मेरठ शहर नरोरा परमाणु ऊर्जा संयंत्र के काफी नजदीक स्थित है। नाभिकीय ऊर्जा और नाभिकीय हथियारों के आपसी भेद पर हमेशा चर्चा होती रहती है। भारत के विविध नाभिकीय ऊर्जा कार्यक्रम यहां की ऊर्जा की आपूर्ति में मदद करते हैं। भारत अमेरिकी नाभिकीय ऊर्जा सौदा (India-US Nuclear Energy Deal) ने भारत को विश्व स्तर पर अलग पहचान दिलाई। इससे भारत नाभिकीय शस्त्र रखने वाला एकमात्र देश बनकर सामने आया, जो परमाणु अप्रसार संधि (एनपीटी (Treaty on the Non-Proliferation of Nuclear Weapons (NPT))) का सदस्य भी नहीं है। फिर भी उसे बाकी विश्व से नाभिकीय व्यापार की अनुमति दे दी गई। न्यूक मैप (Nuke Map) वेबसाइट नाभिकीय कारणों से होने वाले नुकसान का शहरवार विवरण देती है।
नरौरा परमाणु ऊर्जा संयंत्र
नरौरा शहर, उत्तर प्रदेश के बुलंदशहर जिले में स्थित है। इसमें दो रिएक्टर (Reactor) हैं, दोनों भारी पानी (Heavy Water) रिएक्टर हैं। इनसे 220 मेगावाट बिजली पैदा होती है। एनएपीएस-1 ((Narora Atomic Power Station-1) (NAPS-1)) का व्यावसायिक प्रयोग 1 जनवरी 1991 और NAPS-2 1 जुलाई 1992 में शुरू हुआ था। क्योंकि भारत ने परमाणु अप्रसार संधि पर हस्ताक्षर नहीं किए हैं, इसलिए रिएक्टर रक्षा व्यवस्था के अंतर्गत नहीं है।
नाभिकीय हथियार बना नाभिकीय ऊर्जा
नाभिकीय हथियारों और नाभिकीय ऊर्जा के आपसी संबंध को लेकर ज्यादातर लोग एकमत नहीं होते। दोनों तकनीक में परमाणु प्रतिक्रिया से ऊर्जा पैदा होती है और नाभिकीय ऊर्जा का विकास यूएस नेवी (US Navy) ने बिजली के एक स्रोत के रूप में किया था, जिससे पनडुब्बियों और हवाई जहाज वाहको को बिजली मिलती थी। पर इससे भी भ्रम की स्थिति पैदा होती है। ना तो भौतिकी और ना ही तकनीकी दृष्टि से दोनों में कोई साम्य है। नाभिकीय हथियारों में आजकल दो परमाणुओं को एक साथ मिलाते हैं, जिससे अनियंत्रित विस्फोट होता है। नाभिकीय ऊर्जा प्राकृतिक तौर पर रेडियोएक्टिव (Radioactive) तत्व के धीमी गति और नियंत्रित प्रतिक्रिया के साथ विघटन द्वारा ऊर्जा पैदा करती है, जो बाद में पानी को भाप में बदलने के काम आती है, जिससे टरबाइन (Turbine) चलाई जाती है।
भारत यूनाइटेड स्टेट्स परमाणु समझौता
18 जुलाई 2005 में तत्कालीन प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह और अमेरिकी राष्ट्रपति जॉर्ज डब्लू बुश (George W Bush) ने एक परमाणु समझौते पर हस्ताक्षर किया। इसमें भारत ने घोषणा की कि नागरिक और सेना की नाभिकीय सुविधाएं अलग-अलग होंगी और सारी नागरिक नाभिकीय ऊर्जा को अंतरराष्ट्रीय परमाणु एजेंसी की सुरक्षा मिलेगी और बदले में अमेरिका इस बात पर सहमत हुआ कि वह पूरी तरह नागरिक नाभिकीय सहयोग भारत को देगा। समझौते को लागू करने में 3 साल लगे। अमेरिका के हाउस ऑफ रिप्रेजेंटेटिव्स (House of Representatives) ने इस समझौते को 28 सितंबर 2008 में स्वीकृति प्रदान की। दो दिन बाद भारत और फ्रांस ने इसी प्रकार समझौते पर हस्ताक्षर किए। 1 अक्टूबर 2008 को अमेरिकी सांसदों ने भी इस पर मुहर लगा दी।
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