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अक्सर मेरठ के जंगलों या खेतों में महुआ (मधुका लोंगिफ़ोलिया) के वृक्ष देखने को मिल जाते हैं। महुआ मुख्यत: भारतीय उष्णकटिबन्धीय वृक्ष है, जो उत्तर भारत के मैदानी इलाकों और जंगलों में बड़े पैमाने पर पाया जाता है। यह 1200-1800 मीटर की ऊंचाई तक शुष्क उष्णकटिबंधीय और उपोष्णकटिबंधीय जंगलों के सीमांत क्षेत्रों में विकसित होता है। इसके लिए 2-46 ℃ के औसत तापमान, 550-1500 मिमी (Millimetre) औसत वार्षिक वर्षा और 40-90 प्रतिशत औसत आर्द्रता की आवश्यकता होती है। यह पादप जगत के सपोटेसी (Sapotaceae) वंश से संबंधित है। महुआ के वृक्ष भारत के अतिरिक्त अन्य एशियाई देशों जैसे फिलीपींस, पाकिस्तान, श्रीलंका से ऑस्ट्रेलिया में भी पाए जाते हैं। यह एक तेजी से बढ़ने वाला पेड़ है, जो लगभग 20 मीटर की ऊंचाई तक बढ़ता है, इस वृक्ष का प्रत्येक भाग स्थानीय लोगों द्वारा उपयोग में लाया जाता है, वे इस वृक्ष की छाल को औषधि के रूप में, फल को भोजन के रूप में और फूल मादक पदार्थ के रूप में उपयोग करते हैं। महुआ के फूलों का स्वाद मीठा होता है और इसमें विटामिन, प्रोटीन, खनिज और वसा की पर्याप्त मात्रा होती है। इसे किण्वित (हलवा, मीठी पुरी, बर्फी) और गैर-किण्वित (शराब) खाद्य उत्पादों को तैयार करने के लिए भी उपयोग किया जाता है.
 महुआ के फूलों का स्वाद मीठा होता है और इसमें विटामिन, प्रोटीन, खनिज और वसा की पर्याप्त मात्रा होती है। इसे किण्वित (हलवा, मीठी पुरी, बर्फी) और गैर-किण्वित (शराब) खाद्य उत्पादों को तैयार करने के लिए भी उपयोग किया जाता है. 
महुआ के फूलों के औषधीय गुण:
फूल के मेथनॉलिक अर्क में कुल प्रोटीन और एल्ब्यूमिन (Albumin) के सीरम (Serum) स्तर को बढ़ाकर एसजीओटी (SGOT), एसजीपीटी (SGPT), एएलपी (ALP) और कुल बिलीरुबिन (Bilirubin) के स्तर को घटाने पर संभावित सुरक्षात्मक प्रभाव देखा जा सकता है।
मीथेनॉलिक और एथेनॉलिक (Methanolic and Ethanolic) दोनों अर्क एक कारगर कृमिनाशक के रूप में कार्य करते हैं। 
जलीय और मेथनॉल (Methanol) दोनों बैसिलस सबटिलिस (Bacillus Subtilis) और क्लेबसिएला निमोनिया (Klebsiella Pneumonia) के लिए जलीय अर्क मेथनॉलिक की तुलना में अधिक जीवाणुरोधी सक्रियता दिखाता है। 
जलीय और शराबी दोनों का चूहे के टेल (Tail) पर रासायनिक ग्रेडेड खुराक के माध्यम से एनाल्जेसिक (Analgesic) प्रभाव का अध्ययन किया गया था, जो कि खुराक के मात्रा के अनुसार एनाल्जेसिक प्रभाव दिखाता है।
जैसे-जैसे फूलों के अर्क में विटामिन सी की सांद्रता बढ़ती है, तो फेरिक घटता है और प्रतिउपचारक क्षमता बढ़ जाती  है।
कोशिकाओं की व्यवहार्यता कम होने पर पुष्प अर्क की सांद्रता बढ़ जाए तो साइटोटोक्सिक (Cytotoxic) प्रभाव में वृद्धि होती है।
