Post Viewership from Post Date to 09-Nov-2020
City Subscribers (FB+App) Website (Direct+Google) Email Instagram Total
2885 283 0 0 3168

***Scroll down to the bottom of the page for above post viewership metric definitions

आलमगीरपुर और हस्तिनापुर की खुदाई में महत्वपूर्ण लौह युग के निष्कर्ष

मेरठ

 29-10-2020 06:02 PM
मध्यकाल 1450 ईस्वी से 1780 ईस्वी तक

मानव जाति का इतिहास बहुत पुराना है, जिसे भिन्न-भिन्न सभ्यताओं के विकास के साथ स्पष्ट रूप से देखा जा सकता है। पुरातात्विक खुदाई से मिले साक्ष्यों ने मानव जाति के विकास को समझने में और भी अधिक सहायता प्रदान की है। आज हमारे समक्ष मौजूद कृषि उपकरणों का इतिहास पाषाण युग जितना पुराना है। प्राचीन किसानों या कारीगरों द्वारा पत्थर, लकड़ी, बांस आदि से बने औजारों का उपयोग किया जाता था, लेकिन उनमें से ज्यादातर लोहे के आते ही विलुप्त होने लग गए। भारतीय उपमहाद्वीप में लोहा सबसे पहले लगभग 1800 ईस्वी पूर्व में खोजा गया था। तकनीकी रूप से, इस्पात को कार्बन और लोहे के मिश्र धातु के रूप में परिभाषित किया गया है। 800 ईसा पूर्व भारतीय उपमहाद्वीप में खोजे गए लोहे के इस इस्पातन ने कृषि उपकरणों के निर्माण में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई, जिससे सभ्यता में एक बड़ी क्रांति आई थी।
प्राचीन काल में एक कृषि कार्यान्वयन के दौरान तकनीकी विकास का पता लगाने के लिए, पवित्र नदी गंगा के पुराने जलमार्ग पर स्थित प्राचीन शहर हस्तिनापुर से खुदाई की गई। एक 2400 वर्ष पुरानी सिकल ब्लेड (Sickle blade) की जांच की गई थी, जिससे पाया गया कि इस ब्लेड की सतह पर जंग का कोई निशान मौजूद नहीं था। ब्लेड एक घुमावदार, हाथ से पकड़े जाने वाला कृषि उपकरण है, जिसका इस्तेमाल आमतौर पर अनाज की फसल काटने या घास काटने के लिए किया जाता है। हस्तिनापुर स्थल से उत्खनन किए गए कृषि उपकरण बहुत अधिक नहीं हैं, लेकिन सिकल ब्लेड की खोज से पता चलता है कि उस अवधि में कृषि कार्यों में लोहे की प्रभावी भूमिका रही थी। यह तकनीकी पक्ष पर काफी उन्नति का संकेत देता है और पिछली अवधि के लोगों की आर्थिक स्थिति में क्रांति की ओर इशारा करता है।
हस्तिनापुर और आलमगीरपुर (जिला मेरठ), कौशांबी (जिला इलाहाबाद) और उज्जैन में (जिला उज्जैन, मध्य प्रदेश) लोहे की वस्तुओं को पहली बार चित्रित धूसर मृदभांड के रूप में एक विशिष्ट चीनी मिट्टी के साथ मिलाकर बनाया गया था। स्तर विज्ञान के अनुसार चित्रित धूसर मृदभांड सभ्यता के बाद के हैं, यह रूपार में उत्खनन और बीकानेर में अन्वेषण से साबित होता है। चूंकि चित्रित धूसर मृदभांड बीकानेर में हड़प्पा सभ्यता के बाद का बताया गया है, और सरस्वती या आधुनिक घग्गर की घाटी, जो भारत में आर्यों के