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मात्र एक स्टाइलिश (Stylish) एक्वेरियम (Aquarium) आपके घर के इंटीरियर (Interior) को एक यूनिक लुक (Unique Look) देता है। एक्वेरियम में तैरती छोटी-बड़ी व रंग-बिरंगी मछलियां घर और मन, दोनों को ही शांत और तरो-ताजा माहौल देती हैं। हमारे देश में रंगीन मछली पालन शहरी एवं ग्रामीण क्षेत्रों में रोजगार सृजन की क्षमता रखता है। आज के दौर में रंगीन मछलियों को शीशे से बने एक्वेरियम में पालने का चलन है। कई लोग अपने घर और दफ्तरों में रंग बिरंगी मछलियों को एक्वेरियम में पालने का शौक रखते हैं। वर्तमान में सजावटी मछली (Ornamental Fish) उद्योग भारत में लाखों लोगों की आजीविका से सीधे जुड़ा हुआ है। बाजार में एक्वेरियम में रखने वाली रंगीन मछलियों का व्यवसाय भी तेजी से बढ़ रहा है, इस व्यवसाय से आप अच्छा-खासा पैसा कमा सकते हैं। यह खूब मुनाफा देने वाला कारोबार साबित हो रहा है। इसलिए तमाम लोगों ने रंगीन मछली पालन को करियर (Career) बना लिया है। देश के कई हिस्सों में भी कई जगह रंगीन मछलियों के कारोबार को शासन-प्रशासन प्रोत्साहित कर रहा है। मेरठ में भी मछली का अस्तित्व मुख्य रूप से एक घरेलू पशु/घरेलू सजावटी मछली के रूप में है, किंतु यहाँ की एक्वेरियम में पाई जाने वाली मछलियाँ देशी नहीं बल्कि विदेशी हैं।
सजावटी मछली उद्योग लगभग 50,000 लोगों को रोजगार प्रदान करता है, तथा विशेषज्ञों के अनुसार, अगले 10 वर्षों में घरेलू मछलीघर बाजार के 300 करोड़ से बढ़कर 1,200 करोड़ रुपये होने की उम्मीद है। देश में उच्च मूल्य से लेकर कम मूल्य और मध्यम मूल्य वाली देशी सजावटी मछलियां पर्याप्त मात्रा में उपलब्ध होने से सजावटी मछली उद्योग के विकास में बहुत योगदान मिला है। हालांकि यह व्यवसाय पहले कोलकाता, मुंबई और चेन्नई के निकट कुछ गांवों तक सीमित था, परंतु अब इसका विस्तार हो रहा है। जोकि साबित करता है कि भारत में पायी जाने वाली देशी सजावटी मछलियों की अंतरराष्ट्रीय बाजार में कम मांग का कारण विदेशी मछलियां नहीं है बल्कि प्रजनकों (Breeders) का सीमित ज्ञान और अस्वच्छ पारंपरिक उत्पादन विधियां हैं। यदि सरकारी संस्थानों द्वारा सुविधाएं स्थापित की जाएँ और प्रजनकों को विशेष प्रशिक्षण प्रदान किया जाए तो देश से निर्यात बढ़ाने के लिए अधिक स्वदेशी सजावटी मछली का उत्पादन किया जा सकता है।
सजावटी मछलियों के वैश्विक व्यापार की बात करें तो यह अरबों खरबों का उद्योग है जिसमें लगभग 125 से अधिक देशों की हिस्सेदारी है। वैश्विक सजावटी मछली का व्यापार 15 बिलियन डॉलर से अधिक होने का अनुमान है। वैश्विक मछली बाजारों के रिकॉर्ड 1976 में स्थापित किए गए थे, जिसमें सिर्फ 28 देशों ने सजावटी मछलियों का निर्यात किया था, यह संख्या 2004 में 105 देशों तक हो गयी, और वर्तमान में 125 से अधिक देश इस व्यापार में शामिल हैं।
सजावटी मछली का वैश्विक निर्यात, 2000 - 2016 (मिलियन अमरीकी डालर में)
