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विज्ञान और प्रौद्योगिकी का क्षेत्र अपने विकास के साथ उन सभी कार्यों को करने का प्रयास कर रहा है, जो कभी असंभव प्रतीत होते थे। इन्हीं प्रयासों में से एक डी-एक्सटिंक्शन (De-Extinction) भी है, जिसे पुनरुत्थान जीव विज्ञान या प्रजाति पुनरुत्थानवाद भी कहा जाता है। यह एक ऐसी प्रक्रिया है, जिसके द्वारा किसी विलुप्त प्रजाति या ऐसी प्रजाति जो विलुप्त होने की कगार पर है, को फिर से उत्पन्न किया जा सकता है। इस प्रक्रिया को संचालित करने के लिए अनेक विधियां अपनायी जाती हैं, जिनमें क्लोनिंग (Cloning), जीनोम संपादन (Genome Editing), चयनात्मक प्रजनन (Selective Breeding) आदि शामिल हैं। विलुप्त हो चुकी आबादी को बढ़ावा देने की उम्मीद में, कुछ लुप्तप्राय प्रजातियों के लिए इसी तरह की तकनीकों को लागू किया गया है। एक विलुप्त प्रजाति को फिर से उत्पन्न करने हेतु क्लोनिंग विधि को आमतौर पर अधिक उपयुक्त माना जाता है। इस विधि में विलुप्त प्रजाति की एक संरक्षित कोशिका से केन्द्रक निकालकर उसे किसी ऐसे जीव के केन्द्रक रहित अंडे में डाला जाता है, जो विलुप्त प्रजाति से सम्बंधित होता है। फिर अंडे को विलुप्त प्रजातियों के सम्बंधित जीव से मेजबान में डाला जाता है। क्लोनिंग विधि से उत्पन्न किये गए सबसे प्रसिद्ध क्लोनों में से एक डॉली (Dolly), भेड़ है, जिसे 1990 के मध्य में उत्पन्न किया गया था। अन्य जानवरों की प्रजातियां जिन्हें क्लोन किया गया है, उनमें कुत्ते, सुअर और घोड़े शामिल हैं। जीवों को उत्पन्न करने की अन्य विधि, जीनोम संपादन है, जिसका उपयोग क्रिस्पर/कैस (Clustered Regularly Interspaced Short Palindromic Repeats/CRISPR associated protein - CRISPR/Cas) प्रणाली, विशेषकर क्रिस्पर/कैस9 की मदद से किया जा रहा है। क्रिस्पर-केस9 प्रणाली में दो मुख्य भाग होते हैं: एक आरएनए गाइड (RNA guide), जिसे वैज्ञानिक जीनोम पर विशिष्ट स्थानों को लक्षित करने के लिए प्रोग्राम (Program) किया जाता है, और दूसरा केस9 प्रोटीन, जो आणविक कैंची के रूप में कार्य करती है। क्रिस्प एक कट-एंड-पेस्ट (Cut-and-Paste) उपकरण के समान है, जो आनुवंशिक जानकारी को सम्पादित भी कर सकती है और हटा भी सकती है। इनके अलावा अन्य विधियां भी डी-एक्सटिंक्शन के लिए उपयोग की जा रही हैं।
लगभग हर देश में, डी-एक्सटिंक्शन की प्रक्रिया के लिए सरकार, अकादमिक समितियों और सम्बंधित जनता की मंजूरी आवश्यक होती है। विलुप्त हो चुके जीवों को फिर से क्लोन करने के लिए यह आवश्यक है कि, विलुप्त हुए जीव की सरंक्षित कोशिका वर्तमान समय में भी मौजूद हो। डी-एक्सटिंक्शन की सबसे पहली सफल प्रक्रिया स्पेन (Spain) और फ्रांस (France) के वैज्ञानिकों द्वारा सम्पन्न की गयी थी, जिसके