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बंदरों के आतंक से भारत के लगभग अधिकांश लोग परेशान होंगे, बंदर घरों में घुसकर खाने-पीने के सामान का नुकसान करने के साथ-साथ कई बार लोगों पर हमला भी कर देते हैं। इन्हें भगाने के लिए कई तरह की तरकीब अपनाई जाती है। नई दिल्ली में इन आक्रमक बंदरों और अन्य जंगली जानवरों को डराने के लिए हनुमान लंगूरों को प्रशिक्षित किया जाता है। जब शहर ने 2010 के राष्ट्रमंडल खेलों की मेजबानी की थी, तो वहाँ के नगरपालिका परिषद ने 38 लंगूरों को बंदरों के नियंत्रण में मदद करने के लिए उपयोग किया था। हनुमान लंगूरों को रक्षक के रूप में अधिक मूल्यवान माना जाता है, हिन्दू उन्हें वानर देवता हनुमान के प्रतीक के रूप में पूजते हैं। रामायण की कथा में बताया गया है कि हनुमान जी और उनकी वानर सेना ने देवी सीता को राक्षस रावण से बचाने के लिए भगवान राम की मदद करी थी। साथ ही यह भी बताया गया है कि जब रावण की लंका में हनुमान जी की पूँछ में आग लगाई गई थी, तब लंगूर हनुमान जी के घाव को लेकर काफी चिंतित हुए थे।
हनुमान लंगूर को ग्रे लंगूर (Gray Langur) भी कहा जाता है, भारत में यह लंगूर उत्तर-प्रदेश राज्य में भी देखा जा सकता है। परंपरागत रूप से केवल एक प्रजाति सेमनोपिथेकस एंटेलस (Semnopithecus Entellus) की ही जानकारी प्राप्त हुई थी, लेकिन 2001 के बाद से, अतिरिक्त प्रजातियां भी देखने को मिली हैं। वर्तमान समय में आठ प्रजातियों को मान्यता दी गई है। हनुमान लंगूर स्पष्ट रूप से स्थलीय क्षेत्रों, जंगलों, लकड़ी के घने जंगलों और भारतीय उपमहाद्वीप के शहरी क्षेत्रों में पाये जाते हैं। अधिकांश प्रजातियाँ कम से मध्यम ऊंचाई पर पाई जाती हैं किंतु नेपाल और कश्मीर में पाये जाने वाले हनुमान लंगूर हिमालय में 4,000 मीटर (13,000 फीट) तक भी पाये जा सकते हैं। ये लंगूर काले चेहरे और काले कान के साथ काफी हद तक ग्रे (कुछ और पीले) होते हैं। आमतौर पर सभी उत्तर भारत के ग्रे लंगूर सामान्य चाल के दौरान अपनी पूँछ को पीठ के ऊपर से सिर की ओर ले जाकर एक छल्ला बनाते हैं, तथा पूँछ का अगला भाग शरीर के दाईं या बाईं ओर गिरता है, जबकि सभी दक्षिण भारतीय और श्रीलंकाई ग्रे लंगूरों की किस्में अपनी पूँछ को उदगम स्थल से ऊपर उठाकर सिर से पीछे की ओर मोड़कर, अगला हिस्सा गिरा देते हैं, जिससे पूँछ की अंग्रेजी के “U” या “S” अक्षर की आकृति बनती है। वहीं लिंग के आधार पर इनके आकार में भी काफी बदलाव देखा जा सकता है, इनमें नर हमेशा मादाओं से बड़े होते हैं। सिर और शरीर की लंबाई 51 से 79 सेमी (20 से 31 इंच) तक होती है। उनकी पूंछ, 69 से 102 सेमी (27 से 40 इंच) हमेशा उनके शरीर से अधिक लंबी होती है।
लंगूर ज्यादातर चौगुना चलते हैं और अपना आधा समय जमीन पर और बाकी आधा पेड़ों में बिताते हैं, तथा यह पुरानी दुनिया के बंदरों के वंशज है जोकि भारतीय उपमहाद्वीप के मूल निवासी हैं। ऐसा माना जाता है कि लगभग 40 मिलियन (Million) वर्ष पहले दुनिया में बंदरों के बीच एक महत्वपूर्ण विभाजन हुआ था। नई दुनिया के बंदर दक्षिण अमेरिका (South america) में रह रहे थे और पुरानी दुनिया के अफ्रीका (Africa) में एप्स (Apes) के साथ रह रहे थे। नई दुनिया के बंदरों ने दक्षिण अमेरिका की ओर प्रवास करना शुरू किया था, वे वहाँ वनस्पति के विभिन्न रूपों से बने बेड़ों का उपयोग करके आए होंगे या कोई अन्य गतिविधियों का उपयोग करके। केवल इतना ही नहीं ये शारीरिक असमानताओं के कारण भी एक दूसरे से भिन्न हैं। नीचे दिए गए तालिका से आप पुरानी दुनिया और नई दुनिया के बंदरों के बीच प्रमुख अंतर को समझ सकते हैं:
वहीं भारत में ग्रे लंगूर की आबादी कुछ क्षेत्रों में स्थिर है किंतु कुछ में काफी घट गयी है। काले पैर वाले ग्रे लंगूर और कश्मीर के ग्रे लंगूर दोनों को संकट की स्थिति में माना जा रहा है। काले पैर वाले ग्रे लंगूर बहुत ही दुर्लभ हैं, जिसमें 250 से भी कम वयस्क लंगूर शेष हैं। भारत में, ग्रे लंगूरों की संख्या लगभग 3,00,000 है। लंगूरों को पकड़ने या मारने पर प्रतिबंध लगाने के लिए कानून भी निर्मित किये गये हैं किंतु फिर भी देश के कुछ हिस्सों में उनका अब भी शिकार किया जाता है। इन कानूनों को लागू करना मुश्किल साबित हुआ है और ऐसा लगता है कि अधिकांश लोग कानून से अनजान हैं। खनन, जंगल की आग और लकड़ी के लिए वनों की कटाई आदि उनके अस्तित्व के लिए खतरा है। इसके अलावा लंगूर सड़कों के पास भी पाए जाते हैं जिससे वे वाहन दुर्घटनाओं के शिकार होते हैं। उनकी पवित्र स्थिति और अन्य बंदरों की तुलना में उनके कम आक्रामक व्यवहार के कारण, लंगूरों को आमतौर पर भारत के कई हिस्सों में खतरनाक नहीं माना जाता है। लेकिन कुछ क्षेत्रों में अनुसंधान गांवों से लंगूरों को हटाने के लिए उच्च स्तर में मांग की जाती हैं।