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पृथ्वी पर रहने वाला प्रत्येक मनुष्य यह जानने का जिज्ञासु होता है कि, आखिर इस जीवन और ब्रह्मांड की अंतिम नियति क्या है? परलोक सिद्धांत या एस्केटोलॉजी (Eschatology) ऐसे ही कुछ प्रश्नों के उत्तर ढूंढ़ने का प्रयास करती है। दूसरे शब्दों में, परलोक सिद्धांत, धर्मशास्त्र की वह शाखा है, जो आत्मा और मानव जाति की मृत्यु, निर्णय और अंतिम नियति से सम्बंधित है। कई धर्मों ने परलोक सिद्धांत को भविष्य में होने वाली घटनाओं से सम्बंधित माना है, जिसकी भविष्यवाणी पवित्र ग्रंथों या लोक-कथाओं में की गयी है। परलोक सिद्धांत को लेकर, प्रत्येक धर्म के अपने विश्वास और मान्यताएं हैं, इसलिए ईसाई धर्म में भी आत्मा और मानव की मृत्यु, निर्णय और अंतिम नियति को लेकर अपने विचार हैं, जिनका अध्ययन ईसाई एस्केटोलॉजी के अंतर्गत किया जाता है। ईसाई धर्मशास्त्र की यह शाखा, ‘अंतिम वस्तुओं’ के अध्ययन से सम्बंधित है, चाहे वह अंत व्यक्ति के जीवन का हो या फिर एक युग का। यह दुनिया तथा परमात्मा के राज्य की प्रकृति के अंत के अध्ययन से भी सम्बंधित है। व्यापक रूप से यह पुराने और नए नियम (Old Testament & New Testament) में बाइबिल (Bible) ग्रंथ पर आधारित व्यक्तिगत आत्मा और परमात्मा के नियमों की अंतिम नियति पर केंद्रित है। यह मृत्यु और उसके बाद के जीवन, स्वर्ग और नर्क, ईसा मसीह के दूसरे आगमन, मृतकों के पुनरुत्थान, उत्साह, प्रलय, दुनिया के अंत, अंतिम निर्णय और दुनिया में आने वाले नए स्वर्ग और नई पृथ्वी जैसे मामलों का अध्ययन करती है। यह एक ‘नये स्वर्ग और नई पृथ्वी’ की पूर्ण प्राप्ति में ईश्वर द्वारा किये गये वादों और उद्देश्यों की पूर्ति की धर्मशास्त्रीय कल्पना भी है, जो विभिन्न चर्चों और उससे बाहर, ईसाई प्रथा को आकार देने में केंद्रीय भूमिका निभा रही है। ईसाई एस्केटोलॉजी के इतिहास की बात करें तो, यह बाइबिल में वर्णित उल्लेखों जैसे ओलिवेट प्रवचन (Olivet Discourse), द शीप एंड गॉट्स (The Sheep and the Goats), और ईसा मसीह द्वारा अंत समय के प्रवचनों पर आधारित है। ईसाई एस्केटोलॉजी, शब्द का प्रयोग सबसे पहले लुथेरन (Lutheran) धर्मशास्त्री, अब्राहम कैलोवियस (Abraham Calovius) द्वारा किया गया था, जिसका सामान्य उपयोग 19वीं शताब्दी में किया गया। एस्केटोलॉजी में बढ़ती आधुनिक रुचि एंग्लोफोन (Anglophone) ईसाई धर्म के विकास से जुड़ी है। 18वीं और 19वीं शताब्दियों में ईसाई धर्म के विभिन्न पंथ पोस्टमिलेनियल (Postmillennial - यह विश्वास कि, ईसा मसीह का धरती पर दूसरा आगमन सहस्त्राब्दी या एक हजार वर्ष बाद होगा) और प्रीमेलेनियलिज्म (Premillennialism - यह विश्वास कि, ईसा मसीह सहस्त्राब्दी से पूर्व धरती पर वापस आ जाएंगे), जैसे विश्वासों पर रूचि रखने लगे, जिसकी वजह से पश्चिमी अफ्रीका (Africa) और एशिया (Asia) में ईसाई धर्म और ईसाई मिशनों (Missions) में एस्केटोलॉजी के प्रति रूचि बढ़ने लगी। इसके बाद 20वीं शताब्दी के दौरान जर्मन (German) विद्वान भी एस्केटोलॉजी में रूचि लेने लगे। 1800 के दशक में, ईसाई धर्मशास्त्रियों के एक समूह ने ‘बुक ऑफ डैनियल’ (Book of Daniel) और ‘बुक ऑफ रिविलेशन’ (Book of Revelation) में उल्लेखित एस्केटोलॉजी से सम्बंधित निहितार्थों का अध्ययन करना शुरू किया, जिससे एस्केटोलॉजी में ईसाई धर्मशास्त्रियों की रूचि बढ़ने लगी।
