Post Viewership from Post Date to 08-Nov-2020
City Subscribers (FB+App) Website (Direct+Google) Email Instagram Total
1682 149 0 0 1831

***Scroll down to the bottom of the page for above post viewership metric definitions

पारिस्थितिक तंत्र को संतुलित बनाए रखने में महत्वपूर्ण योगदान देती हैं, गिद्ध प्रजातियां

मेरठ

 03-11-2020 03:23 PM
पंछीयाँ

रामायण में, गिद्धों के वीर राजा जटायु, ने मिथिला की राजकुमारी और भगवान राम की पत्नी सीता माता का अपहरण रोकने के लिए बहुत अधिक प्रयास किया और एक वीरतापूर्ण लड़ाई लड़ी। जटायु असफल हो गया और उसने युद्ध में अपने दोनों पंख खो दिए। लेकिन जिस दिशा में रावण, सीता माता का अपहरण कर ले गया, वह दिशा भगवान राम और उनके भाई लक्ष्मण को बताने के बाद ही उन्होंने अपनी अंतिम सांस ली। जटायु के वंशज, गिद्ध और स्केवेंजर (Scavengers) हैं। यह पर्यावरण को मृत सड़े जीवों से मुक्त रखने के लिए उत्तरदायी हैं और पारिस्थितिक तंत्र को संतुलित बनाए रखने में महत्वपूर्ण योगदान देते हैं। देश में गिद्धों की आबादी में भारी गिरावट आई है। पर्यावरण, वन और जलवायु परिवर्तन मंत्रालय ने पिछले साल मानसून सत्र के दौरान संसद को इस बारे में बताया कि पिछले तीन दशकों में इनकी आबादी 4 करोड से 19,000 हो गयी है। गिद्धों की अनेक प्रजातियां हैं, जिनमें से कुछ मेरठ में भी पायी जाती हैं। इन प्रजातियों में भारतीय गिद्ध (Indian vulture), लाल सिर वाला गिद्ध (Red-headed vulture), व्हाइट रमप्ड (White-rumped) गिद्ध, पतली चोंच वाला (Slender-billed) गिद्ध शामिल हैं। भारतीय गिद्ध जिसे वैज्ञानिक रूप से जिप्स इंडिकस (Gyps indicus) के नाम से जाना जाता है,  गिद्ध की एक पुरानी प्रजाति, जो भारत, पाकिस्तान और नेपाल का मूल निवासी है। भारतीय गिद्ध मध्यम आकार वाला और भारी होता है। इसका शरीर और गुप्त पंख हल्के रंग के होते हैं जबकि उड़ान पंख काले रंग के होते हैं।
इसके पंख चौड़े होते हैं और इसकी पूंछ छोटी होती है। सिर और गर्दन पर बाल नहीं पाये जाते हैं, जबकि चोंच लंबी होती है। यह 81-103 सेंटीमीटर लंबा होता है, जिसका पंख विस्तार 1.96–2.38 मीटर होता है जबकि वजन 5.5-6.3 किलोग्राम होता है। भारतीय गिद्ध मुख्य रूप से दक्षिण और मध्य भारत में चट्टानों पर रहते हैं, लेकिन राजस्थान में पेड़ों पर भी ये अपना घोंसला बनाने के लिए जाने जाते हैं। यह चतुर्भुज मंदिर की तरह उच्च मानव निर्मित संरचनाओं पर भी प्रजनन कर सकता है। अन्य गिद्धों की तरह, यह एक स्केवेंजर है, जो अपने भोजन के लिए शवों पर निर्भर है। बांग्लादेश, पाकिस्तान और भारत में भारतीय गिद्ध प्रजातियों की आबादी में 99%-97% की कमी आई है। 2000-2007 के बीच इस प्रजाति की वार्षिक गिरावट दर औसतन सोलह प्रतिशत से अधिक है। 2002 के बाद से प्रकृति संरक्षण के लिए अंतर्राष्ट्रीय संघ ने इसे लाल सूची में गंभीर रूप से संकटग्रस्त (Critically Endangered) के रूप में सूचीबद्ध किया है, चूंकि इनकी जनसंख्या में भारी गिरावट आई है। लाल सिर वाले गिद्ध जिन्हें सार्कोजिप्स काल्वस (Sarcogyps calvus) कहा जाता है, भारतीय काले गिद्ध या पोंडीचेरी (Pondicherry) गिद्ध के रूप में भी जाना जाता है। यह प्रजाति मुख्य रूप से भारतीय उपमहाद्वीप में पाई जाती है, जहां दक्षिण पूर्व एशिया के कुछ हिस्सों में छोटी-छोटी आबादी है। लाल सिर वाले गिद्धों की संख्या घटती जा रही है, लेकिन इस गिरावट की गति धीमी है। 