तहत उन्होंने एक जंगली बकरी, जिसे बकार्डो (Bucardo) या पैरेनीन आईबेक्स (Pyrenean Ibex) कहा जाता था, को उत्पन्न किया। यह बकरी 220 पाउंड (Pound) वजन और घुमावदार सींग वाली थी। डी-एक्सटिंक्शन के लिए वर्तमान उम्मीदवारों की सूची में वूली मैमथ (Woolly Mammoth), थाइलेसिन (Thylacine), ऑरोच (Aurochs), क्वागा (Quagga), पैसेंजर पीजन (Passenger Pigeon) आदि शामिल हैं। जीवों को फिर से उत्पन्न करने की यह प्रक्रिया, पारिस्थितिक तंत्र के लिए कई प्रकार से लाभदायक है। इसके उपयोग से वैज्ञानिक प्रौद्योगिकी और प्रक्रिया में अत्यधिक प्रगति हो सकती है और इन प्रौद्योगिकियों का उपयोग संकटग्रस्त प्रजातियों को विलुप्त होने से रोकने के लिए किया जा सकता है। डी-एक्सटिंक्शन द्वारा जो प्रजातियां उत्पन्न हुई हैं, उनका अध्ययन जहां विज्ञान के क्षेत्र में अभूतपूर्व प्रगति का नेतृत्व कर सकता है, वहीं प्रजातियों में होने वाली अनेकों बीमारियों का इलाज खोजने में भी मदद कर सकता है।
डोडो (Dodo), एशियाटिक (Asiatic) चीता, गुलाबी सिर वाली बत्तख, सुंदरबन गैंडा, थाइलेसिन, चाइनीज रिवर डॉल्फिन (Chinese River Dolphin), पैसेंजर पीजन, शाही कठफोड़वा (Woodpecker) आदि उन जानवरों की लंबी सूची का हिस्सा हैं, जिनके विलुप्त होने के लिए मानव प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रूप से उत्तरदायी है और अब जब कि, कई और प्रजातियां खतरे में हैं, यह संख्या और भी बढ़ने वाली है। किंतु शोधकर्ता क्लोनिंग और अन्य विधियों का उपयोग करके इस प्रवृत्ति को उलटने की कगार पर हैं। एक विलुप्त प्रजाति का पुनरुद्धार करना अब एक कल्पना नहीं है, लेकिन डी-एक्सटिंक्शन के सन्दर्भ में, यह प्रश्न भी चिंता का विषय बना हुआ है कि, क्या वैज्ञानिकों का यह विचार उचित है? डी-एक्सटिंक्शन अपने साथ जहां कई लाभ लेकर आया है, वहीं यह संकटग्रस्त प्रजातियों और उनके पारिस्थितिकी तंत्र पर नकारात्मक प्रभाव भी डाल सकता है। एक विलुप्त प्रजाति को, पूर्व पारिस्थितिकी तंत्र में फिर से प्रस्तुत करना इसे एक आक्रामक प्रजाति के रूप में वर्गीकृत करने जैसा होगा। भोजन या अन्य चीजों के लिए प्रतिस्पर्धा से मौजूद जीवित प्रजातियां विलुप्त हो सकती हैं। डी-एक्सटिंक्शन एक बहुत महंगी प्रक्रिया है। एक प्रजाति को वापस लाने पर लाखों-करोड़ों रुपये खर्च हो सकते हैं, जिसका प्रभाव वर्तमान संरक्षण प्रयासों पर भी पड़ सकता है। विलुप्त हो चुके जीवों को पुनः उत्पन्न करने की लागत, अन्य संरक्षण कार्यक्रमों से प्राप्त की जायेगी, जो मौजूदा संकटग्रस्त प्रजातियों के विलुप्त होने का कारण बनेगी। इस प्रकार, डी-एक्सटिंक्शन की प्रक्रिया पारिस्थितिकी तंत्र के लिए सकारात्मक भी है और नकारात्मक भी।
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