ईसाई एस्केटोलॉजी के इतिहास की बात करें तो, यह बाइबिल में वर्णित उल्लेखों जैसे ओलिवेट प्रवचन (Olivet Discourse), द शीप एंड गॉट्स (The Sheep and the Goats), और ईसा मसीह द्वारा अंत समय के प्रवचनों पर आधारित है। ईसाई एस्केटोलॉजी, शब्द का प्रयोग सबसे पहले लुथेरन (Lutheran) धर्मशास्त्री, अब्राहम कैलोवियस (Abraham Calovius) द्वारा किया गया था, जिसका सामान्य उपयोग 19वीं शताब्दी में किया गया। एस्केटोलॉजी में बढ़ती आधुनिक रुचि एंग्लोफोन (Anglophone) ईसाई धर्म के विकास से जुड़ी है। 18वीं और 19वीं शताब्दियों में ईसाई धर्म के विभिन्न पंथ पोस्टमिलेनियल (Postmillennial - यह विश्वास कि, ईसा मसीह का धरती पर दूसरा आगमन सहस्त्राब्दी या एक हजार वर्ष बाद होगा) और प्रीमेलेनियलिज्म (Premillennialism - यह विश्वास कि, ईसा मसीह सहस्त्राब्दी से पूर्व धरती पर वापस आ जाएंगे), जैसे विश्वासों पर रूचि रखने लगे, जिसकी वजह से पश्चिमी अफ्रीका (Africa) और एशिया (Asia) में ईसाई धर्म और ईसाई मिशनों (Missions) में एस्केटोलॉजी के प्रति रूचि बढ़ने लगी। इसके बाद 20वीं शताब्दी के दौरान जर्मन (German) विद्वान भी एस्केटोलॉजी में रूचि लेने लगे। 1800 के दशक में, ईसाई धर्मशास्त्रियों के एक समूह ने ‘बुक ऑफ डैनियल’ (Book of Daniel) और ‘बुक ऑफ रिविलेशन’ (Book of Revelation) में उल्लेखित एस्केटोलॉजी से सम्बंधित निहितार्थों का अध्ययन करना शुरू किया, जिससे एस्केटोलॉजी में ईसाई धर्मशास्त्रियों की रूचि बढ़ने लगी।  बुक ऑफ रिविलेशन, नए ईसाई नियमों की अंतिम पुस्तक मानी जाती है, और इसमें अंतिम नियति के संदर्भ में कुछ दृष्टिकोणों जैसे प्रीटरिज्म (Preterism), फ्यूचरिज्म (Futurism), हिस्टोरिसिज्म (Historicism), आइडलिज्म (Idealism) आदि की व्याख्या की गयी है। प्रीटरिज्म, के अनुसार बाइबिल में मौजूद कुछ या अनेकों भविष्यवाणियां ऐसी हैं, जो कि, पहले ही घटित हो चुकी हैं। इसके अनुसार,   बुक ऑफ रिविलेशन में उन घटनाओं की भविष्यवाणी की गयी थी, जो कि, पहली शताब्दी में पूरी हो चुकी हैं। बाइबिल में उल्लेखित ट्रिब्यूलेशन (Tribulation – सात वर्षीय विनाश काल), 70 ईस्वी में हुआ था, और इसकी भविष्यवाणी पहले ही कर दी गयी थी। हिस्टोरिसिज्म, बाइबिल की भविष्यवाणियों की व्याख्या का एक तरीका है, जो बाइबिल में मौजूद प्रतीकों या आंकड़ों को ऐतिहासिक व्यक्तियों, राष्ट्रों या घटनाओं के साथ जोड़ता है। फ्यूचरिज्म दृष्टिकोण के अनुसार, भविष्य में ऐसी कई घटनाएं होने वाली हैं, जिनकी भविष्यवाणियाँ पहले से ही की गयी हैं। अधिकांश भविष्यवाणियां अराजकता के वैश्विक समय के दौरान पूरी होंगी, जिन्हें ग्रेट (Great) ट्रिब्यूलेशन कहा जाता है। फ्यूचरिज्म, आमतौर