उपरोक्त चार्ट में देखें तो पायेंगे सजावटी मछलियों के वैश्विक निर्यात बाजार में वर्ष 2000 से लगातार 177.7 मिलियन अमरीकी डालर की वृद्धि दर्ज की गई है और यह आंकड़ा 2011 में 364.9 मिलियन अमेरिकी डॉलर के साथ शिखर पर पहुंच गया था। 2016 में वैश्विक सजावटी मछली उद्योग के लिए निर्यात मूल्य 337.70 मिलियन अमेरिकी डॉलर रहा। यदि क्षेत्र के आधार पर दुनिया के निर्यात बाजार में हिस्सेदारी को देखा जाये तो एशियाई देश (Asian Countries) दुनिया में सजावटी मछली के प्रमुख स्रोत हैं और 2014 में इनका निर्यात मूल्य 197.7 मिलियन अमेरिकी डॉलर था जोकि कुल निर्यात का 57% हिस्सा है। यूरोप (Europe), दक्षिण अमेरिका (South America), उत्तरी अमेरिका (North America), अफ्रीका (Africa), ओशिनिया (Oceania), मध्य पूर्व (Middle East) अन्य प्रमुख क्षेत्र हैं जो सजावटी मछलियों का निर्यात करते हैं।
हमारे देश से सजावटी मछलियों का निर्यात 1969 के दौरान उष्णकटिबंधीय मीठे पानी की मछलियों की कुछ प्रजातियों के साथ शुरू हुआ था, जिनकी निर्यात आय बहुत कम थी जो कि 1994 में बढ़कर 10 करोड़ रुपये हो गई। समय के साथ भारतीय सजावटी मछलियों ने भी अंतर्राष्ट्रीय बाजार में अपनी जगह बनाई है। वर्तमान में भारतीय सजावटी मछलियों के निर्यात में घातीय वृद्धि देखी गई है। परंतु विश्व सजावटी मछली निर्यात में भारत की हिस्सेदारी उतार-चढ़ाव भरी रही और अधिकांश वर्षों में यह एक प्रतिशत से भी कम रही है। विश्व बाजार में भारत की हिस्सेदारी 1991-2009 के दौरान 0.12% से 1.16% तक थी। 2016 में भारतीय सजावटी मछली उद्योग का निर्यात मूल्य 1.06 मिलियन अमेरिकी डॉलर था और जोकि कुल निर्यात का 0.3% हिस्सा था, जिसे आप निम्न पाई चार्ट (Pie chart) में देख सकते हैं।
वैश्विक सजावटी मछली व्यापार 2016 में भारत की स्थिति
भारत दुनिया के निर्यातक देशों की सूची में 31 वें स्थान पर है और सिंगापुर (Singapore), यूएसए (USA), हांगकांग (Hong Kong), मलेशिया (Malaysia) और जापान (Japan) जैसे देश भारत के पसंदीदा शीर्ष पाँच बाज़ार स्थल थे। आज भारत की सजावटी मछलियाँ कुल मछली व्यापार में लगभग 1% का ही योगदान दे रही हैं। इन मछलियों का निर्यात लगभग 69.26 टन तक किया जाता है, जिसका मूल्य 2014-15 में 566.66 करोड़ रुपये था। 1995 से 2014 की अवधि के दौरान इस मूल्य में औसतन लगभग 11 प्रतिशत की वार्षिक वृद्धि दर दर्ज की गई। प्रजातियों की समृद्ध जैव विविधता, अनुकूल जलवायु परिस्थितियों और सस्ते श्रम की उपलब्धता के कारण भारत में सजावटी मछली उत्पादन में काफी संभावनाएं हैं। केरल, तमिलनाडु और पश्चिम बंगाल ऐसे राज्य हैं जो भारत में मुख्य रूप से सजावटी मछली पालन का अभ्यास कर रहे हैं। भारत में सजावटी मछलियों का घरेलू बाजार भी काफी आशाजनक है, यहां ताजे और समुद्री दोनों प्रकार के जल में सजावटी मछलियों की बहुल्यता है इसलिए भविष्य में सजावटी मछली उद्योगों के विकास की जबरदस्त गुंजाइश है।
भारत में सजावटी प्रजातियों को देशी और विदेशी प्रजातियों में वर्गीकृत किया गया है। भारत में बड़ी संख्या में देशी प्रजातियों की उपलब्धता ने देश में सजावटी मछली उद्योग के विकास में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है। उत्तर-पूर्वी राज्य, पश्चिम बंगाल, केरल और तमिलनाडु जैसे राज्यों में ऐसी कई देशी प्रजातियां पायी जाती हैं, जो मछली उद्योग के विकास में महत्वपूर्ण योगदान देती हैं। निर्यात मांग को पूरा करने के लिए लगभग 90% देशी प्रजातियों (85% उत्तर पूर्व भारत से) को एकत्रित कर उनका पालन किया जाता है। वर्तमान में, लगभग 100 देशी प्रजातियों को मछलीघर में सजावटी मछली के रूप में पाला जा रहा है। इसके अलावा रंग, आकार और रूप के कारण विदेशी प्रजातियों की भी मांग भी काफी अधिक है तथा 300 से अधिक विदेशी प्रजातियों को सजावटी मछली व्यापार में शामिल किया जाता है और भारत में लगभग 200 प्रजातियां प्रतिबंधित हैं। देश में मछलियों का 90% निर्यात कोलकाता से जबकि 8% और 2% क्रमशः मुंबई और चेन्नई से होता है।
