावन से, लेकिन अन्य प्रजातियां पेड़ वाले क्षेत्रों को भी पसंद करती हैं। ये आनुपातिक रूप से बड़ी चोंच, लंबी पूंछ और हल्के रंग वाले तोते होते हैं। अधिकांश जंगली मैकॉ संकटग्रस्त स्थिति में हैं, तथा उनमें से कुछ विलुप्त हो चुके हैं। मैकॉ कई प्रकार के खाद्य पदार्थ खाते हैं, जिनमें बीज, सुपारी, फल, पत्ते, फूल, तने आदि शामिल हैं। मौसमी रूप से उपलब्ध खाद्य पदार्थों की खोज में कुछ बड़ी मैकॉ प्रजातियां व्यापक रूप से 100 किलोमीटर से भी अधिक लंबा सफर तय करती हैं। मैकॉ की एक मुख्य विशेषता यह है कि, ये तोते जब खाद्य पदार्थों में मौजूद विषैले पदार्थों का सेवन करते हैं, तब वे इन्हें पचाने या जहर के असर को खत्म करने के लिए नदी के किनारे मौजूद चिकनी मिट्टी का सेवन करते हैं। पश्चिमी अमेज़ॅन (Amazon) में सैकड़ों मैकॉ और अन्य तोते लगभग दैनिक आधार पर मिट्टी का उपभोग करने के लिए नदी के तट पर उपस्थित होते है।
मेरठ में पायी जाने वाली अन्य पक्षी प्रजाति काकातुआ, कैकटुइडि (Cacatuidae) परिवार से सम्बंधित है, जिन्हें अपनी कलगी और घुमावदार चोंच द्वारा पहचाना जाता है। उनके पंख अन्य पक्षियों की तुलना में कम रंगीन, मुख्य रूप से सफेद, ग्रे (Gray) या काले रंग के होते हैं तथा कलगी, गाल और पूंछ रंगीन होती है। काकातुआ प्रायः बीज, कंद, फल, फूल और कीड़े खाना पसंद करते हैं तथा अक्सर बड़े झुंडों में अपने भोजन को खाते हैं। इसकी अनेक प्रजातियां निवास स्थान के नुकसान का सामना कर रही हैं, क्यों कि, बड़े परिपक्व पेड़ों, जहां ये निवास करते हैं, को अधिकाधिक काटा जा रहा है। इसके अतिरिक्त, कुछ प्रजातियों ने मानव परिवर्तनों के लिए अच्छी तरह से अनुकूलन किया है और उन्हें कृषि कीट के रूप में जाना जाता है। काकातुआ पक्षियों को पालना बहुत अधिक पसंद किया जाता है, किंतु उनकी जरूरतों को पूरा करना मुश्किल है। इन पक्षियों के अवैध व्यापार ने जंगली प्रजातियों की गिरावट में अत्यधिक योगदान दिया है। मैकॉ और काकातुआ पक्षियों की मुख्य विशेषता यह है कि, इनकी जीवन अवधि अन्य जीवों की तुलना में अधिक होती है। केवल ये दोनों ही नहीं, बल्कि ऐसे अनेक पक्षी हैं, जिनकी जीवन अवधि अन्य जीवों या स्तनधारियों से अधिक होती है। ऐसा माना जाता है कि, अपनी बढ़ी हुई चयापचय प्रक्रियाओं के मद्देनजर पक्षियों ने अपने शरीर में एक विशेष तंत्र विकसित किया है, ताकि उनका जीवन काल बढ़ सके। जीवन अवधि बढ़ने का पहला प्रमुख कारण तो यह है कि, अपनी उड़ने की क्षमता के कारण वे धरातल पर मौजूद शिकारियों से बच जाते हैं। इसके अलावा कुछ हालिया आंकड़े यह बताते हैं कि, जो जीव नियमित रूप से व्यायाम करते हैं, वे अपेक्षाकृत अधिक जीवित रहते हैं। उड़ान के लिए आवश्यक ऊर्जा बढ़ने के बावजूद पक्षियों के माइटोकॉन्ड्रियल डीएनए (Mitochondrial DNA) में ऑक्सीडेटिव (Oxidative) क्षति का स्तर कम होता है। यह चयापचय प्रक्रियाएं आम तौर पर मुक्त कणों का उत्सर्जन करती हैं और उन्हें कोशिकीय घटकों विशेष रूप से कोशिका झिल्ली से जोड़ती हैं। इस प्रकार यह प्रक्रिया झिल्ली की उम्र को बढ़ाने और उनके कम कार्य करने का कारण बनती है, जिससे पक्षी अपेक्षाकृत अधिक जीवित रहते हैं। मैकॉ भी अपने अनुमानित जीवन काल से लगभग चार गुना अधिक जीते हैं। दुनिया के ऐसे पक्षी जिनकी जीवन अवधि सबसे लंबी मानी जाती है, उनमें कॉकी बेनेट (Cocky Bennett), चार्ली (Charlie), फ्रेड (Fred), पोंचो (Poncho), कुकी (Cookie), ग्रेटर (Greater), थाओ (Thaao) आदि शामिल हैं।