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भारतीय लोकगीत, नृत्य, नाटक और अन्य कला रूप पौराणिक मान्यताओं से अत्यधिक प्रभावित हैं और वे भारत की सांस्कृतिक कल्पना का निर्माण करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं। टेलीविजन मीडिया (Television Media) के आगमन के साथ 1980 के दशक से लोकगीतों की मौखिक परंपरा और स्थानीय नाटक मंडली के नाटक मंचन में गिरावट आई है। गिरावट आने का मुख्य कारण यह है कि अब टेलीविजन के माध्यम से इन लोककथाओं, नाटकों, लोकगीतों का प्रस्तुतीकरण किया जाने लगा है। रामायण हिंदू धर्म का प्रसिद्ध महाकाव्य है, जिसके प्रसंगों को विभिन्न रूपों में लोगों के समक्ष प्रस्तुत किया जाता रहा है। सीता अपहरण, रामायण का बेहद महत्वपूर्ण प्रसंग है, और इसके बारे में आप सभी परिचित होंगे। इस प्रसंग में एक भाग वह भी है, जब जटायु नामक एक किरदार द्वारा माता सीता को रावण से बचाने का प्रयास किया जाता है। किंतु अनेक प्रयास के बाद रावण द्वारा जटायु के पंख काट दिये जाते हैं तथा अंततः वह घायल होकर जमीन पर जा गिरता है। रावण द्वारा सीता का अपहरण कर साथ ले जाने की सूचना भगवान राम को देने के लिए वह अपने प्राण तब तक नहीं छोड़ता, जब तक भगवान राम उससे मिल नहीं जाते। जब भगवान राम और लक्ष्मण सीता माता की खोज कर रहे थे, तब वे उस स्थान पर पहुँचे जहाँ जटायु धराशायी लेटे हुए थे। जटायु ने उन्हें रावण के साथ हुई लड़ाई और उस दिशा के बारे में बताया, जिस ओर रावण जा रहा था। जब जटायु की मृत्यु हुई, तो राम ने जटायु का अंतिम संस्कार किया। जटायु एक दिव्य पक्षी और अरुणा के छोटे पुत्र थे, जिनका स्वरूप एक गिद्ध जैसा था। वह भगवान राम के पिता दशरथ के पुराने मित्र भी थे। रामायण के इस प्रसंग को राजा रवि वर्मा द्वारा 1895 में चित्रित किया गया, जो रामायण के पात्रों जटायु और रावण के बीच हुए युद्ध को दर्शाता है। चित्र में रावण द्वारा जटायु का पंख काटने पर माता सीता को भयभीत होते हुए दिखाया गया है। राजा रवि वर्मा द्वारा बनायी गयी यह पेंटिंग (Painting) श्री चित्रा आर्ट गैलरी (Sri Chitra Art Gallery), तिरुवनंतपुरम, केरल में स्थित है।
जटायु की बहादुरी को चिह्नित करने के लिए केरल में जटायुपरा पहाड़ियों पर जटायु की विशाल प्रतिमा बनाई गयी है, जिसे दुनिया की सबसे बड़ी पक्षी मूर्ति माना जाता है। यह पहाड़ी केरल के कोल्लम जिले के चदायमंगलम (Chadayamangalam) गाँव के निकट स्थित है। मान्यता यह है कि इस गांव के पास एक चट्टानी शिखर पर जटायु रावण से लड़ते हुए गिर गए थे। इसके बाद से यह स्थान 'जटायुमंगलम' नाम से जाना जाने लगा। अनेक वर्षों बाद यह चदायमंगलम बन गया और शिखर जटायुपरा (जटायु चट्टान) बन गयी। त्रिवेंद्रम से लगभग आधे घंटे की दूरी पर स्थित जटायु को समर्पित जटायु पृथ्वी केंद्र (Jatayu Earth’s Centre) भी बनाया गया है, जो कि पौराणिकता और आधुनिकता का अनोखा सम्मिलन है। जटायु पृथ्वी केंद्र, एक पर्यटन स्थल है जो पर्यावरण के अनुकूल बनाया गया है। इस स्थल से जटायु मूर्ति को कई जगहों से देखा जा सकता है। यहां पहुँचने पर एक टिकट खरीदना पड़ता है, जिसके बदले कलाई पर बांधने के लिए एक बैंड (Wristband) दिया जाता है। सुरक्षा जांच के बाद, पर्यटकों को केबल कारों (Cable Cars) की मदद से मूर्तिकला तक ले जाया जाता है। जटायु की यह मूर्ति 1000 फीट (Feet) की ऊंचाई पर बनाई गई है, जो 200 फीट लंबी, 150 फीट चौड़ी और 70 फीट ऊंची है तथा गिनीज बुक ऑफ वर्ल्ड रिकॉर्ड (Guinness Book of World Records) में दर्ज की गई है। मूर्तिकला के साथ-साथ, क्षेत्र को साहसिक खेल प्रेमियों के लिए भी विकसित किया गया है। केबल कार की सवारी और मूर्तिकला की यात्रा की लागत कर सहित प्रति व्यक्ति 450 रुपये है, जबकि साहसिक केंद्रों को 10 और उससे अधिक लोगों के समूहों के लिए खोला गया है, जिसकी लागत प्रति व्यक्ति 3500 रुपये है। मूर्तिकला को महिला सशक्तिकरण के प्रतीक के रूप में भी समर्पित किया है। हालांकि यह हिंदू पौराणिक कथाओं से प्रेरित है, लेकिन इस परियोजना की परिकल्पना द स्टैचू ऑफ लिबर्टी (The Statue of Liberty) की तर्ज पर एक स्मारक के रूप में की गई है।
कोरोना प्रभाव के कारण कुछ समय पूर्व दूरदर्शन पर भारतीय इतिहास के सबसे लोकप्रिय शो (Show) रामायण और महाभारत का प्रसारण किया गया था, जिसकी वजह से दूरदर्शन इस दौरान भारत में सबसे अधिक देखा जाने वाला चैनल (Channel) बना। इन दोनों प्रसारणों ने दर्शकों को चैनल से जोड़े रखा, जिसके परिणामस्वरूप दर्शकों में अभूतपूर्व वृद्धि हुई।
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