मेरठ में सेना से रिटायर (Retire) कुत्तों के आवास के लिए आश्रय स्थल बना है। यह भारत में अपनी तरह का अकेला स्थल है। सेना में वर्षों तक विस्फोटकों की जांच करने, बचाव कार्य करने, स्काउट (Scout) की तरह मदद करने के बाद यह जानना रोचक होगा कि कैसे बिताते हैं सेना के यह k9 सैनिक अपनी रिटायर्ड जिंदगी? सिर्फ तीन सेना के बहादुर पुरुष ही देश की रक्षा नहीं करते, यह श्वान सैनिक भी अपनी जान पर खेलकर अपनी ड्यूटी (Duty) निभाते हैं। यह 8-9 वर्ष की उम्र तक ही सेवा देते हैं और उसके बाद उन्हें सम्मानजनक ढंग से सेवानिवृत्त करके इस रिटायरमेंट होम (Retirement Home) में रखा जाता है। मोर्चे पर काम करने के बाद इन जांबाज़ सैनिकों की रिटायर्ड जिंदगी का क्या मतलब होता है; यह जानने की उत्कंठा सब में होती है।
आरवीसी सेंटर, मेरठ (RVC Center, Meerut)
भारत के एकमात्र सेना से रिटायर्ड कुत्तों के साथ, इनकी सभी जरूरतों का पूरा ध्यान रखा जाता है। इनमें से अधिकतर जर्मन शेफर्ड और लैब्राडोर (German Shepherd and Labrador) होते हैं। इनके अपने-अपने शौक और तौर-तरीके हैं और इन सभी का यहां बखूबी ध्यान रखा जाता है। उदाहरण के तौर पर 14 साल की एक रिटायर्ड लैबराडोर श्वान बहुत धीमे खाती है, लेकिन पूरा स्वाद लेकर अंडे और कीमा खाती है। यह रीमाउंट एंड वेटरनरी कॉर्प्स सेंटर (Remount and Veterinary Corps Center) में पैदा हुई थी, जो बाकी सारे सेना के कुत्तों को ट्रेनिंग देते हैं। इसकी आखिरी तैनाती जोरहाट, असम में विस्फोटक परीक्षक के रूप में थी। 2016 में रिटायर होकर यह वापस आरवीसी सेंटर आ गई। यहां पर दनिका नाम का 3 साल का जिंदादिल जर्मन शेफर्ड है, जो एक अभ्यास के दौरान पैर में चोट लग जाने से जल्दी सेवानिवृत्त कर दिया गया। सियाचिन में तैनात रहा 11 साल का बियर, ग्रेटेस्ट विद माउंटेन (Greatest with Mountain) प्रजाति का कुत्ता बचाव कार्य करता था। इस तरह के 30 कुत्ते इस रिटायरमेंट होम में है। यह भारत का एकमात्र आश्रय स्थल है जहां सेना से रिटायर कुत्ते रहते हैं।
पिछले 3 वर्षों में, डेढ़ सौ कुत्तों ने यहां शरण पाई। 40 कुत्ते पूरी उम्र यहां रहे। बाकी 80 कुत्ते शहरी और सैनिक परिवारों ने गोद ले लिए। छोटे कुत्तों के लिए दिन सुबह 5:30 बजे से शुरू होता है। उनकी कसरत और ओबेडिएंस ट्रेनिंग (Obedience Training) होती है। रिटायर्ड कुत्तों की दिनचर्या 6:00 बजे सुबह से शुरू होती है। गर्मियों में वहां कूलर चलता है। 8 बजे उन्हें तैयार किया जाता है। 15 मिनट की मालिश की जाती है। 10:00 बजे स्वास्थ्यवर्धक नाश्ता दिया जाता है, जिसमें सब्जियां, बिना हड्डी का चिकन और शोरबा होता है। उसके बाद उन्हें वापस उनके कमरों यानी केनल (Kennel) ले जाया जाता है, जहां वे पंखों के नीचे आराम करते हैं। गेंद, खिलौनों और एक दूसरे के साथ मस्ती भरे खेल भी खेलते हैं। शाम को 6 बजे रात का खाना मिलता है।
डॉजर (Dodger) यहां का बहुत शाम सदस्य है। उसे जम्मू कश्मीर में 7 किलो विस्फोटक पकड़वाने और लगभग 200 लोगों की जिंदगी बचाने के लिए प्रशस्ति पत्र भी मिला है। 10 साल का लैबराडोर मुकुल बहुत ही प्यारा और शरारती है । कुत्तों की यहां की दिनचर्या सुनने में बड़ी आलस भरी लगती है, लेकिन यह सेना में काम करते और विपरीत जलवायु का परिणाम है। इन हालातों के कारण कुत्तों के अंग नष्ट हो जाते हैं, तमाम तरह के असाध्य रोग, सुनने की शक्ति का क्षरण और लड़ाई में मिले घावों के कारण शरीर जल्दी बूढ़े हो जाते हैं और औसत उम्र 30% घट जाती है।
चौकस संतुलित आहार और 24 घंटे मेडिकल देखभाल, बहुत मुश्किल होते हैं। हर तीसरे महीने सभी रिटायर्ड कुत्तों का पूरा मेडिकल चेक अप किया जाता है। इसमें दांतो की जांच भी शामिल है। नियमित व्यायाम भी इनको बहुत थका देता है। इनके रसोइए का कहना है कि हमें सैकड़ों मुंह को खाना समय से देना होता है। हम अपना खाना छोड़ देते हैं, पर इनके खाने में कोई कसर नहीं रखी जाती। 1800 रोटी रोज पकती है। इनके खाने में आसानी से पचने वाली चीजें शामिल होती हैं- पनीर, भिंडी, पालक, चावल, सूप और अंडे। ज्यादातर तरी वाला भोजन इन कुत्तों के लिए बनता है।
2 साल पहले यहां के प्रशासनिक अधिकारी ने रिटायर्ड जर्मन शेफर्ड को गोद लिया था, इन्हीं की तरह बहुत से आम नागरिकों ने यहां से कुत्ते गोद लिए हैं।
एक बात जान लेना जरूरी है कि इन सेना से रिटायर्ड कुत्तों को गोद लेने से पहले बहुत सी बातें दिमाग में साफ कर लेनी चाहिए। भारतीय सेना रीमाउंट और भारतीय सेना के वेटनरी कॉर्प्स (Veterinary Corps) द्वारा अच्छी तरह छानबीन के बाद ही यह रिटायर्ड कुत्ते गोद दिए जाते हैं।
© - 2017 All content on this website, such as text, graphics, logos, button icons, software, images and its selection, arrangement, presentation & overall design, is the property of Indoeuropeans India Pvt. Ltd. and protected by international copyright laws.