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मानव सभ्यता के विकास में पाषाण युग एक बहुत ही विशेष काल रहा है। इस युग को क्रमशः तीन भागों पुरापाषाण (Paleolithic), मध्यपाषाण (Mesolithic) और नवपाषाण (Neolithic) काल, में वर्गीकृत किया गया है। मध्यपाषाण काल, पाषाण युग का दूसरा चरण था, जिसके अंतर्गत मानव सभ्यता के विकास में महत्वपूर्ण परिवर्तन हुए। भारत में यह युग 9,000 ईसा पूर्व से 4,000 ईसा पूर्व तक चला, जिसे मुख्य रूप से माइक्रोलिथ्स (Microliths) अर्थात छोटे ब्लेडे (Blade) वाले पत्थर के औजारों के निर्माण या विकास से पहचाना गया। इस युग में, पुरापाषाण युग और नवपाषाण युग दोनों की विशेषताएं पायी जाती हैं। शिकार करना, मछली पकड़ना तथा अपना भोजन जुटाना इस युग के लोगों द्वारा किया जाने लगा था।
इसके बाद उन्होंने विभिन्न जानवरों को पालतू बनाना भी शुरू किया। जहां, पहले औजारों और उपकरणों को बनाने के लिए बड़े आकार के पत्थरों का उपयोग किया जा रहा था, वहीं इस युग में छोटे-छोटे आकार के पत्थरों या माइक्रोलिथ्स द्वारा औजार व उपकरण बनाये जाने लगे थे। माइक्रोलिथ्स आकार में बहुत छोटे होते हैं, और उनकी लंबाई 1 से 8 सेंटी मीटर तक होती है। बैक्ड ब्लेड (Backed Blade), कोर (Core), पॉइंट (Point), ट्राइएंगल (Triangle), ल्यूनेट (Lunate) और ट्रेपेज़ (Trapeze), मध्यपाषाण काल के मुख्य उपकरण हैं। हालाँकि, कुछ उपकरणों जैसे स्क्रैपर (Scraper), चॉपर (Choppers) आदि का इस्तेमाल पहले से ही किया जा रहा था। इस युग के लोगों ने चित्र बनाने का भी अभ्यास किया, जिसमें उन्होंने पक्षियों, जानवरों और मनुष्यों को दर्शाया। प्रागैतिहासिक गुफा या शैल चित्र भी इस युग की महत्वपूर्ण विशेषता है। ये चित्र उन विभिन्न विषयों को दर्शाते हैं, जो मानव और पशु से सम्बंधित हैं। पशु और पक्षियों के अलावा, मछलियां भी इन चित्रों में देखने को मिलती हैं। इन चित्रों में मानव की विभिन्न गतिविधियां, जैसे - नृत्य, दौड़ना, शिकार करना, खेल खेलना, लड़ाई करना आदि प्रदर्शित की गयी हैं। शैल चित्रों को गहरे लाल, हरे, सफेद और पीले रंग से बनाया गया है, ताकि वे स्पष्ट रूप से दिखायी दें। 
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