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कोविड-19 की वजह से मानव विकास की दिशा में पड़ सकता है संकट

मेरठ

 02-11-2020 04:10 PM
सिद्धान्त I-अवधारणा माप उपकरण (कागज/घड़ी)

सितम्बर 2018 में संयुक्त राष्ट्र विकास कार्यक्रम द्वारा जारी किए गए मानव विकास सूचकांक में भारत 189 देशों में से 130 वें स्थान पर था। दक्षिण एशिया के भीतर, भारत का मानव विकास सूचकांक मूल्य इस क्षेत्र के लिए औसत 0.638 से ऊपर रहा था, समान जनसंख्या आकार वाले देश बांग्लादेश और पाकिस्तान क्रमशः 136 और 150 वें स्थान पर थे। 2016 में, भारत का मानव विकास सूचकांक मूल्य 0.624 था और भारत 131वें स्थान पर था। प्रत्येक वर्ष संयुक्त राष्ट्र विकास कार्यक्रम अपनी वार्षिक रिपोर्ट (Report) में मानव विकास सूचकांक विवरण के आधार पर देशों को पंक्तिबद्ध करता है। मानव विकास सूचकांक एक देश के विकास के स्तर पर नज़र रखने के लिए सबसे अच्छे उपकरणों में से एक है, क्योंकि यह सभी प्रमुख सामाजिक और आर्थिक संकेतकों को जोड़ता है जो आर्थिक विकास के लिए उत्तरदायी हैं।
मानव विकास सूचकांक एक सांख्यिकीय उपकरण है जिसका उपयोग किसी देश की सामाजिक और आर्थिक आयामों में समग्र उपलब्धि को मापने के लिए किया जाता है। किसी देश के सामाजिक और आर्थिक आयाम लोगों के स्वास्थ्य, उनकी शिक्षा के स्तर और उनके जीवन स्तर पर आधारित होते हैं। 1990 में मानव विकास सूचकांक का निर्माण पाकिस्तानी अर्थशास्त्री महबूब उल हक द्वारा किया गया जो आगे संयुक्त राष्ट्र विकास कार्यक्रम द्वारा देश के विकास को मापने के लिए उपयोग किया गया था। अनुक्रमणिका की गणना चार प्रमुख सूचकांको को जोड़ती है: स्वास्थ्य के लिए जीवन प्रत्याशा, स्कूली शिक्षा के लिए प्रत्याशित वर्ष, स्कूली शिक्षा के लिए औसत वर्ष और प्रति व्यक्ति आय। लेकिन वर्तमान समय में कोरोना महामारी के व्यापक प्रभाव के कारण 1990 के बाद पहली बार भारत सहित विश्व के अधिकांश देशों के मानव विकास सूचकांक में गिरावट आ सकती है। संयुक्त राष्ट्र विकास कार्यक्रम के प्रशासक एखिम श्टाइनर (Achim Steiner) ने बताया कि वर्ष 2007-09 के वित्तीय संकट सहित पिछले 30 सालों में विश्व ने कई संकट देखे हैं। उनके मुताबिक हर संकट ने मानव विकास पर गहरा प्रहार किया है लेकिन फिर भी विकास के पथ पर प्रगति साल दर साल होती रही है। परंतु उन्होंने यह भी सचेत किया है कि कोविड-19 (Covid-19) की स्वास्थ्य, शिक्षा और आय पर तिहरी मार इस रुझान को बदल सकती है। जहां मानव विकास के बुनियादी क्षेत्रों में गिरावट निर्धन और धनी, हर क्षेत्र में अधिकांश देशों में महसूस की जा रही है, वहीं कोरोनावायरस के कारण मृतकों की संख्या तीन लाख से अधिक हो गई है, जबकि वैश्विक स्तर पर प्रति व्यक्ति आय साल 2020 में चार फ़ीसदी गिरने का अनुमान है। इन सभी चुनौतियों का सीधा असर मानव विकास में प्रगति की दिशा में पड़ने की संभावना है। कोविड-19 के ऐहतियाती उपायों के मद्देनज़र स्कूलों में तालाबन्दी होने से विश्व भर में 60 फ़ीसदी से अधिक बच्चे इंटरनेट के अभाव के कारण शिक्षा से वंचित हो गए हैं। इसके कारण कम मानव विकास वाले देशों में प्राथमिक शिक्षा स्तर पर 86 फ़ीसदी बच्चे स्कूली शिक्षा हासिल नहीं कर पा रहे हैं, जबकि विकास के उच्च स्तर वाले देशों में यह आँकड़ा 20 प्रतिशत है। मानव विकास में गिरावट उन विकासशील देशों में ज़्यादा दर्ज किए जाने की सम्भावना है, जो इस महामारी के सामाजिक व आर्थिक प्रभावों से निपटने में विकसित देशों की तुलना में ज्यादा मजबूत नहीं हैं।
