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भारत में अक्सर जब भी जंतुओं के संरक्षण कार्यक्रम की बात आती है, तब बाघ संरक्षण कार्यक्रम का सबसे पहले नाम आता है, जिसके लिए भारत द्वारा कई प्रयास और संघर्ष किये गये किंतु इसके अलावा भी एक अन्य जीव गैंडे के संरक्षण की कहानी भारत की सबसे सफल संरक्षण कहानियों में से एक है। विश्वव्यापी फंड फॉर नेचर-इंडिया (World Wide Fund for Nature–India - WWF) के अनुसार 1905 में भारतीय गैंडे की आबादी मुश्किल से 75 थी किंतु 2012 तक यह 2,700 से अधिक हो गयी, हालांकि इनके अस्तित्व के लिए इनका संरक्षण अभी भी एक बड़ी चिंता का विषय है और यह कई बुराइयों जैसे अवैध शिकार को रोकने के लिए उनके सींग को निकाल देना, को जन्म दे रहा है। भारतीय गैंडा जिसका वैज्ञानिक नाम राईनोसिरस यूनिकॉर्निस (Rhinoceros Unicornis) है तथा जो 'एक सींग वाले गैंडे' के नाम से भी जाना जाता है, भारतीय उपमहाद्वीप के गैंडे की प्रजाति है। 2008 तक, भारतीय जंगलों में कुल 2,575 परिपक्व गैंडे थे। एक समय भारतीय गैंडे इंडो-गंगेटिक (Indo-Gangetic) क्षेत्र में फैले हुए थे लेकिन अत्यधिक शिकार और कृषि विकास ने उत्तरी भारत और दक्षिणी नेपाल में इनकी सीमा को सीमित कर दिया। 1990 के दशक की शुरुआत में, करीब 1,870 से 1,895 गैंडों के जीवित होने का अनुमान लगाया गया था। इस प्रजाति को प्रकृति के संरक्षण के लिए अंतर्राष्ट्रीय संघ (International Union for Conservation of Nature-IUCN) ने अपनी रेड लिस्ट (Red List) में संकटग्रस्त जीव के रूप में सूचीबद्ध किया है, क्योंकि यह आबादी खंडित है और 20,000 वर्ग किलोमीटर में 2 से कम संख्या तक सीमित है। इनके सबसे महत्वपूर्ण निवास स्थान, जलोढ़ घास के मैदान और नदी की सीमा पर स्थित जंगल हैं, किन्तु मानव और पशुधन अतिक्रमण के कारण इनके उपयुक्त जंगलों की गुणवत्ता में गिरावट आ गयी है।
माना जाता है कि, आज से 3 करोड़ वर्ष पूर्व आधुनिक मनुष्यों के प्रकट होने से भी बहुत पहले गैंडे धरती पर मौजूद थे। इनकी उपस्थिति को हिम युग से जोड़ा जाता है। 2014 में प्रकाशित एक अध्ययन ने सुझाव दिया कि पेरिसोडक्टाइल (Perissodactyls) पहली बार भारत में 5 करोड़ 5 लाख वर्ष पूर्व दिखाई दिए थे, जो उस समय एशिया से जुड़ा नहीं था। पेरिसोडक्टाइल को गैंडों का पूर्वज माना जाता है। भारतीय गैंडे की त्वचा मोटी तथा हल्की भूरे रंग की होती है, जिसमें हल्के गुलाबी रंग की परतें दिखायी देती हैं। इसके थूथन पर एक सींग होता है तथा शरीर में बहुत कम बाल होते हैं, जो पलकें, कान और पूंछ के बाल से अलग होते हैं। नर की गर्दन में भारी तह होती है। गेंडे का एकल सींग नर और मादा दोनों में मौजूद होता है, लेकिन नवजात पशु में यह उपस्थित नहीं होता। सींग मानव नाखूनों की तरह शुद्ध केराटीन (Keratin) से बने होते हैं, और लगभग छह साल बाद दिखाना शुरू होते हैं। एशिया के स्थलीय भूमि स्तनधारियों में भारतीय गैंडा एशियाई हाथी के बाद दूसरा सबसे बड़ा जंतु हैं। यह सफेद गैंडे के बाद दूसरा सबसे बड़ा जीवित गैंडा है। भारतीय गैंडा उपमहाद्वीप के पूरे उत्तरी हिस्से में फैला था, जिसमें सिंधु, गंगा और ब्रह्मपुत्र नदी के घाटों के साथ पाकिस्तान से लेकर भारतीय-म्यांमार सीमा तक, बांग्लादेश और नेपाल के दक्षिणी हिस्से और भूटान शामिल थे। यह तराई और ब्रह्मपुत्र बेसिन (Basin) के जलोढ़ घास के मैदानों में निवास करता है। आवास विनाश और जलवायु परिवर्तन के परिणामस्वरूप इनकी सीमा धीरे-धीरे कम होती जा रही है, तथा अब यह केवल दक्षिणी नेपाल, उत्तरी उत्तर प्रदेश, उत्तरी बिहार, उत्तरी पश्चिम बंगाल, और ब्रह्मपुत्र घाटी की तराई वाले घास के मैदानों में पाए जाते हैं। विश्वव्यापी फंड फॉर नेचर-इंडिया के आंकड़ों के मुताबिक, 2012 में असम में 91% से अधिक भारतीय गैंडे रहते थे। असम में काजीरंगा राष्ट्रीय उद्यान, पोबितारा वन्यजीव अभयारण्य में भी भारतीय गैंडे मौजूद हैं। काजीरंगा, असम में भारत के 80% से अधिक गैंडे मौजूद हैं। काजीरंगा उद्यान अधिकारियों द्वारा 2015 की जनगणना के साथ उद्यान के भीतर 2,401 गैंडे मौजूद थे। गैंडे के शिकार का मुख्य कारण इनके सींग हैं, क्योंकि इनके सींग दवाई और अन्य विभिन्न कामों में उपयोग में आते हैं।