2004 में प्रकृति संरक्षण के लिए अंतर्राष्ट्रीय संघ ने इस प्रजाति को कम चिंताजनक (Least concern) की श्रेणी से निकट संकटग्रस्त (Near threatened) की श्रेणी में स्थानांतरित किया। यह लंबाई में 76 से 86 सेंटीमीटर का मध्यम आकार का गिद्ध है, जिसका वजन 3.5 – 6.3 किलोग्राम तथा पंख विस्तार 1.99–2.6 मीटर तक होता है। वयस्क में नारंगी से गहरे लाल रंग का जबकि किशोर में लाल रंग का सिर पाया जाता है। लिंग के आधार पर परितारिका का रंग भी अलग होता है। यह गिद्ध ऐतिहासिक रूप से प्रचुर मात्रा में भारतीय उपमहाद्वीप में व्यापक रूप से फैला हुआ था। आज लाल सिर वाले गिद्ध की सीमा मुख्य रूप से उत्तरी भारत में स्थानीय है। व्हाइट रमप्ड गिद्ध जिसे वैज्ञानिक तौर पर जिप्स बेंगालेंसिस (Gyps bengalensis) कहा जाता है, एक पुराना गिद्ध है जो यूरोपीय ग्रिफ़ॉन (European Griffon) गिद्ध से संबंधित है। एक समय यह माना जाता था कि यह अफ्रीका के सफेद बैक्ड (Backed) गिद्ध से संबंधित है। 1990 के दशक तक दक्षिणी और दक्षिणपूर्वी एशिया में प्रजातियां बड़ी संख्या में मौजूद थीं, किंतु 1992 से 2007 के बीच इनकी संख्या में तेजी से गिरावट आयी, जो 99.9% तक पहुंच गई। प्रकृति संरक्षण के लिए अंतर्राष्ट्रीय संघ ने इसे गंभीर रूप से संकटग्रस्त की श्रेणी में वर्गीकृत किया है।
 पतली चोंच वाला गिद्ध Gyps tenuirostris) पुराने गिद्धों की हाल ही में मान्यता प्राप्त प्रजाति है। भारतीय गिद्ध केवल गंगा नदी के दक्षिण में पाया जाता है और चट्टानों पर प्रजनन करता है जबकि पतली चोंच वाला गिद्ध उप-हिमालयी क्षेत्रों और दक्षिण पूर्व एशिया में पाया जाता है और पेड़ों में अपना घोंसला बनाता है। प्रकृति संरक्षण के लिए अंतर्राष्ट्रीय संघ ने गिद्ध की इस प्रजाति को गंभीर रूप से संकटग्रस्त की श्रेणी में वर्गीकृत किया है। गिद्धों की विभिन्न प्रजातियों की संख्या में गिरावट का मुख्य कारण डायक्लोफिनाक (Diclofenac) विषाक्तता है जिसके कारण गिद्धों के गुर्दे खराब हुए और वे अंततः मर गए। डायक्लोफिनाक जब काम करने वाले जानवरों को दिया जाता है तो यह उनके जोड़ों के दर्द को कम करता है, जिससे पशु लंबे समय तक काम करते हैं। जब इन पशुओं के मृत मांस को गिद्ध द्वारा खाया जाता है तो मांस में मौजूद डायक्लोफिनाक गिद्ध के लिए जहर का काम करता है। इसे रोकने के लिए मार्च 2006 में भारत सरकार ने पशु के लिए डायक्लोफिनाक के चिकित्सा उपयोग पर प्रतिबंध लगाने की घोषणा की, जबकि इसकी जगह मेलॉक्सिकैम (Meloxicam) के उपयोग जो कि गिद्ध के लिए हानिकारक नहीं है, को डाइक्लोफेनाक के विकल्प के रूप में बढावा दिया। डायक्लोफिनाक के अलावा कारप्रोफेन (Carprofen), फ्लूनिक्सिन (Flunixin), आइबूप्रोफेन (Ibuprofen) और फेनिलबुटाज़ोन (Phenylbutazone) आदि गिद्ध की मृत्यु दर के साथ जुड़े हुए थे। भारतीय गिद्ध की कई प्रजातियों के लिए बंदी प्रजनन कार्यक्रम शुरू किए गए हैं। गिद्ध लंबे समय तक जीवित रहते हैं और इनमें प्रजनन भी धीमी गति से होता है, इसलिए कार्यक्रमों में दशकों का समय लगता है। गिद्ध लगभग पांच साल की उम्र में प्रजनन उम्र तक पहुंचते हैं।
कोविड-19 ने जहां पूरे विश्व को नकारात्मक रूप से प्रभावित किया है, वहीं इसका असर भारत के कैप्टिव रिअर्ड गिद्ध रिहाई कार्यक्रम (Captive-reared vulture release programme) पर भी पड़ा है। कोविड-19 के प्रकोप के कारण कैद में रखे गये 6 व्हाइट रमप्ड गिद्धों की रिहाई में देरी की गयी। भारत में गिद्धों का बंदी प्रजनन कार्यक्रम, गिद्धों की आबादी में भारी गिरावट का अध्ययन करने के लिए इस तरह की पहली पहल है। इन छह पक्षियों का अस्तित्व देश के बंदी-प्रजनन रिहाई कार्यक्रम के लिए महत्वपूर्ण है, जो 2001 में भारत में गिद्धों की आबादी में भारी गिरावट के कारण पिंजौर केंद्र में शुरू हुआ था। भारतीय गिद्धों की गिरावट ने पर्यावरण के संरक्षण को बुरी तरह प्रभावित किया है। सभी शवों को खाकर गिद्धों ने प्रदूषण को कम करने, बीमारी फैलाने और अवांछनीय स्तनपायी स्कैवेंजर को कम करने में मदद की थी। उनकी अनुपस्थिति में, जंगली कुत्तों और चूहों की आबादी के साथ-साथ उनके जूनोटिक (Zoonotic) रोग बहुत बढ़ गए हैं। इन सभी समस्याओं से मुक्त होने और पर्यावरण को संतुलित बनाने के लिए गिद्धों का संरक्षण अत्यधिक आवश्यक है।

