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दुनिया भर के मुस्लिम समुदाय के लोग पैगंबर मोहम्मद के जन्मदिन को बडे धूम धाम से मनाते हैं। यह दिन ईद-उल मिलाद या मावलिद के नाम से जाना जाता है तथा हर उत्सव की तरह विभिन्न क्षेत्रों में इसे अलग-अलग तरीके से मनाया जाता है। यूं तो उनके जन्म की सही तारीख अभी तक ज्ञात नहीं है, लेकिन मुस्लिम समुदायों का मानना है कि उनका जन्म वर्ष 570 ईस्वी में हुआ था। तथा इस दिन को इस्लामी पंचांग के तीसरे महीने जिसे रबी-उल-अव्वल कहा जाता है, के 12 वें दिन मनाया जाता है। कुछ मुस्लिम देशों में, यह दिन सार्वजनिक अवकाश घोषित किया जाता है, किंतु सऊदी अरब और कतर जैसे अधिक रूढ़िवादी देशों में, इस प्रथा को मनाने से इनकार किया जाता है क्योंकि उनका मानना है कि पैगंबर के संदर्भ में इस दिन का कोई रिकॉर्ड (Record) देखने को नहीं मिलता है।
ईराक के कुर्दिस्तान में सूफी समुदाय के लोग जहां इस दिन अपने बालों को लयबद्ध ढोल की थाप पर थिरकते हैं, वहीं लीबिया और मिस्र के लोग बच्चों को खिलौने और मिठाई बांटकर ईद-ए-मिलाद-उन-नबी या पैगंबर मोहम्मद का जन्मदिन मनाते हैं। लीबिया के शहर बेनगाज़ी में इस दिन को मनाने के लिए रंग बिरंगी लड़ियाँ लगायी जाती हैं। कई स्थानों में जुलूस निकाले जाते हैं तथा जुलूस के दौरान छाते को गुब्बारों से सजाया जाता है, साथ ही नए कपड़े और खिलौने भी एक-दूसरे को भेंट किये जाते हैं। मिस्र में, मिठाइयों की दुकानों में पारंपरिक ‘मावलिद (जन्म) दुल्हन’ की गुड़िया, चीनी के पेस्ट (Paste) से बनायी जाती है, जिसे कागज के घाघरे, चमकीले और कपड़े के फूलों से सजाया जाता है। परंपरा के अनुसार, सूखे फल, मेवे आदि से बनी अन्य पारंपरिक मिठाइयों के साथ नवयुवकों को यह गुड़िया अपने मंगेतर को भेंट करनी चाहिए।
इराक के उत्तरी शहर अकरा में इस उत्सव को मनाने के लिए पुरूष ढीली पैंट, इससे मिलता-जुलता जैकेट और बेल्ट बांधकर धिक्र या ‘धार्मिक आह्वान’ के लिए पंक्तियों और अर्ध-मंडलियों में खड़े होते हैं। इसके बाद ड्रम (Drum) बजाए जाते हैं और ऊंचे स्वर में प्रार्थनाएं गायी जाती हैं। ऐसा करने के साथ-साथ वे अपने लंबे बालों को भी आगे और पीछे की ओर लहराते हैं। दक्षिण अफ्रीका के केप टाउन में इस दिन मुस्लिम समुदाय की महिलाएं और बच्चें इस परंपरा को निभाते हुए अच्छे कपड़े पहनते हैं। इसके बाद पैगंबर को सलाम करते हुए वे नींबू और संतरे के पेडों से पत्तों को तोड़ते हैं तथा उन्हें गुलाब और नींबू के पानी में भिगोकर एक छोटे पाउच (Pouch) में पैक करते हैं। इसके उपरांत ये पाउच दक्षिण अफ्रीकी समुदाय के पुरुषों को उपहार में दिये जाते हैं। पैगंबर मोहम्मद के जन्मदिन ईद-ए-मिलाद पर पवित्र मार्च भी आयोजित किये जाते हैं।
श्रीनगर के हजरतबल तीर्थ में ईद-ए-मिलाद-उन-नबी पर महिलाएं नमाज पड़ती हैं। विक्रेता मस्जिदों के आस-पास श्रद्धालुओं को पारंपरिक पकवान परोसते हैं। फिलीस्तान में पैगंबर मोहम्मद के जीवन को याद करते हुए सडकों पर पुरुष भक्ति गीत गाते हैं। पाकिस्तान में मस्जिदों को विभिन्न प्रकार की रोशनी से सजाया जाता है, तथा बडे धूम-धाम से उत्सव को मनाया जाता है।
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