हमारा ब्रह्मांड बहुत सारे रहस्यों से भरा है, जहाँ असंख़्य तारे, ग्रह, नक्षत्र और आकाशगंगाएं विद्यमान हैं। हमारी आकाशगंगा मिल्की वे (Milky Way) में ही अनगिनत सौर मंडल मौजूद हैं। इतने बड़े ब्रह्मांड में पृथ्वी एकमात्र ऐसा ग्रह है, जहां जीवन मौजूद है। इस ग्रह के अलावा अभी तक कहीं और कोई भी जीवित प्रजाति नहीं खोजी गई है। अत: हम कह सकते हैं कि ज्ञात जानकारी से अभी तक केवल हमारे सौर मंडल में ही चंद्र ग्रहण और सूर्य ग्रहण का पता स्पष्ट रूप से लगाया गया है। कई हजार सालों से मानव सूर्य ग्रहण और चंद्र ग्रहण की भविष्यवाणी करते आए हैं। आधुनिक समय में वैज्ञानिकों के पास कई ऐसी उन्नत तकनीक उपलब्ध हैं, जिससे ग्रहणों की सटीक भविष्यवाणी करना सरल हो जाता है, किंतु प्रचीन काल में जब आधुनिक उपकरण मौजूद नहीं थे, तब भी लोग विभिन्न तरीकों से सूर्य ग्रहण और चंद्र ग्रहण की भविष्यवाणी किया करते थे। इस कार्य के लिए किसी विशेष प्रकार के ज्ञान और कौशल की आवश्यकता नहीं होती थी बल्कि जिस प्रकार खेती करने के लिए सही समय और मौसम की गणना की जाती थी एवं अलग-अलग सभ्यता और संस्कृति में कैलेंडर बनाए जाते थे। उसी प्रकार आसमान में देखकर और तारों की दिशाओं की गणना करके सूर्य ग्रहण और चंद्र ग्रहण की भविष्यवाणी भी की जाती थी। पुराने समय में लोगों को इस बात की जानकारी नहीं थी कि पृथ्वी का आकार गोल है और सौर मंडल के अन्य ग्रहों की भाँति वह सूर्य का चक्कर लगाती है। परंतु जैसे–जैसे लोगों ने सूर्य, चन्द्रमा और तारों की गति को रिकॉर्ड करना आरम्भ किया वैसे-वैसे उन्हें आकाश में उपस्थित तारों व नक्षत्रों के पैटर्न या आकृतियों का ज्ञान हुआ। प्राचीन मेसोपोटामियों (Mesopotamians) द्वारा सर्वप्रथम देखा गाया आकाशीय सैरॉस चक्र (Saros Cycle) जो सूर्य ग्रहण की भविष्यवाणी करने के लिए सबसे स्पष्ट पैटर्न में से एक है। इस श्रृंखला में प्रत्येक 223 चंद्र महीनों के अंतराल में एक सूर्य ग्रहण होता है।
हालाँकि सभी सैरॉस ग्रहण एक ही स्थान पर नहीं होते हैं किंतु फिर भी एक-तिहाई ग्रहण पृथ्वी के चारों ओर देखे जा सकते हैं। सैरॉस के माध्यम से सूर्य ग्रहणों की भविष्यवाणी करने में लोगों को तीन प्रकार की चुनौतियों का सामना करना पड़ता है, पहली यह कि प्रत्येक तीन में से दो ग्रहण सबसे पहले देखे गए ग्रहण से बहुत अधिक दूर जा रहे हैं। दूसरी यह कि सूर्य ग्रहण अधिकांश देर रात के समय होता है जिसे देखना कठिन हो जाता है, तीसरी चुनौती यह है कि कई सैरॉस चक्र एक ही समय में उत्पन्न हो जाते हैं। उदाहरण के लिए वर्ष 2017 का सूर्य ग्रहण जो उत्तरी अमेरिका (North America) से होकर गुजरता हुआ पाया गाया था और अब ऐसा अनुमान लगाया गया है कि वर्ष 2024 में देश के टेक्सास (Texas) से मेन (Maine) तक फैलेगा। ग्रहणों की भविष्यवाणी में पृथ्वी के गुरुत्वाकर्षण बल (Gravitational Force) के अध्ययन का विशेष योगदान है। जिसका श्रेय अंग्रेजी गणितज्ञ, भौतिक विज्ञानी, खगोलशास्त्री आइज़ेक न्यूटन (Isaac Newton) को जाता है, जिन्होने गुरुत्वाकर्षण के सार्वभौमिक नियम की खोज की। वह जान गए थे कि हर क्रिया की एक समान और विपरीत प्रतिक्रिया होती है और गुरुत्वाकर्षण का बल परस्पर और दोनों दिशाओं में सामान रूप से होना चाहिए।