संदर्भ:
https://avibase.bsc-eoc.org/species.jsp?avibaseid=21D7169D28644CD4
https://avibase.bsc-eoc.org/species.jsp?avibaseid=FC2346E6EF324F85
https://avibase.bsc-eoc.org/species.jsp?avibaseid=C255F69A6BC7F0DC
https://avibase.bsc-eoc.org/species.jsp?avibaseid=11324DC80E8BBB9F
https://en.wikipedia.org/wiki/Red-headed_vulture
https://en.wikipedia.org/wiki/White-rumped_vulture
https://en.wikipedia.org/wiki/Indian_vulture
https://en.gaonconnection.com/covid-19-delayed-indias-captive-reared-vulture-release-programme-will-they-fly-in-october/
चित्र सन्दर्भ:
पहली छवि मेरठ शहर में गिद्धों को दिखाती है।(prarang)
दूसरी छवि मेरठ शहर में पाए जाने वाले सफेद सिर वाले गिद्ध को दिखाती है।(prarang)
तीसरी छवि र|जा रवि वर्मा द्वारा जटायु पेंटिंग को दिखाती है।(wikipedia)
चौथी छवि में मेरठ शहर में लाल सिर वाले गिद्ध दिखाई देते हैं।(prarang)
***Definitions of the post viewership metrics on top of the page:
A. City Subscribers (FB + App) -This is the Total city-based unique subscribers from the Prarang Hindi FB page and the Prarang App who reached this specific post. Do note that any Prarang subscribers who visited this post from outside (Pin-Code range) the city OR did not login to their Facebook account during this time, are NOT included in this total.
B. Website (Google + Direct) -This is the Total viewership of readers who reached this post directly through their browsers and via Google search.
C. Total Viewership —This is the Sum of all Subscribers(FB+App), Website(Google+Direct), Email and Instagram who reached this Prarang post/page.
D. The Reach (Viewership) on the post is updated either on the 6th day from the day of posting or on the completion ( Day 31 or 32) of One Month from the day of posting. The numbers displayed are indicative of the cumulative count of each metric at the end of 5 DAYS or a FULL MONTH, from the day of Posting to respective hyper-local Prarang subscribers, in the city.

