एक अनुमान के अनुसार भारत जल्द ही 1.5 बिलियन लोगों के साथ दुनिया का सबसे बड़ी जनसंख्या वाला देश बन जायेगा। संयुक्त राष्ट्र के जनसंख्या पुनरिक्षण के अनुमानों के अनुसार, भारत 2027 तक भारत की तेजी से बढती हुई जनसंख्या चीन की आबादी को पीछे छोड़ कर काफी आगे निकल जायेगी। अभी चीन की आबादी 1.41 बिलियन के लगभग है और भारत की 1.37 बिलियन है। चीन के मुकाबले भारत की ये जनसंख्या की खबर सुनकर हम अभी के लिये खुश तो हो सकते हैं, लेकिन ये आगे चलकर एक गंभीर समस्या बनेगी, क्योंकि उम्मीद है कि 2050 तक भारत की आबादी 230 मिलियन और बढ़ जायेगी। हाल ही में संयुक्त राष्ट्र जनसंख्या कोष द्वारा जारी एक रिपोर्ट में बताया गया कि 2010-2019 की अवधि में भारत की जनसंख्या वृद्धि दर काफी धीमी हो गई है, जो कि इसके लिए एक सकारात्मक सूचना है। एक रिपोर्ट के अनुसार, 2001 से 2011 के दशक की तुलना में 2010-2019 की अवधि में भारत की आबादी 4% कम हो गयी है।
संयुक्त राष्ट्र की रिपोर्ट में पाया गया है कि अधिकांश भारतीय महिलाएं गर्भ निरोध के लिए गर्भनिरोधक का इस्तेमाल कर रही हैं और परिवार नियोजन के आधुनिक तरीकों का उपयोग कर रही हैं। इस रिपोर्ट में पाया गया है कि कुछ बड़े उत्तरी राज्य को छोड़कर कई राज्यों में जनसंख्या वृद्धि दर प्रतिस्थापन स्तर की प्रजनन दर तक पहुंच गई है। महाराष्ट्र, पश्चिम बंगाल, केरल, तमिलनाडु, तेलंगाना, कर्नाटक और आंध्र प्रदेश में प्रजनन दर एक आदर्श प्रजनन दर से नीचे आ गई है। उत्तर प्रदेश, बिहार और मध्य प्रदेश राज्यों में भी प्रजनन दर गिर रही है, लेकिन इतनी तेज दर से नहीं क्योंकि इन राज्यों में महिलाएँ अपने प्रजनन और यौन अधिकारों का प्रयोग करने के लिए पर्याप्त स्वतंत्रत नहीं हैं। इसका प्रमुख कारण स्कूली शिक्षा की कमी, घर से बाहर कार्य करने में प्रतिबंध आदि हैं।
प्रजनन दर में कमी आने से हाल के दशकों में भारत में जनसंख्या वृद्धि की दर भी धीमी हो गई है। अनुमान है कि आने वाले दशकों में जनसंख्या वृद्धि कम होने वाली है। इस गिरावट की वजह बढ़ती शिक्षा का स्तर (विशेषकर महिलाओं के बीच, गरीबी के लिए जिम्मेदार कारको में गिरावट, शादी में देरी, महिलाओं की बढ़ती आर्थिक स्वतंत्रता और बढ़ता शहरीकरण माना जा रहा है। जिन राज्यों में प्रजनन दर अधिक थी, वहां भी इसमें गिरावट दर्ज की गई है। सरकारी सर्वेक्षण के अनुसार, 2017 में देश के 22 प्रमुख राज्यों में यह औसतन दर 2.2 प्रति महिला से कम थी, और आशंका है कि 2021 तक अधिकांश भारतीय राज्यों में यह दर 2.1 प्रति महिला बनी रहेगी। हालांकि, शहरी और ग्रामीण क्षेत्रों में इसमें काफी विविधता है। प्रजनन दर का अर्थ है बच्चों को जन्म देने तक की आयु (जो आमतौर पर 15 से 49 वर्ष की मानी जाती है) वाली प्रति 1000 स्त्रियों की इकाई के पीछे जीवित जन्में बच्चों की संख्या। भारत में महिलाओं की प्रजनन दर में हाल के दशकों में तेजी से गिरावट आई है, जैसा कि दक्षिणी एशिया के अन्य देशों में है।
जनसंख्या वृद्धि और आर्थिक विकास के बीच का संबंध प्रारंभ से ही विवादास्पद रहा है। उच्च आय वाले देशों में न्यून जनसंख्या वृद्धि सामाजिक और आर्थिक समस्याएं उत्पन्न करती है तो वहीं कम आय वाले देशों में उच्च जनसंख्या वृद्धि उनके विकास को धीमा कर देती है। अंतर्राष्ट्रीय प्रवास इस असंतुलन के मध्य सामान्जस्य बैठाने में सहायता करता है। न्यून जनसंख्या वृद्धि और सीमित प्रवासन राष्ट्रीय और वैश्विक आर्थिक असमानता में वृद्धि कर सकते हैं। जनसंख्या वृद्धि कई कारकों को प्रभावित करती है जैसे किसी देश की जनसंख्या की आयु संरचना, अंतर्राष्ट्रीय प्रवास, आर्थिक असमानता और किसी देश के कार्यबल का आकार। ये कारक समग्र आर्थिक विकास से प्रभावित और जनसंख्या वृद्धि दर दोनों से प्रभावित होते हैं।