कोरोनावायरस के कारण सिर्फ़ शिक्षा के क्षेत्र में ही विषमताएँ और गहरी नहीं हुई है, लैंगिक समानता, प्रजनन स्वास्थ्य, अवैतनिक देखभाल और लिंग आधारित हिंसा जैसे मुद्दों में भी प्रगति देखी गई। कोविड-19 संकट पर तत्काल सामाजिक-आर्थिक प्रतिक्रिया के लिए संयुक्त राष्ट्र के ढांचे में न्यायसम्य के महत्व पर जोर दिया गया है, जो एक सुरक्षित, लैंगिक रूप से समान, सुशासन के आधारभूत ढांचे को स्थापित करता है। यह इस संकट की जटिलता से निपटने के लिए पांच प्राथमिकता वाले कदमों की सिफारिश करता है: स्वास्थ्य प्रणालियों और सेवाओं की रक्षा करना; सामाजिक संरक्षा को मज़बूती प्रदान करना; रोज़गार, लघु एव मध्यम व्यवसायों और असंगठित क्षेत्र में श्रमिकों का संरक्षण सुनिश्चित करना; व्यापक आर्थिक नीतियों में सभी के हितों का ध्यान रखना; और सामाजिक सामंजस्य बनाने के लिए शांति, सुशासन और विश्वास को बढ़ावा देना। संयुक्त राष्ट्र विकास कार्यक्रम अंतरराष्ट्रीय समुदाय से इन कदमों का पालन करने के लिए विकासशील देशों की क्षमता में तेजी से निवेश करने का आह्वान करता है। 1990 से पहले, किसी देश के विकास का स्तर केवल उसकी आर्थिक वृद्धि से मापा जाता था। मानव विकास सूचकांक ने विकास प्रक्रिया के बारे में लोगों के सोचने के तरीके को बदलने में काफी सफलता प्राप्त की है। हालांकि, यह अभी भी कई समस्याओं से ग्रस्त है, जैसे इसे मापना काफी मुश्किल होता है। यदि देखा जाए तो मानव विकास सूचकांक में तीन मुख्य समस्याएं हैं। सबसे पहले, यह अपने घटकों के बीच तालमेल का अनुमान लगाता है। उदाहरण के लिए, मानव विकास सूचकांक जन्म के समय जीवन प्रत्याशा का उपयोग करके स्वास्थ्य को मापता है और प्रति व्यक्ति सकल घरेलू मूल्य का उपयोग करके आर्थिक स्थितियों को मापता है। तो एक ही मानव विकास सूचकांक की गणना दोनों के विभिन्न संयोजनों के साथ प्राप्त किया जाता है। मानव विकास सूचकांक देश के प्रति व्यक्ति सकल घरेलू उत्पाद के स्तर के अनुसार भिन्न होता है। मानव विकास सूचकांक अंतर्निहित विवरण की सटीकता और अर्थपूर्णता से भी जूझता है। मानव विकास सूचकांक समान सकल घरेलू उत्पाद वाले देशों के बीच अंतर नहीं करता है, लेकिन देशों के बीच आय असमानता के विभिन्न स्तरों या शिक्षा की गुणवत्ता के आधार पर अंतर करता है। किसी अनुक्रमणिका में गलत या अधूरे विवरण को शामिल करने से इसकी उपयोगिता कम हो जाती है।

संदर्भ :-
http://hdr.undp.org/en/content/covid-19-human-development-course-decline-year-first-time-1990
https://economictimes.indiatimes.com/definition/human-development-index
https://bit.ly/2NMYHok
https://qz.com/1456012/the-3-key-problems-with-the-uns-human-development-index/
चित्र सन्दर्भ:
पहली छवि मानव विकास सूचकांक ग्राफ में परिवर्तन दिखाती है।(undp)
दूसरी छवि 2019 के अनुसार मानव विकास सूचकांक में भारत रैंकिंग दिखाती है।(undp)

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