RECENT POST

  • अपने युग से कहीं आगे थी विंध्य नवपाषाण संस्कृति
    सभ्यताः 10000 ईसापूर्व से 2000 ईसापूर्व

     21-11-2024 09:28 AM


  • चोपता में देखने को मिलती है प्राकृतिक सुंदरता एवं आध्यात्मिकता का अनोखा समावेश
    पर्वत, चोटी व पठार

     20-11-2024 09:29 AM


  • आइए जानें, क़ुतुब मीनार में पाए जाने वाले विभिन्न भाषाओं के शिलालेखों के बारे में
    वास्तुकला 1 वाह्य भवन

     19-11-2024 09:22 AM


  • जानें, बेतवा और यमुना नदियों के संगम पर स्थित, हमीरपुर शहर के बारे में
    आधुनिक राज्य: 1947 से अब तक

     18-11-2024 09:31 AM


  • आइए, अंतर्राष्ट्रीय छात्र दिवस के मौके पर दौरा करें, हार्वर्ड विश्वविद्यालय का
    वास्तुकला 1 वाह्य भवन

     17-11-2024 09:30 AM


  • जानिए, कौन से जानवर, अपने बच्चों के लिए, बनते हैं बेहतरीन शिक्षक
    व्यवहारिक

     16-11-2024 09:17 AM


  • आइए जानें, उदासियों के ज़रिए, कैसे फैलाया, गुरु नानक ने प्रेम, करुणा और सच्चाई का संदेश
    विचार I - धर्म (मिथक / अनुष्ठान)

     15-11-2024 09:27 AM


  • जानें कैसे, शहरी व ग्रामीण स्वास्थ्य सेवाओं के बीच अंतर को पाटने का प्रयास चल रहा है
    विचार 2 दर्शनशास्त्र, गणित व दवा

     14-11-2024 09:20 AM


  • जानिए क्यों, मेरठ में गन्ने से निकला बगास, पर्यावरण और अर्थव्यवस्था के लिए है अहम
    नगरीकरण- शहर व शक्ति

     13-11-2024 09:22 AM


  • हमारे सौर मंडल में, एक बौने ग्रह के रूप में, प्लूटो का क्या है महत्त्व ?
    शुरुआतः 4 अरब ईसापूर्व से 0.2 करोड ईसापूर्व तक

     12-11-2024 09:29 AM






  • © - 2017 All content on this website, such as text, graphics, logos, button icons, software, images and its selection, arrangement, presentation & overall design, is the property of Indoeuropeans India Pvt. Ltd. and protected by international copyright laws.

    login_user_id