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मनोरंजन हमारे जीवन का एक अभिन्न अंग है। वर्तमान समय में मनोरंजन के सैकड़ों साधन उपलब्ध हैं परंतु प्राचीन काल में जब आधुनिक विकास नहीं हुआ था तब भी मनोरंजन को जीवन का एक आवश्यक भाग माना जाता था। कुश्ती (Wrestling), खेल (Sports), नृत्य-नाटिका (Dance), नाटक (Drama) इत्यादि रंगारंग कार्यक्रम लोगों के लिए मनोरंजन के प्रमुख साधन थे। जोकि आज भी देश और दुनिया के कई हिस्सों में अपनी पारंपरिक पहचान (Traditional Identity) को बनाए हुए हैं। इनकी प्रस्तुति किसी शहर या कस्बे के एक विशेष रंगमंच पर की जाती है। एम्फीथिएटर(Amphitheater) एक इमारत (Building) का बड़ा या छोटा और ऐसा स्थल होता है जो इमारत के केंद्र (Center) में स्थित होता है। यह अकार में गोल (Round) अथवा अंडाकार (Oval) होता है। यह बीच से उभरा हुआ होता है और उसके चारों ओर कुर्सियाँ इस प्रकार लगी होती हैं कि सभी कुर्सियों से मंच स्पष्ट दिखाई देता है। एम्फीथिएटर एक ग्रीक (Greek) शब्द है जिसका अर्थ होता है ऐसा मंच जिसके चारों तरफ कुर्सियाँ लगी हों। इसकी संरचनात्मक पहलू (Structural Aspect) की ओर देखें तो यह मूल रूप से इटैलिक (Italic) या एट्रीस्को-कैंपैनियन (Etrusco-Campanian) शैली का बना होता है जिसका निर्माण मनोरंजन के विशिष्ट (Specific) रूपों की आवश्यकता की पूर्ति के लिए किया जाता है।
रोम में रोमन साम्राज्य के लगभग 230 अद्भुत एम्फीथिएटर खोजे गए हैं, जो बाकि थिएटरों से काफी अलग हैं। प्राचीन रोमन (Ancient Roman) एम्फीथिएटर खुली छत का मंच था जिसके चारों ओर दर्शकों के बैठने की व्यवस्था होती थी, जो कुछ-कुछ आज के स्टेडियम (Stadium) की तरह दिखता था। बडे़ मंचों पर जहाँ एक ओर विशेष रूप से रथ दौड़ (Chariot Races), ग्लैडीएटर कॉम्बैट (Gladiator Combats), जानवरों का शिकार (Animal Hunting) और फांसी (executions) आदि क्रिया-कलाप संपन्न होते थे, वहीं दूसरी ओर छोटे मंचों का उपयोग फ़ुटबॉल (Football) और एथलेटिक्स (Athletics) आदि के लिए किया जाता था। आधुनिक शैली (Modern Style) के एम्फीथिएटर में मंच के एक तरफ ही दर्शकों के लिए बैठने का स्थान होता है। पूरे विश्व में अब तक का सबसे बड़ा प्राचीन रंगमंच रोम के इटली शहर में बना है जो रोमन फोरम (Roman Forum) के पूर्व में स्थित है। इसे कोलोसियम (Colosseum) कहा जाता है। इसका निर्माण सम्राट वेस्पासियन (emperor Vespasian (r. 69–79 AD)) के शासन के दौरान 72 ईसा पूर्व में आरम्भ हुआ था और 80 ईस्वी में पूरा हुआ। वहाँ हजारों की संख्या में दर्शक आते थे। आँकड़ों की बात करें तो 50,000 से 80,000 और औसत 65,000 दर्शक कोलोसियम में बैठकर कार्यक्रम देख सकते थे। आज भी कोलोसियम को पाँच-सेंट यूरो के सिक्के (five-cent euro coin) के इटली संस्करण (Italian version) पर देखा जा सकता है। समय के साथ कोलोसियम में कई परिवर्तन आए। 12 वीं शताब्दी के बाद लगभग 1200 फ्रेंगिपनी परिवार (Frangipani family) ने कोलोसियम पर कब्जा कर लिया और इसे अपना किला बना लिया। सन् 1349 के एक बहुत बड़े भूकंप के झटके ने इसे क्षतिग्रस्त कर दिया। इस घटना के बाद इसके पत्थरों का प्रयोग अन्य कई इमारतों के निर्माण में किया गया।