किसी देश के सकल घरेलू उत्पाद (जीडीपी (GDP)) में परिवर्तन उसके आर्थिक विकास की दर को दर्शाता है। सकल घरेलू उत्पाद (जीडीपी) एक विशिष्ट समय अवधि में देश की सीमाओं के भीतर उत्पादित सभी तैयार वस्तुओं और सेवाओं का मौद्रिक मूल्य है। प्रति व्यक्ति आय उस आय को कहा जाता है, जब किसी देश के कुल राष्ट्रीय आय (NNP on Factor Cost) को उस देश की उस वर्ष की मध्यावधि तिथि (1 जुलाई) की जनसंख्या से विभाजित किया जाता है। यह हमें उस देश के निवासियों को प्राप्त होने वाली औसत आय की मौद्रिक जानकारी देता है। जीडीपी आर्थिक उत्पादन और राष्ट्रीय आय का एक संकेतक है, जिसे देश के बाहर स्रोतों से पूंजी मूल्यह्रास के कुल उत्पादन शुद्ध आय के रूप में परिभाषित किया जा सकता है। थॉमस पिकेटी (Thomas Piketty) (2014) ने अपनी पुस्तक में आर्थिक असमानता का अध्ययन किया। पिकेटी ने तर्क दिया कि जब पूंजी की प्रतिफल दर (Rate of Return) आर्थिक विकास दर से अधिक होती है, तो संभावित परिणाम पूंजी के स्वामित्व में केंद्रित होगा जो बढ़ती आर्थिक असमानता के लिए प्रमुख कारक है। इसके साथ ही आर्थिक नीतियां, आर्थिक असमानता के विकास में महत्वपूर्ण योगदान देती हैं। पूंजी की प्रतिफल दर और आर्थिक विकास के बीच बड़े अंतराल को कम करने के लिए इन अन्य कारकों के प्रभावों को बढ़ाना होगा। पिकेटी ने अनुमान लगाया कि भविष्य में संभवत: आर्थिक विकास धीमी गति से होगा, पूंजी की प्रतिफल दर से कम, क्योंकि जनसांख्यिकीय घटक बहुत कम बढ़ने की उम्मीद है। अन्य कई विद्वानों ने भी अनुमान लगाया कि जनसंख्या वृद्धि दर में कमी के कारण 20वीं सदी में अमेरिका में आर्थिक विकास भी कम रहेगा। जनसंख्या वृद्धि दुनिया के कई हिस्सों में घट रही है। दुनिया भर में जीवन स्तर को बढ़ाने के लिए आर्थिक विकास महत्वपूर्ण है और जीवन स्तर के विकास में जनसंख्या वृद्धि की एक महत्वपूर्ण भूमिका है, कुछ स्थितियों में यह प्रति व्यक्ति उत्पादन में वृद्धि में भी योगदान दे सकता है।
उच्च आय वाले देशों में, जनसंख्या वृद्धि कम है और कहीं-कहीं जनसंख्या में बुजुर्ग लोगों के उच्च अनुपात के साथ आयु संरचनाओं पर नकारात्मक प्रभाव डाल रही है। बड़ी संख्या में सेवानिवृत्त लोगों का बोझ कम किया जा सकता है, यदि इन देशों में जनसंख्या वृद्धि अधिक होती है, लेकिन वर्तमान स्थिति को देखते हुए इन देशों में भविष्य में प्रजनन दर घटेगी या मृत्यु दर वर्तमान स्तरों से बहुत नीचे गिर जाएगी। नतीजतन, प्राकृतिक जनसंख्या वृद्धि दर बहुत कम होने की संभावना है। अमेरिकी जनगणना ब्यूरो (2017) ने भविष्यवाणी की है कि उच्च आय वाले देशों में वार्षिक प्राकृतिक जनसंख्या वृद्धि 2050 तक -0.3% होगी। जनसंख्या वृद्धि दर में आयी कमी के कारण निम्न-से-उच्च आय वाले देशों में प्रवासन भी कम हो जाएगा जबकि कुछ निम्न-आय वाले देशों में उच्च जनसंख्या वृद्धि के दबाव बढ़ेगा। उच्च आय वाले देशों में उच्च जनसंख्या वृद्धि का एक अतिरिक्त लाभ यह है कि यह आर्थिक असमानता को कम करता है। उच्च जनसंख्या वृद्धि आम तौर पर बड़े परिवारों से जुड़ी होती है और बड़े परिवारों की विरासत को अधिक बच्चों में विभाजित किया जा सकता है। विरासत में मिली पूंजी, पूंजी की प्रतिफल दर क महत्वपूर्ण हिस्सा है, जिसे पिकेटी द्वारा दर्शाया गया है।
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