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वैदिक ज्योतिष में, शनि नौ ग्रह देवताओं में से एक है। प्रत्येक देवता (सूर्य, चंद्रमा, मंगल, बुध, बृहस्पति, शुक्र और शनि) भाग्य और नियति के एक अलग पक्ष पर प्रकाश डालते हैं। शनि की नियति कर्म की है। वे व्यक्तियों को उनके जीवनकाल में की गयी बुराईयों या अच्छाईयों का फल देते हैं। ज्योतिषीय रूप से, शनि ग्रह सभी ग्रहों में सबसे धीमा ग्रह है जो लगभग ढाई साल तक एक राशि चक्र में रहता है। राशि चक्र में शनि का सबसे शक्तिशाली स्थान सातवें घर में है और इसे वृषभ और तुला राशि के लोगों के लिए फायदेमंद माना जाता है। हिंदू धर्म के पारंपरिक धर्मों में भगवान शनि सबसे लोकप्रिय देवताओं में से एक हैं। उन्हें अपशकुन और प्रतिशोध का अग्रदूत माना जाता है। ऐसा विश्वास है कि भगवान शनिदेव की प्रार्थना करने से बुराई और व्यक्तिगत बाधाएं दूर होती हैं। शनि शब्द मूल ‘सनिश्चरा’ से आया है, जिसका अर्थ है धीमी गति से चलने वाला। हिंदू धर्म में सप्ताह का एक दिन शनिवार भी है जो भगवान शनि को समर्पित है। भगवान शनि न्याय के हिंदू देवता हैं, जिन्हें शनिदेव, शनि महाराज, सौरा, क्रुराद्रि, क्रुरलोचन, मांडू, पंगु, सेप्तारची, असिता, और छायापुत्र आदि नामों से भी जाना जाता है। हिंदू आइकॉनोग्राफी (Iconography) में, भगवान शनि को रथ में सवार एक काले व्यक्ति के रूप में चित्रित किया गया है, जो आकाशीय माध्यम में धीरे-धीरे चलता है। उन्होंने विभिन्न हथियारों जैसे तलवार, एक धनुष और दो तीर, एक कुल्हाड़ी या त्रिशूल भी धारण किया है तथा वे गिद्ध या कौवे की सवारी करते हैं। उन्हें अक्सर गहरे नीले या काले रंग के कपडों में दिखाया जाता है, जिन्होंने नीले फूल और नीलम भी धारण किया होता है। भगवान शनि को कभी-कभी अपाहिज भी दिखाया जाता है जिसका मुख्य कारण बचपन में उनके और उनके भाई यम की बीच हुए युद्ध को माना जाता है। वैदिक ज्योतिष शब्दावली में, भगवान शनि की प्रकृति वात है, उनका मणि नीला नीलम और काला पत्थर है, तथा धातु सीसा है। ऐसा माना जाता है कि भगवान शनि, भगवान विष्णु का ही एक अवतार हैं, जो लोगों को जीवन रहते उनके कर्मों का फल देते हैं।
भगवान शनि, सूर्य और उनकी सेवक छाया (जो सूर्य की पत्नी स्वर्णा के लिए सरोगेट (Surrogate) माता बनी) के पुत्र हैं। ऐसा माना जाता है कि, जब भगवान शनि, छाया के गर्भ में थे तब छाया ने भगवान शिव को प्रसन्न करने के लिए उपवास किया और तपती धूप में खडी रहीं जिसका असर भगवान शनि के पोषण पर पडा। नतीजतन, शनिदेव का रंग गर्भ में अत्यधिक सांवला हो गया। शनि मृत्यु के हिंदू देवता यम के भाई हैं। जहां शनिदेव व्यक्ति को उसके द्वारा किये जाने वाले कर्मों का फल उसके जीवन रहते ही दे देते हैं, वहीं देवता यम, व्यक्ति को मरणोपरांत उसके कार्यों का फल देते हैं। मेरठ के बालाजी मंदिर में भी भगवान शनि को समर्पित शनि धाम है, जहां भगवान शनि की 27 फीट की अष्टधातु से बनी प्रतिमा स्थापित की गयी है। अष्टधातु आठ धातुओं का एक संयोजन है, जिसमें सोना, चाँदी, तांबा, जस्ता, सीसा, टिन, लोहा और पारा धातुओं का उपयोग किया जाता है। अष्टधातु मूर्तियाँ भारत के कई मंदिरों में पाई जाती हैं। चूंकि अपनी आठ धातुओं के कारण ये मूर्तियाँ बहुत महंगी होती हैं, इसलिए अक्सर मूर्ति चोरों की नज़र इन मूर्तियों पर बनी रहती हैं। कुछ मूर्तियाँ 6 वीं शताब्दी ईस्वी पूर्व की हैं। अष्टधातु की मूर्तियाँ बनाने की प्रक्रिया थोड़ी जटिल है और यह समय के साथ बदलती रहती है। पहले चरण में, मोम का उपयोग करके देवता का सटीक मॉडल (Model) बनाया जता है।
इसके बाद सांचा तैयार करने के लिए मोम के मॉडल को मिट्टी (क्ले - Clay) से ढंका जाता है। तीसरे चरण में, मोम और क्ले के सांचे को आग में तपाया जाता है। इस प्रक्रिया में, क्ले सख्त हो जाती है और मोम एक खोखला सांचा बनाकर पिघल जाता है। इसके बाद आठ धातुओं को - आवश्यक अनुपात के अनुसार लेकर - पिघलाया जाता है। इसके बाद पिघले हुए अमलगम को क्ले के सांचे में डाला जाता है और ठंडा किया जाता है। ठंडा होने के बाद अंतिम चरण में क्ले के सांचे को निकाल दिया जाता है और अष्टधातु मूर्ति प्रदर्शित होती है। अष्टधातु से बनी मूर्तियों की अनुमानित लागत लगभग 200 लाख रुपये तक हो सकती है।
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