ईसाइयों (Christians) द्वारा कोलोसियम को रोम में ईसाइयों के साथ हुए उत्पीड़न (Persecution) और उनकी निरपराध मृत्यु के प्रतीक (Symbol) के रूप में देखा जाता है। उनका मानना है कि इस स्थान पर ईसाइयों को रोम के शासक द्वारा मृत्यु दंड दिया जाता था। परंतु इसके विपरीत कुछ विद्वानों के अनुसार कोलोसियम में नहीं बल्कि रोम के अन्य स्थानों पर ऐसा किया जाता था हालाँकि वे यह भी मानते हैं कि अन्य कोलोसियम में प्रस्तुत किए जाने वाले अपराधियों में कुछ ईसाई धर्म के थे जिन्होंने उस समय रोमन देवताओं पर आस्था रखने के आदेश को अस्वीकार किया होगा। मध्य युग में कोलोसियम को एक स्मारक नहीं माना जाता था, किंतु पोप पायस पंचम (Pope Pius V) (1566–1572) के अनुसार कोलोसियम के अखाड़े की मिट्टी को तीर्थयात्रियों द्वारा शहीदों के खून (Blood of Martyrs) से रंगी मिट्टी मानकर एकत्र किया जाता था। अत: इस स्थान को पवित्र स्थल माना जाने लगा। हर शुभ शुक्रवार (Good Friday) के दिन ईसाई समुदाय के लोग अखाड़े के चारों ओर खड़े होकर श्रद्धांजलि (Tribute) देते हैं और पोप (Pope) वाया क्रूस (Via Crucis) जुलूस (Procession) का नेतृत्व करते हैं।
भारत (India) में भी कई स्थानों पर कला और संस्कृति को ध्यान में रखते हुए यहाँ के रंगमंचों में विभिन्न कार्यक्रमों का आयोजन किया जाता है, उदाहरण के लिए उत्तर प्रदेश राज्य के मेरठ में स्थित नौचंदी मैदान (Nauchandi Ground) जहाँ प्रतिवर्ष नौचंदी मेले का अयोजन बड़ी धूम-धाम से किया जाता है। हजारों की संख्या में लोग इस मेले का अनंद लेने आते हैं। इसके अलावा भी इसकी महत्ता को बनाए रखने के उद्देश्य से साल भर यहाँ अन्य मेलों का आयोजन भी किया जाता है जैसे संस्कृति और शिल्प मेला जो हर साल 2 अक्टूबर (October) के दिन शुरु होता है और अगले 6 दिनों तक चलता है। इसमें लगभग सभी साहसिक खेल जैसे ट्रैम्पोलिन बंजी (Trampoline Bungee), कमांडो नेट (Commando Net), ज़िपिंग (Zipping), तीरंदाजी (Archery) आदि का प्रदर्शन किया जाता है। साथ ही अन्य राज्यों (States) से भी कलाकार (Artists) इस मेले में अपनी प्रतिभा (Talent) का प्रदर्शन करते हैं। यह मेले शहर की रौनक़ बढ़ाते हैं व यहाँ की सुन्दरता पर चार चांद लगाते हैं। इसके अलावा भी मेरठ के विभिन्न पार्कों (Parks), विद्यालयों (Schools) और कई खुले स्थानों में बहुत से रंगमंच और अखाड़े (Theater & Arena) स्थित हैं। जो वर्षों से भारतीय सभ्यता और संस्कृति की धरोहर (Heritage) हैं।
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