प्रारंभिक निवास स्थान के रूप में जानी जाती है, और आर्य जनजातियों से जुड़े कई क्षेत्र गंगा के मैदान में पाए जाते हैं, तो ऐसा माना जा सकता है कि चित्रित धूसर मृदभांड संभवतः आर्यन बोलने वाले लोगों से संबंधित हो सकता है। चित्रित धूसर मृदभांड पश्चिमी गंगा के मैदान और भारतीय उपमहाद्वीप पर घग्गर-हकरा घाटी के लौह युग की भारतीय संस्कृति है, जो लगभग 1200 ईसा पूर्व से शुरू होकर 600 ईसा पूर्व तक चली।
इस दौरान धूमिल भूरे रंग की मिट्टी के बर्तन बनाये गये, जिनमें काले रंग के ज्यामितीय पैटर्न (Pattern) को उकेरा गया। गांव और शहरों का निर्माण किया गया जो कि हड़प्पा सभ्यता के शहरों जितने बड़े नहीं थे। इस दौरान घरेलू घोड़ों, हाथी दांत और लोहे की धातु को अधिकाधिक प्रयोग में लाया गया। इस संस्कृति को मध्य और उत्तर वैदिक काल अर्थात कुरु-पंचाल साम्राज्य से जोड़ा जाता है, जो सिंधु घाटी सभ्यता के पतन के बाद दक्षिण एशिया में पहला बड़ा राज्य था। इस प्रकार यह संस्कृति मगध साम्राज्य के महाजनपद राज्यों के उदय के साथ जुड़ी हुई है। इस संस्कृति में चावल, गेंहू, जौं का उत्पादन किया गया तथा पालतू पशुओं जैसे भेड़, सूअर और घोड़ों को पाला गया।
संस्कृति में छोटी झोपड़ियों से लेकर बड़े मकानों का निर्माण मलबे, मिट्टी या ईंटों से किया गया। साथ ही खेती में हल का उपयोग किया जाता था, चित्रित धूसर मृदभांड लोगों की कलाओं और शिल्पों का प्रतिनिधित्व आभूषणों (मृण्मूर्ति, पत्थर, चीनी मिट्टी, और कांच से बने), मानव और पशु मूर्तियों (मृण्मूर्ति से बने) के साथ-साथ "सजे हुए किनारों और ज्यामितीय रूपांकनों के लिए मृण्मूर्ति चक्र" द्वारा किया जाता है। चित्रित ग्रे वेयर कुम्हारी मानकीकरण की एक उल्लेखनीय परिणाम दिखाती है, यह दो आकृतियों के कटोरे, एक उथले ट्रे (Tray) और एक गहरी कटोरी अक्सर दीवारों और आधार के बीच एक तेज कोण के साथ श्रेष्ट है।
वहीं चौथी सहस्राब्दी ईसा पूर्व से दूसरी सहस्राब्दी ईसा पूर्व के कांस्य युग में पाए जाने वाले गेरू रंग के बर्तनों का भारत में काफी चलन था। इन बर्तनों का चलन उस समय पूर्वी पंजाब से उत्तर-पूर्वी राजस्थान और पश्चिमी उत्तर प्रदेश तक फैला हुआ था। इन मिट्टी के बर्तनों में एक लाल रंग दिखाई देता है, लेकिन ये खुदाई करने वाले पुरातत्वविदों की उंगलियों पर एक गेरू रंग छोड़ते थे। इसी वजह से इनका नाम गेरू रंग के बर्तन पड़ा था। इसके साथ ही इन्हें कभी-कभी काले रंग की चित्रित पट्टी और उकेरे गए प्रतिरूप से सजाया जाता था। दूसरी ओर, पुरातत्वविदों का कहना है कि गेरू रंग के बर्तनों को उन्नत हथियारों और उपकरणों, भाला और कवच, तांबे के धातु और अग्रिम रथ के साथ चिह्नित किया गया है। इसके साथ ही, इनकी वैदिक अनुष्ठानों के साथ भी समानता को देखा गया है।