महुआ के फूलों का पारंपरिक उपयोग:
गैर-किण्वित फूल
1	मीठास के रूप में	महुआ के फूल को हलवे, मीठी पूड़ी, बर्फी जैसे कई व्यंजनों में मीठास के रूप में प्रयोग किया जाता है।	शर्करा की उच्च मात्रा की उपस्थिति के कारण (सुक्रोज, फ्रुक्टोज, अरबिनोज, माल्टोज, रमनोज)
2	केक तैयार करना - यह महुआ के फूल को चावल या अन्य अनाज या कंदमूल के साथ मिलाकर बनाया जाता है।
	भिगोए हुए चावल और महुआ के फूलों को मिलाकर पीसकर पेस्ट बनाया जाता है, जिसे साल की पत्तियों से ढक दिया जाता है और केक बनाने के लिए आंच में रखा जाता है।
3	प्रमुख अनाज के विकल्प के रूप में	यह आमतौर पर गरीब आदिवासी लोगों द्वारा उपयोग किया जाता है।
	फूलों को इमली और साल के बीज के साथ उबाला जाता है और संग्रहीत किया जाता है।
4	मवेशियों के लिए	स्पेंट फूल (किण्वन और आसवन के बाद छोड़े गए फूल) का उपयोग मवेशियों के लिए किया जाता है।	इसे मवेशियों को खिलाया जाता है, जिससे मवेशियों के स्वास्थ्य में सुधार और दूध उत्पादन में वृद्धि होती है।
किण्वित फूल
5	शराब - आदिवासी लोगों द्वारा सूखे महुआ के फूलों से उत्पादित किया जाता है। "महुआ दारू" में अल्कोहल सामग्री 20-40 (%) तक होती है।
6	महुली तैयारी - पारंपरिक रूप से उड़ीसा के स्थानीय लोगों द्वारा बनायी जाती है। " महुली " में अल्कोहल सामग्री 30-40 (%) के बीच होती है।
महुआ के फूलों का औषधीय उपयोग:
टॉनिक के रूप में उपयोग - इसके फूलों के रस में अधिक मात्रा में प्रोटीन होता है, इसलिए इसका उपयोग टॉनिक के रूप में किया जाता है।
चर्म रोग ठीक करते हैं -	खुजली से राहत दिलाने के लिए फूलों के रस को त्वचा पर लगाया जा सकता है.
आंखों के रोगों के उपचार हेतु - फूलों के रस का उपयोग नेत्र रोगों के उपचार के लिए भी किया जाता है।
रक्तापिता के उपचार हेतु - फूलों के रस का उपयोग रक्तस्राव को रोकने के लिए भी किया जाता है
"पित्त" के कारण सिरदर्द का इलाज - फूलों के रस का उपयोग नाक में बूंदों के रूप में डालने के लिए भी किया जाता है जिससे सिरदर्द का उपचार होता है.
दस्त और कोलाइटिस (Colitis) का उपचार - यह फूल दस्त और कोलाइटिस को ठीक करने के लिए एक दवा के रूप में कार्य करता है
लैक्टेशन को बढ़ाता है - फूल एक गैलेक्टागोग (Galactagogue) के रूप में कार्य करते हैं जो स्तन के दूध को बढ़ाने में मदद कर सकता है।
खांसी और ब्रोंकाइटिस (Bronchitis) का इलाज। 
बवासीर का इलाज - महुआ के फूल बवासीर को ठीक करने के लिए शीतलन एजेंट के रूप में कार्य करता है
महुआ के फूलों के मूल्य वर्धित उत्पाद
गैर-किण्वित फूल
1. प्यूरी और सॉस - ताजे फूलों से पुकेंसर हटाकर प्यूरी तैयार की जाती है.