सजावटी मछलियों के पालन को जलीय पालन (Aquariculture) कहा जाता है। इसमें मछलियों को एक सीमित जलीय प्रणाली में पाला जाता है। सजावटी मछलियों को जीवित गहने (living jewels) भी कहा जाता है। दुनिया भर में करीब 30,000 से अधिक मछली प्रजातियां हैं, जिनमें से लगभग 800 प्रजातियां सजावटी मछलियों की हैं। देशी और विदेशी ताजा जल प्रजातियों के बीच जिन प्रजातियों की माँग ज्यादा रहती है, व्यावसायिक इस्तेमाल के लिए उनका प्रजनन और पालन किया जा सकता है। व्यावसायिक किस्मों के तौर पर प्रसिद्ध और आसानी से उत्पादन की जा सकने वाली प्रजातियाँ एग लेयर्स (egg layers) या अंडोत्पन्न (Oviparous) और लाइवबीयरर्स (live bearers) या सजीव वाहक (Ovo-viviparous) के अंतर्गत आती हैं। एक्वैरियम प्रजातियों में से अधिकांश अंडोत्पन्न हैं और इनमें सामान्य रूप से बाहरी निषेचन होता है। व्यावसायिक रूप से महत्वपूर्ण लाइव बीयरर (Live bearer) प्रजातियाँ: गप्पीज (पियोसिलिया रेटिकुलेटा) (Guppy - Poeciliareticulata), स्वॉर्ड टेल (जाइफोफोरस स्पीशिज) (Swordtail - Xiphophorus Species) आदि और एग लेयर्स (Egg layers) प्रजातियाँ: ज़ेबरा मछली (ब्रेकिदानियो रेरियो) (Zebra fish- Brachydaniorerio), गोल्डफिश (कैरासियस ओराटस) (Goldfish-Carassiusauratus ), कोई कार्प (सिप्रिनस कारपियो) (Koi carp - Cyprinuscarpio) आदि हैं। परंतु देश में अभी भी कई कारकों की वजह से इनका सीमित संख्या में ही निर्यात किया जाता है। इन कारकों में स्थिरता, घरेलू बाजार में स्वदेशी मछलियों के प्रजनन में अरूचि आदि शामिल हैं। हालांकि देश में स्वदेशी सजावटी मछलियों के लिए प्रजनन तकनीक वैज्ञानिक रूप से तैयार की गई है, किन्तु अभी भी बड़े पैमाने पर उनका उत्पादन शुरू होना बाकी है।
परंतु वर्तमान में सजावटी मछली व्यापार के संदर्भ में पर्यावरण मंत्रालय द्वारा घोषित किये गये नियम इस उम्मीद की पूर्ति में बाधा बन सकते हैं। मंत्रालय ने 158 प्रजातियों के प्रदर्शन और बिक्री पर प्रतिबंध लगा दिया है तथा टैंक आकार, पानी की मात्रा और स्टॉकिंग घनत्व पर नियम लाने के अलावा टैंक में मछलियों के स्वास्थ्य की निगरानी के लिए पूर्णकालिक मत्स्य विशेषज्ञ की नियुक्ति को भी अनिवार्य कर दिया है। ये नियम छोटे प्रजनकों, व्यापारियों, थोक विक्रेताओं, निर्यातकों और शौकियों को नकारात्मक रूप से प्रभावित करते हैं। इसके अलावा कोविड (COVID-19) संकट से भी भारत में मछली की मांग में कमी के कारण लगभग 5-10 प्रतिशत की गिरावट आयी है। लेकिन सरकार ने अप्रैल के मध्य से लॉकडाउन (Lockdown) नियमों में बदलाव कर मछली पकड़ने की गतिविधियों में छूट देकर स्थिति में सुधार करना शुरू कर दिया है। मत्स्य मंत्रालय के एक वरिष्ठ अधिकारी ने कहा कि देशों में लॉकडाउन के कारण सुस्त वैश्विक मांग से देश के निर्यात पर असर पड़ा है। लेकिन, अब स्थिति में सुधार होने लगा है और निर्यात में सामान्य स्थिति जल्द आने की उम्मीद है।आने वाले वर्षों में भारत के मछली निर्यात में वृद्धि की बहुत संभावना है, सरकार आने वाले समय के लिये समुद्री शैवाल और सजावटी मछली के निर्यात को बढ़ावा देने की योजना बना रही है।
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