संदर्भ :-
https://bit.ly/37FjCEh
https://archive.org/details/in.gov.ignca.73624/page/n30
https://en.wikipedia.org/wiki/Painted_Grey_Ware_culture
https://en.wikipedia.org/wiki/Ochre_Coloured_Pottery_culture
चित्र सन्दर्भ:
पहली छवि चित्रित ग्रे वेयर कल्चर साइट्स दिखाती है।(shodhganga)
दूसरी छवि दिखाता है चित्रित ग्रे वेयर संस्कृति।(wikiwand)
तीसरी छवि रोपड़ से आयरन एरोहेड्स को दिखाती है।(shodhganga)
***Definitions of the post viewership metrics on top of the page:
A. City Subscribers (FB + App) -This is the Total city-based unique subscribers from the Prarang Hindi FB page and the Prarang App who reached this specific post. Do note that any Prarang subscribers who visited this post from outside (Pin-Code range) the city OR did not login to their Facebook account during this time, are NOT included in this total.
B. Website (Google + Direct) -This is the Total viewership of readers who reached this post directly through their browsers and via Google search.
C. Total Viewership —This is the Sum of all Subscribers(FB+App), Website(Google+Direct), Email and Instagram who reached this Prarang post/page.
D. The Reach (Viewership) on the post is updated either on the 6th day from the day of posting or on the completion ( Day 31 or 32) of One Month from the day of posting. The numbers displayed are indicative of the cumulative count of each metric at the end of 5 DAYS or a FULL MONTH, from the day of Posting to respective hyper-local Prarang subscribers, in the city.

RECENT POST

  • अपने युग से कहीं आगे थी विंध्य नवपाषाण संस्कृति
    सभ्यताः 10000 ईसापूर्व से 2000 ईसापूर्व

     21-11-2024 09:28 AM


  • चोपता में देखने को मिलती है प्राकृतिक सुंदरता एवं आध्यात्मिकता का अनोखा समावेश
    पर्वत, चोटी व पठार

     20-11-2024 09:29 AM


  • आइए जानें, क़ुतुब मीनार में पाए जाने वाले विभिन्न भाषाओं के शिलालेखों के बारे में
    वास्तुकला 1 वाह्य भवन

     19-11-2024 09:22 AM


  • जानें, बेतवा और यमुना नदियों के संगम पर स्थित, हमीरपुर शहर के बारे में
    आधुनिक राज्य: 1947 से अब तक

     18-11-2024 09:31 AM


  • आइए, अंतर्राष्ट्रीय छात्र दिवस के मौके पर दौरा करें, हार्वर्ड विश्वविद्यालय का
    वास्तुकला 1 वाह्य भवन

     17-11-2024 09:30 AM


  • जानिए, कौन से जानवर, अपने बच्चों के लिए, बनते हैं बेहतरीन शिक्षक
    व्यवहारिक

     16-11-2024 09:17 AM


  • आइए जानें, उदासियों के ज़रिए, कैसे फैलाया, गुरु नानक ने प्रेम, करुणा और सच्चाई का संदेश
    विचार I - धर्म (मिथक / अनुष्ठान)

     15-11-2024 09:27 AM


  • जानें कैसे, शहरी व ग्रामीण स्वास्थ्य सेवाओं के बीच अंतर को पाटने का प्रयास चल रहा है
    विचार 2 दर्शनशास्त्र, गणित व दवा

     14-11-2024 09:20 AM


  • जानिए क्यों, मेरठ में गन्ने से निकला बगास, पर्यावरण और अर्थव्यवस्था के लिए है अहम
    नगरीकरण- शहर व शक्ति

     13-11-2024 09:22 AM


  • हमारे सौर मंडल में, एक बौने ग्रह के रूप में, प्लूटो का क्या है महत्त्व ?
    शुरुआतः 4 अरब ईसापूर्व से 0.2 करोड ईसापूर्व तक

     12-11-2024 09:29 AM






  • © - 2017 All content on this website, such as text, graphics, logos, button icons, software, images and its selection, arrangement, presentation & overall design, is the property of Indoeuropeans India Pvt. Ltd. and protected by international copyright laws.

    login_user_id