2. रस - बेकरी और कन्फेक्शनरी में एक स्वीटनर के रूप में उपयोग किया जाता है।
3. महुआ का जैम - अतिरिक्त साइट्रिक एसिड के के साथ मिलाकर इसका जैम बनाया जाता है।
4. जेली - अमरूद के साथ मिलाकर इसकी जैली तैयार की जाती है ।
5. मुरब्बा -	खट्टे छिलके के साथ इसका मुरब्बा तैयार किया जाता है।
6. कैंडिड (Candid) फूल - सूखे फूल से तैयार किए जाते हैं.
7. महुआ पट्टी 
8. महुआ कैंडी 
9. महुआ टॉफी 
10. महुआ केक 
11. महुआ स्क्वैश 
12. महुआ के लड्डू 
किण्वित फूल
13. महुआ शराब - फूल के रस का किण्वन 16 डिग्री सेल्सियस पर शराब की गुणवत्ता का समर्थन करता है और शराब की मात्रा को 9.9% तक बढ़ाता है।
14. महुआ वर्माउथ - महुआ वरमाउथ (Vermouth) में 18.4 (%) अल्कोहल और 1.26 (mg / 100 g) टैनिन होता है। भंडारण के एक वर्ष के दौरान भी इसमें कोई गिरावट नहीं आती है।
15. साइट्रिक एसिड - एस्परगिलस नाइगर (Aspergillus niger) द्वारा महुआ के फूलों की सतह का किण्वन किया जाता है, 14 (%) चीनी, 0.07 (%) नाइट्रोजन स्तर और 4 (%) मेथनॉल स्तर पर, साइट्रिक एसिड का उत्पादन सबसे अधिक होता है।
उपरोक्त विवरण से ज्ञात होता है कि यह आर्थिक दृष्टि से लाभदायक है। महुआ के फूलों और उनके खाद्य उत्पादों की फसल के भंडारण और महुआ के फूलों के मूल्यवर्धन के लिए आधुनिक तकनीकों का अभाव गुणवत्ता को प्रभावित करते हैं। परिणामस्वरूप, गरीब आदिवासी और छोटे स्थानीय उद्यमी बहुत सारी  समस्याओं का सामना कर रहे हैं। इसके विषय में कहा जाता है कि “स्वर्ग है वहां जहां महुआ के वृक्ष हैं और नरक है वहां जहां शराब बनती है किंतु महुआ के वृक्ष नहीं हैं”। इसके फूलों के विषय में यह भ्रांति थी की इन्हें चमगादड़ों द्वारा खाया जाता है, जबकि शोध से ज्ञात हुआ है कि वे इसके परागकण को परागित कर एक स्थान से दूसरे स्थान में फैलाते हैं। छोटे चमगादड़ इसके बीज को 100 मीटर की दूरी तक फैलाते हैं, जबकि बड़े चमगादड़ 7 किलोमीटर की दूरी तक फैलाते हैं। किंतु अधिकांश इसे वृक्ष में ही खाते हैं इसलिए बीजों को भी उसी वृक्ष के नीचे गिरा देते हैं। मात्र 13% चमगादड़ फलों को वृक्ष से दूर लेकर जाते हैं।
इसके विषय में कहा जाता है कि “स्वर्ग है वहां जहां महुआ के वृक्ष हैं और नरक है वहां जहां शराब बनती है किंतु महुआ के वृक्ष नहीं हैं”। इसके फूलों के विषय में यह भ्रांति थी की इन्हें चमगादड़ों द्वारा खाया जाता है, जबकि शोध से ज्ञात हुआ है कि वे इसके परागकण को परागित कर एक स्थान से दूसरे स्थान में फैलाते हैं। छोटे चमगादड़ इसके बीज को 100 मीटर की दूरी तक फैलाते हैं, जबकि बड़े चमगादड़ 7 किलोमीटर की दूरी तक फैलाते हैं। किंतु अधिकांश इसे वृक्ष में ही खाते हैं इसलिए बीजों को भी उसी वृक्ष के नीचे गिरा देते हैं। मात्र 13% चमगादड़ फलों को वृक्ष से दूर लेकर जाते हैं।