अलग-अलग संस्कृतियों और सभ्यताओं में प्राचीन खगोलविदों की टिप्पणियों में सूर्य ग्रहणों का एक लंबा इतिहास रहा है, जो प्राचीन चीन (Ancient China) और बेबीलोन (Babylon) से बचे शिलालेखों में कम से कम 2500 ईसा पूर्व का है। प्राचीन चीनी ज्योतिषी, 2300 ईसा पूर्व तक परिष्कृत वेधशाला से सम्बंधित थे और 2650 ईसा पूर्व से ही खगोल विज्ञान के बारे में लिख रहे थे। सम्राट के भविष्य के स्वास्थ्य और सफलताओं का पूर्वानुमान लगाने के लिए सूर्य ग्रहणों का अवलोकन उनके ज्योतिषियों द्वारा किया जाता था, जो कि सम्राट के ज्योतिषियों का एक महत्वपूर्ण कार्य हुआ करता था।
पश्चिम राष्ट्रों की बात करें तो, मेसोपोटामियन क्षेत्र (Mesopotamian Region) में इस सभ्यता के समय की बेबीलोन के मिट्टी के शिलालेखों को पर्यवेक्षकों द्वारा 3 मई, 1375 ईसा पूर्व उगरिट (Ugarit) में देखा गया, जिसमें सबसे पहले सूर्य ग्रहण को दर्ज़ किया गया था। 1700 से 1681 ईसा पूर्व में मिले शिलालेखों से पता चलता है कि चीनी पर्यवेक्षकों की तरह, बेबीलोन के ज्योतिषी भी आकाशीय नक्षत्रों के बारे में जानकारी रखते थे, उनके रिकॉर्ड में बुध, शुक्र, सूर्य और चंद्रमा की गति के विषय में जानकारियाँ शामिल थी।
चंद्र ग्रहणों के लिए 223 महीने की अवधि की खोज बेबीलोन के खगोलविदों द्वारा की गई थी। प्राचीन मिस्र से प्राप्त हुए मंदिर के विभिन्न शिलालेखों पैपीरस (Papyrus) दस्तावेजों जैसे कि रिहेड पैपीरस (Rhind Papyrus) और मकबरे के चित्रों से इस सभ्यता के खगोलीय ज्ञान का पता चलता है। कई प्राचीन सभ्यताओं में सूर्य और चंद्र ग्रहणों की सटीक तिथियों और समय की भविष्यवाणी करने के उद्देश्य से नए तरीकों की खोज की गई, जिसके अंतर्गत उन्होंने इन तिथियों को महत्वपूर्ण घटनाओं के रूप में चिह्नित किया। ग्रहणों की सटीक भविष्यवाणी करने के लिए कुछ महत्वपूर्ण सूत्रों की खोज इसी प्रयास का ही परिणाम था।
निम्न सूत्र का प्रयोग वर्ष 2005 से 2050 के बीच चंद्र और सूर्य ग्रहणों की तिथि ज्ञात करने के लिए किया जाता है:
चंद्र ग्रहण
ΔT = 62.92 + 0.32217 ∗ t + 0.005589 ∗ t2
जहाँ:
y = वर्ष (year) + (माह (month) – 0.5) / 12
t = y – 2000
सूर्य ग्रहण
ΔT = 62.92 + 0.32217 ∗ t + 0.005589 ∗ t2
जहाँ:
y = वर्ष (year) + (माह (month) – 0.5) / 12
t = y – 2000
पृथ्वी के केंद्र से गुजरने वाले विमान पर पड़ने वाली चंद्रमा की छाया की गति की गणना करके सूर्य ग्रहणों की गणना की जा सकती है। तत्पश्चात, चंद्रमा की छाया को शंकु के रूप में पृथ्वी की सतह पर प्रक्षेपित किया जा सकता है। यह गणना बैसेलिअन (Besselian) तत्वों का उपयोग करके की जाती है। यह तत्व निम्नवत हैं:
एक्स (X) और वाई (Y): मौलिक विमान में छाया के केंद्र के निर्देशांक हैं।
डी (D): आकाशीय क्षेत्र पर छाया के अक्ष की दिशा है।
एल 1 (L1) और एल 2 (L2): मौलिक विमान में पेनुमब्रल और ओम्ब्रेल शंकु (Penumbral and Umbral Cone) की त्रिज़्या है।
एफ 1 (F1) और एफ 2 (F2): छाया के अक्ष के साथ बने पेन्यूमब्रल और ओम्ब्रेल छाया शंकु के कोण हैं।
μ: पंचांग घंटा कोण (Ephemeris Hour Angle)
अब इन मापदंडों, जो समय-निर्भर हैं की भिन्नता की गणना किसी दिए गए संदर्भ समय t0 के लिए बहुपद विस्तारों का उपयोग करके की जा सकती है।
a = a0 + a1 × t + a2 × t2 + a3 × t3
तीसरे क्रम का विस्तार सामान्य रूप से पर्याप्त है, t = t1, t0, t0 सबसे बड़े ग्रहण के तत्काल निकटतम घंटे के लिए स्थलीय गतिशील समय (Terrestrial Dynamical Time) है। प्राचीन काल से ग्रहणों की तिथियों को ज्ञात करने के लिए इसी प्रकार के तरीकों का प्रयोग किया जाता था, जो आज के खगोलशास्त्र में भी विशेष मह्त्व रखते हैं।
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