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हम नित-नये दिन ना जाने कितनी आत्महत्या की खबरों से रूबरू होते हैं, जिनमें युवा वर्गों की बड़ी संख्या शामिल हैं। आत्महत्या का मुख्य कारण है मानसिक तनाव, देश में मानसिक रोगियों की संख्या दिन प्रतिदिन तीव्रता से बढ़ती जा रही है। विडम्बना तो यह है कि प्रारंभ में रोगी को स्वयं भी पता नहीं चलता है कि वह मानसिक तनाव का शिकार हो रहा है और जब तक पता चलता तब तक वे आत्महत्या जैसे भयावह कदम उठा लेते हैं या फिर अपना मानसिक संतुलन खो बैठते हैं। हमारे दैनिक जीवन में चिंता और तनाव के बढ़ते स्तर के साथ, मानसिक बीमारियां बढ़ रही हैं और पिछले कई वर्षों से मानसिक बीमारियों के उपचार हेतु अच्छे शोध संस्थानों की आवश्यकता महसूस की जा रही है।
भारत में आगरा और बरेली मानसिक रोगियों के आश्रय के लिए प्रसिद्ध हैं, जिसे विभिन्न दृष्टांतों के माध्यम से बॉलिवुड में भी दर्शाया गया है। आगरा में देश का सबसे पुराना मानसिक अस्पताल होने के नाते यह भारत में ही नहीं वरन् विश्वभर में प्रसिद्ध है, 1857 की क्रांति के बाद तत्कालीन ब्रिटिश गवर्नर जॉन आर कॉल्विन (British Governor John R Colvin) सहित कई ब्रिटिश अधिकारी मानसिक रूप से बीमार हो गए थे। इसके पश्चात 1858 में जॉन आर कॉल्विन की अगुवाई में “भारतीय पागलखाना अधिनियम ,1858” पारित किया गया, जिसके तहत 1859 में आगरा के पागलखाने की स्थापना की गयी थी। वास्तव में इन मानसिक अस्पतालों में ना जाने कितनी दयनीय कहानियां छिपी हुयी हैं, जिनका शायद किसी को आभास भी नहीं है। यह पहला मानसिक अस्पताल है जहां 1950 में मानसिक रोगियों को उपचार के लिए दवा दी गयी थी, इससे पहले यहां उपचार हेतु इलेक्ट्रो-कॉन्वल्सिव थेरेपी (Electro-Convulsive Therapy (ECT)) का उपयोग किया जाता था। यहां पर सार्क (SAARC) देशों के अतिरिक्त, अमेरिका, ब्रिटेन, जर्मन, नाइजीरिया और कई अन्य देशों से रोगी आते हैं। ब्रिटिश काल से ही यहां भारतीयों और विदेशियों के लिए वार्ड अलग-अलग कर दिए थे। अस्पताल को एक अनुसंधान संस्थान में अपग्रेड (Upgrade) किया गया है, जहां मानसिक स्वास्थ्य में पीएचडी, एमडी और एमफिल जैसी डिग्री के लिए शोध किया जा सकता है।
एक अनुमान के अनुसार लगभग 6-7% जनसंख्या मानसिक रोगों से जूझ रही है। विश्व बैंक की एक रिपोर्ट (1993) के अनुसार बिमारियों के कारण घटने वाली उम्र में डायरिया, मलेरिया, कृमि संक्रमण और तपेदिक की तुलना में मानसिक बिमारियों की ज्यादा भूमिका है। यह बीमारी के वैश्विक बोझ (GBD) का 12% था जो अब संभवत: बढ़कर 15% से भी ज्यादा हो गया है। विश्व स्वास्थ्य संगठन की 2001 की रिपोर्ट के अनुसार प्रत्येक चार परिवारों में से एक परिवार के एक सदस्य को मानसिक विकार होने की संभावना है, जिनमें से अधिकांश बिना उपचार के रहते हैं। जिसका प्रमुख कारण गरीबी, जागरूकता की कमी, सामाजिक भ्रांतियां और मानसिक स्वास्थ्य सुविधाओं की अनुपब्धता है। भारत सरकार ने 1982 में निम्नलिखित उद्देश्यों के साथ राष्ट्रीय मानसिक स्वास्थ्य कार्यक्रम (NMHP) की शुरुआत की:
1. भविष्य में समाज के सभी वर्गों को न्यूनतम स्वास्थ्य सुविधा उपलब्ध कराना।
2. सामान्य स्वास्थ्य देखभाल और सामाजिक विकास में मानसिक स्वास्थ्य के प्रति जारूकता फैलाना
3. मानसिक स्वास्थ्य सेवा के विकास हेतु सामुदायिक भागीदारी को बढ़ावा देना और समुदाय में स्व-सहायता की दिशा में प्रयासों को प्रोत्साहित करना।
1996 में निम्न उद्देश्यों के साथ जिला मानसिक स्वास्थ्य कार्यक्रम लॉन्च किया गया था:
1. मानसिक विकार के विषय में जल्दी पता लगाना और उपचार करना।
2. प्रशिक्षण: सामान्य मानसिक बीमारियों के निदान और उपचार के लिए सिमित मानसिक दवाओं के उपयोग हेतु विशेषज्ञ के मार्गदर्शन में सामान्य चिकित्सकों को अल्पकालिक प्रशिक्षण प्रदान करना। स्वास्थ्यकर्मियों को मानसिक रूप से बीमार व्यक्तियों की पहचान करने के लिए प्रशिक्षित करना।
3. आईईसी: जन जागरूकता पीढ़ी।
4. सामान्य रिकोर्ड रखने के लिए निगरानी करना।
अभी तक हमारे रामपुर जिले में मानसिक स्वास्थ्य संबंधी बीमारियों के इलाज की कोई सुविधा नहीं है। इसके लिए निकटतम सुविधा मुरादाबाद और बरेली में है, लेकिन जल्द ही मानसिक रोगियों के इलाज की सुविधा जिला अस्पताल में ही उपलब्ध होगी। राष्ट्रीय मानसिक स्वास्थ्य कार्यक्रम के तहत, सरकार सभी जिला अस्पतालों में मानसिक रोगों के लिए इलाज की सुविधा शुरू करने जा रही है।