मेरठ में एक वेनूली अध्ययन समूह (Vanulee Study Group) है, जो छात्रों को वृक्ष लगाने की एक अद्भुत जापानी कला (Japanese Art) बोन्साई (Bonsai) का प्रशिक्षण देता है। जापानी भाषा में बोन्साई शब्द का अर्थ है "बौने पौधे या छोटे पौधे"। इस कला का उद्भव 2000 वर्ष पूर्व चीन (China) से हुआ था, प्रारंभ में इन वृक्षों को स्मृति के रूप में लगाया गया था। 6ठी शताब्दी से, जापान (Japan) के शाही दूतावास के कर्मी और बौद्ध छात्र जो चीन में रह रहे थे, वे वापस जापान लौटे और अपने साथ कई चीनी विचारों, वस्तुओं और बोन्साई कला को ले गए। जापान में इस कला को और अधिक परिष्कृत किया गया और यह जापानी संस्कृति का हिस्सा बन गयी। जापान के बौद्ध धर्म और गमलों के वृक्ष के बीच घनिष्ठ संबंधों ने बोन्साई वृक्ष के एक नए स्वरूप और सौंदर्यशास्त्र को आकार दिया। तत्कालीन लघुचित्रों, चीनी मिट्टी के बर्तनों को सजाने के लिए उनमें बोन्साई वृक्षों की ही चित्रकारी की जाती थी।
14वीं शताब्दी के आसपास, बौने गमलों के वृक्षों को "कटोरे का पेड़" या बाउलस् ट्री (Bowl's Tree) नाम से पुकारा जाने लगा। जो कि एक गहरे गमले में लगाए जाने वाले वृक्ष की ओर संकेत करता था, ना कि एक सतही गमले के वृक्ष की ओर, इसे बाद में बोन्साई के नाम से जाना गया। इस अवधि में बोन्साई की खेती उच्च स्तर की विशेषज्ञता तक पहुंच गई। 17वीं शताब्दी के बोन्साई वृक्ष वर्तमान तक जीवित हैं। जापान की राष्ट्रीय संपत्ति में से एक माने जाने वाले सबसे पुराने जीवित बोन्साई वृक्ष को टोक्यो इम्पीरियल पैलेस (Tokyo Imperial Palace) संग्रह में देखा जा सकता है। इस वृक्ष को कम से कम 500 साल पुराना माना जाता है। 18वीं शताब्दी के अंत तक, जापान में बोन्साई की खेती व्यापक रूप से होने लगी थी और आम जनता इसमें विशेष रूचि लेने लगी थी।
इन बोन्साई पौधों या वृक्षों को गमलों में कहीं भी उगाया जा सकता है। बोन्साई कला के अन्तर्गत पौधों को सुन्दर आकृति प्रदान करने, सींचने की विशिष्ट विधि एवं एक गमले से निकालकर दूसरे गमले में रोपित करने की विधियां शामिल हैं। इन बौने पौधों को समूह में उगाकर कम स्थान में भी एक हरी-भरी बगिया तैयार की जा सकती है। बोन्साई पौधों को गमले में इस प्रकार उगाया जाता है, जिससे उनका प्राकृतिक स्वरूप तो बना रहे किंतु वे आकार में छोटे रहें। इन वृक्षों को घर के किसी भी हिस्से में रखा जा सकता है। आम, अमरूद, अनार, मौसम्बी, रबड़, पीपल, अंजीर, चीकू, शहतूत, पहाड़ी गुलाब, लीची, आंवला, नींबू, अमलतास, बरगद, संतरा, गूलर, गुलमोहर, नीम, नाशपती, चमेली, देवदार, सेमल इत्यादि के बोन्साई वृक्ष लगाए जा सकते हैं।
वेनूली अध्ययन समूह के लिए, बोन्साई सिर्फ एक बढ़ते लघु पौधों की तुलना में बहुत अधिक है। एक व्यक्ति के लिए मात्र खेल के रूप में शुरुआत हुई यह कला आज पूरे समूह के लिए एक प्रकार की साधना बन गई है, जो इन्हें धैर्य का महत्व और जीवन की तरलता को सिखाती है। इस समूह की स्थापना कई साल पहले मेरठ के एक निवासी स्वरूप जी ने की, प्रारंभ में लगभग 20 छात्रों को मुफ्त में बोन्साई कला का अध्ययन कराया। यह समूह महीने में एक बार मिलता है और इस समूह के छात्रों को सर्वप्रथम धैर्य रखना सिखाया जाता है। इसके साथ ही इसमें आपकी रूचि का होना अत्यंत आवश्यक है, क्योंकि आप इन वृक्षों को उनकी समजाती वृक्षों की तुलना में छोटे गमलों में अपनी मनचाही आकृति के अनुसार उगा रहे हैं इसलिए इन्हें विशेष उपचार की आवश्यकता होती है। स्वरूप जी के स्वयं के घर में 200 से अधिक बोन्साई वृक्ष है, जिनमें वे दो से तीन घंटे का समय रोजाना देते हैं।