पर प्रीमेलेनियलिज्म  और डिस्पेंशनलिज्म (Dispensationalism – बाइबिल के लिए एक धार्मिक व्याख्यात्मक प्रणाली, जिसके अनुसार, परमेश्वर द्वारा निर्धारित प्रत्येक युग को एक निश्चित तरीके से प्रशासित किया जाता है, जिसका प्रबंधक मनुष्य होता है) से सम्बंधित है। आइडलिज्म दृष्टिकोण, प्रतीकात्मक या साहित्यिक उल्लेखों की निरंतर पूर्ति और आध्यात्मिक घटनाओं की व्याख्या करता है। बाइबिल के अनुसार, सहस्त्राब्दी युग पृथ्वी के इतिहास को समाप्त कर देगा हालाँकि, हजार वर्ष बाद यह इतिहास पुनः शुरू हो जायेगा। इस प्रकार के अनेकों दृष्टिकोण मानव और ब्रह्मांड की मृत्यु, निर्णय और अंतिम नियति को लेकर ईसाई धार्मिक ग्रंथों में मौजूद हैं, जिनका अध्ययन ईसाई एस्केटोलॉजी के अंतर्गत किया जा रहा है।
बुक ऑफ रिविलेशन, नए ईसाई नियमों की अंतिम पुस्तक मानी जाती है, और इसमें अंतिम नियति के संदर्भ में कुछ दृष्टिकोणों जैसे प्रीटरिज्म (Preterism), फ्यूचरिज्म (Futurism), हिस्टोरिसिज्म (Historicism), आइडलिज्म (Idealism) आदि की व्याख्या की गयी है। प्रीटरिज्म, के अनुसार बाइबिल में मौजूद कुछ या अनेकों भविष्यवाणियां ऐसी हैं, जो कि, पहले ही घटित हो चुकी हैं। इसके अनुसार,   बुक ऑफ रिविलेशन में उन घटनाओं की भविष्यवाणी की गयी थी, जो कि, पहली शताब्दी में पूरी हो चुकी हैं। बाइबिल में उल्लेखित ट्रिब्यूलेशन (Tribulation – सात वर्षीय विनाश काल), 70 ईस्वी में हुआ था, और इसकी भविष्यवाणी पहले ही कर दी गयी थी। हिस्टोरिसिज्म, बाइबिल की भविष्यवाणियों की व्याख्या का एक तरीका है, जो बाइबिल में मौजूद प्रतीकों या आंकड़ों को ऐतिहासिक व्यक्तियों, राष्ट्रों या घटनाओं के साथ जोड़ता है। फ्यूचरिज्म दृष्टिकोण के अनुसार, भविष्य में ऐसी कई घटनाएं होने वाली हैं, जिनकी भविष्यवाणियाँ पहले से ही की गयी हैं। अधिकांश भविष्यवाणियां अराजकता के वैश्विक समय के दौरान पूरी होंगी, जिन्हें ग्रेट (Great) ट्रिब्यूलेशन कहा जाता है। फ्यूचरिज्म, आमतौर पर प्रीमेलेनियलिज्म  और डिस्पेंशनलिज्म (Dispensationalism – बाइबिल के लिए एक धार्मिक व्याख्यात्मक प्रणाली, जिसके अनुसार, परमेश्वर द्वारा निर्धारित प्रत्येक युग को एक निश्चित तरीके से प्रशासित किया जाता है, जिसका प्रबंधक मनुष्य होता है) से सम्बंधित है। आइडलिज्म दृष्टिकोण, प्रतीकात्मक या साहित्यिक उल्लेखों की निरंतर पूर्ति और आध्यात्मिक घटनाओं की व्याख्या करता है। बाइबिल के अनुसार, सहस्त्राब्दी युग पृथ्वी के इतिहास को समाप्त कर देगा हालाँकि, हजार वर्ष बाद यह इतिहास पुनः शुरू हो जायेगा। इस प्रकार के अनेकों दृष्टिकोण मानव और ब्रह्मांड की मृत्यु, निर्णय और अंतिम नियति को लेकर ईसाई धार्मिक ग्रंथों में मौजूद हैं, जिनका अध्ययन ईसाई एस्केटोलॉजी के अंतर्गत किया जा रहा है।   
 
                                         
                                         
                                         
                                         
                                        