जीवविज्ञानी पार्थसारथी तिरुचेंथिल नाथन ने चमगादड़ों पर गहनता से अध्ययन किया। 2004 में इन्हें एक साहित्य से पता चला कि चमगादड़ों द्वारा महुआ के फूल खाने के से पेड़ में फल लगने की संभावना नष्ट हो जाती है। इस तथ्य को जानने के बाद नाथन जी ने इस पर तीन वर्षों तक अध्ययन किया और ज्ञात किया की यह फूल को नष्ट नहीं करते वरन् इसे परागित करते हैं। हालांकि महुआ स्वयं को स्वत: परागित कर सकता है, लेकिन अध्ययन से पता चला है कि चमगादड़ द्वारा परागित फूलों में अपेक्षाकृत अधिक फल लगते हैं। चमगादड़ निशाचर होते हैं। महुआ के फूलों का रंग-रूप इस भांति होता है कि यह रात में भी चमगादड़ को अपनी ओर आकर्षित कर लेते हैं।
कई आदिवासी समुदायों द्वारा विशेषकर गोंड समुदाय महुआ की उपयोगिता के कारण इसे पवित्र मानते हैं, यह आदिवासी लोगों की संस्कृति का अभिन्न अंग है। वे इसकी पूजा करते हैं, इसके फूलों से बनी शराब पीना उनकी परंपरा का हिस्सा है, जो सदियों से चला आ रहा है। पारंपरिक रूप से इसकी कई फाइटोकेमिकल (Phytochemical) विशेषताओं के कारण इसका उपयोग सिरदर्द, दस्त, त्वचा और आंखों के रोगों सहित कई बीमारियों के लिए दवा के रूप में भी किया जाता है। इसकी खेती मुख्यत: गर्म और नम क्षेत्रों में की जाती है। वृक्ष की परिपक्वता के आधार पर एक वृक्ष से लगभग 20-200 किलोग्राम तक बीज उत्पादित होते हैं। इसमें मौजूद वसा का उपयोग त्वचा की देखभाल के लिए, साबुन या डिटर्जेंट के निर्माण के लिए और वनस्पति मक्खन के रूप में किया जाता है। इसका उपयोग ईंधन तेल के रूप में भी किया जाता है। तेल निकालने के बाद प्राप्त शेष बचे बीजों से अच्छे उर्वरक का निर्माण किया जाता है। फूलों से तैयार मादक पेय पदार्थों का उपयोग जानवरों को प्रभावित करने के लिए भी किया जाता है। पेड़ के कई हिस्सों, जिसमें छाल भी शामिल है, का उपयोग उनके औषधीय गुणों के लिए किया जाता है। इसके पत्तों को भारत में रेशम उत्पादित करने वाला कीड़ा एथेराए पफिया (Antheraea paphia) को खिलाया जाता है। इसके साथ ही इन्हें बकरियों और भेड़ों आदि को भी खिलाया जाता है। अपनी इन्हीं विशेषताओं के कारण आज यह आदिवासी समुदायों के लिए आजीविका का साधन भी बन गया है। किंतु भविष्य में यदि इसके उत्पादों का विस्तार होता है तो यह इन्हीं आदिवासी समुदायों के लिए खतरा बना जाएगा। महुआ के वनों को पुंजीपति वर्गों द्वारा अधिग्रहित कर लिया जाएगा और इन्हें इनके ही प्राकृतिक आवास से बेघर कर दिया जाएगा, यदि वे विरोध करते हैं तो हो सकता है कि उन्हें अपनी जान से ही हाथ धोना पड़ें। हालांकि इसके व्यापार की विश्व स्तर पर प्रसिद्ध होने की संभावना है।
चित्र सन्दर्भ:
पहली छवि महुआ के पेड़ की है।(wikipedia)
दूसरी छवि महुआ के फूलों की है।(pinterest)
तीसरी छवि में महुआ के फूलों का इस्तेमाल शराब बनाने के लिए किया गया है।(milap)
 
                                         
                                         
                                         
                                        