बोन्साई वृक्ष लगाने की विधि:
बोन्साई की खेती और देखभाल के लिए विशेष तकनीकों और उपकरणों की आवश्यकता होती है जो छोटे गमलों में पेड़ों के विकास और दीर्घकालिक रखरखाव के अनुकूल हों।
वृक्षों का चयन: वृक्षों का चयन करते समय अनुकूलित वातावरण का ध्यान रखें एवं उनके फूलों की सुन्दरता, कलियों व पत्तियों के रंग-रूप आदि पर भी विशेष ध्यान दें।
गमलों का चयन: बोन्साई हेतु उथले गमलों का प्रयोग करना चाहिए। इनकी जड़ों के आसपास मिट्टी कम होनी चाहिए। गोलाकार, वर्गाकार, आयताकार, अण्डाकार आदि उथले गमले इन पौधों के लिए उचित होते हैं। गमलों में जल निकासी का क्षेत्र बड़ा होना चाहिए।
गमला बदलना: धीरे बढ़ने वाले पौधे गर्म व आद्र जलवायु में तीन-चार वर्ष बाद व शुष्क जलवायु में चार-छह वर्ष बाद गमला बदलना चाहिए। गमला बदलने से तात्पर्य पौधे को निकालकर दुबारा लगाने से है।
कांट-छांट: मुख्यत: ग्रीष्म ऋतु के प्रारंभ होते ही इसकी कांट-छांट का कार्य किया जाना चाहिए। सदाबहार पौधों की कांट-छांट सर्दियां शुरू होने से पहले की जानी चाहिए। गमलों में उद्यान की मिट्टी, पत्ती की खाद और बालू रेत की बराबर मात्रा मिलाकर मिश्रण तैयार करें। पौधे को मिट्टी सहित गमले से निकालकर जड़ों से मिट्टी लकड़ी की सहायता से झाड़ दें। पर एक तिहाई मिट्टी जड़ों में लगी रहनी चाहिए। कम आयु के पौधों की जड़ों की कांट-छांट गहरी व अधिक आयु के पौधों की हल्की करनी चाहिए।
पौधों को आकार देना: कंटाई-छंटाई का मुख्य उद्देश्य पौधे को एक मनचाहा आकार प्रदान करना होता है। बोन्साई को लकड़ी इत्यादि का सहारा नहीं देना चाहिए। पतली शाखाओं को तांबे या एल्युमीनियम के तारों (Copper or Aluminum Wires) के सहारे सुनिश्चित दिशा दी जानी चाहिए। शाखाओं के मजबूत होने पर तारों को हटा देना चाहिए।
सिंचाई: प्रतिदिन हल्की सिंचाई करनी चाहिए। पौधों पर पानी फव्वारे से डालें। पात्र अथवा गमले के नीचे से रिसाव होने तक सिंचाई करें। मिट्टी गीली होने पर सिंचाई न करें।
बोन्साई वृक्ष के लाभ:
बोन्साई के वृक्ष आपके घर व उद्यान के सौन्दर्य पर चार चांद लगा देते हैं।
दूसरे पेड़ पौधों को अधिक पानी की आवश्यकता होती है, परंतु बोन्साई के पेड़ छोटे होते हैं, इसलिए इनकी देखरेख में मामूली समय खर्च होता है एवं सिंचाई में बहुत ही कम पानी लगता है।
आजकल बोन्साई वृक्ष एक अच्छे रोजगार के रूप में उभर रहा है। आप भी बोन्साई वृक्ष की पौधशाला या नर्सरी (Nursery) लगाकर इसका व्यापार शुरू कर सकते हैं और अपनी आय बढ़ा सकते हैं।
घर में बोन्साई के पेड़ लगाकर भावी पीढ़ी को पेड़-पौधों के महत्व के बारे में आसानी से समझाया जा सकता है।
बोन्साई वृक्ष के हानि:
विशेष देख रेख के अभाव में यह वृक्ष नष्ट हो जाते हैं।
समय पर यदि इनकी कांट छांट न की जाए तो इनकी आकृति एवं स्वरूप बदल जाता हैं एवं यह अपना सौंदर्य खो बैठते हैं।
कांटेदार बोन्साई के पौधों को घर में नहीं लगाना चाहिए। वह हाथों में चुभकर नुकसान पहुंचा सकते हैं। बच्चों को भी नुकसान पहुंचा सकते हैं।
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