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यदि हम बिना विद्युत एवं सौर ऊर्जा के किसी भी उपकरण की कल्पना करें जो लम्बे समय तक व दिन और रात सामान अवस्था में कार्य करे जैसे घड़ी, टॉर्च, रिमोट कण्ट्रोल इत्यादि, तो ऐसे में ऊर्जा का वह स्त्रोत जो इन उपकरणों को कार्यशील बनाए रखेगा वह है - बैटरी। 19वीं शताब्दी के अंत तक तथा इलेक्ट्रिक जनरेटर (Electric Generator) के आविष्कार से पूर्व तक बैटरियाँ ही ऊर्जा का मुख्य स्रोत मानी जाती थीं। वास्तव में, बैटरी के बिना हम मोबाइल फोन, टेलीग्राफ, टेलीफोन, पोर्टेबल कम्प्यूटर (लैपटॉप), विद्युत कारों आदि की कल्पना भी नहीं कर सकते थे।
सर्वप्रथम वर्ष 1749 में, अमेरिकी पॉलिमथ (Polymath) और संस्थापक बेंजामिन फ्रैंकलिन (Benjamin Franklin) द्वारा "बैटरी" शब्द का प्रयोग बिजली के साथ अपने प्रयोगों के लिए उपयोग किए गए लिंक्ड कैपेसिटर (Linked Capacitor) के एक सेट का वर्णन करने के लिए किया गया था। यह कैपेसिटर प्रत्येक सतह पर धातु से लिपटे ग्लास के पैनल थे, जिनको एक स्थिर जनरेटर के साथ चार्ज किया जाता था और धातु को उनके इलेक्ट्रोड (Electrode) को छूकर डिस्चार्ज किया जाता था। उन्हें "बैटरी" में एक साथ जोड़ने से एक मजबूत निर्वहन प्राप्त हुआ। आज भी एक एकल इलेक्ट्रोकेमिकल सेल (Electrochemical Cell), अर्थात् शुष्क सेल, को आमतौर पर बैटरी कहा जाता है। 1780 में, लुइगी गैलवानी (Luigi Galvani) एक पीतल के हुक से चिपके हुए मेंढक को विच्छेदित कर रहे थे। तभी उन्हें महसूस हुआ कि जब उन्होंने मेढक के पैर को लोहे के स्केलपेल (Scalpel) से छुआ तो उसके पैर में कम्पन्न हुआ। गैलवानी का मानना था कि इस संकुचन का कारण पैर से उत्पन्न होने वाली ऊर्जा ही है, इसलिए उन्होंने इसे "पशु विद्युत" नाम दिया है। हालांकि, एलेसेंड्रो वोल्टा (Alessandro Volta) जो उनके मित्र व साथी वैज्ञानिक थे, इस बात से सहमत नहीं थे, उनके अनुसार यह घटना दो अलग-अलग धातुओं के एक नम मध्यस्थ द्वारा एक- दूसरे के संपर्क में आने के कारण हुई थी। उन्होंने इस परिकल्पना को प्रयोग के माध्यम से सत्यापित किया, और 1791 में इसके परिणाम भी प्रकाशित किए। 1800 में, वोल्टा ने पहली असली बैटरी (True Battery) का आविष्कार किया, जिसे वोल्टिक पाइल (Voltaic Pile) के रूप में जाना जाता है। वोल्टा का मानना था कि धारा प्रवाह रासायनिक प्रतिक्रियाओं का परिणाम नहीं बल्कि दो अलग-अलग धातुओं का परिणाम था, जो किसी कारणवश एक दूसरे के संपर्क में आते हैं।
लेक्लांची सेल (Leclanché Cell)
1866 में, जॉर्जेस लेक्लांची (Georges Leclanche) ने एक बैटरी का आविष्कार किया, जिसमें एक जिंक एनोड (Zinc Anode) और एक छिद्रयुक्त सामग्री में लिपटे हुए मैंगनीज डाइऑक्साइड कैथोड (Manganese Dioxide Cathode) था, जो अमोनियम क्लोराइड (Ammonium Chloride) मिश्रण के जार में डूबा हुआ था। मैंगनीज डाइऑक्साइड कैथोड में थोड़ा कार्बन भी मिलाया जाता है, जो चालकता और अवशोषण में सुधार करता है। इस बैटरी ने 1.4 वोल्ट का वोल्टेज प्रदान किया। टेलीग्राफी, सिग्नलिंग और इलेक्ट्रिक बेल वर्क में इस सेल ने शीघ्र ही सफलता प्राप्त कर ली थी।
लेक्लांची सेल का प्रयोग शुरुआती टेलीफोनों को ऊर्जा प्रदान करने के लिए करना कठिन था क्योंकि यह सेल अधिक लंबे समय तक ऊर्जा का एक निरंतर प्रवाह प्रदान करने में सक्षम नहीं थे। इसका कारण यह था कि सेल में कुछ रासायनिक प्रतिक्रियाएं आंतरिक प्रतिरोध को बढ़ा देती थीं और इससे वोल्टेज कम हो जाता था। इस प्रकार लंबी बातचीत के दौरान यह बैटरी निष्क्रिय हो जाती थी, और टेलीफोन पर बातचीत सुनाई नहीं देती थी।
चार बर्तनवाली लाल कसीस बैटरी (Four Cell Bichromate Batteries)
इस बैटरी के प्रत्येक बर्तन में एक जस्ते का पत्र और दो कार्बन के पत्र लगे होते हैं। चारों बैटरियां लकड़ी के चौखट में लगी हुई होती हैं। पत्र (Plates) ऊपर के आड़े तख्ते में जुड़े हुए होते हैं। इस तख़्त के दोनों किनारों से एक-एक रस्सी का टुकड़ा ऊपर की ओर एक गोल आड़े डंडे पर लिपटा होता है। आड़े डंडे के साथ दांतेदार पहिया (Gear) और एक हत्थी (Handle) लगी होती है। जिसको दाईं और बाईं ओर घुमाने से यह पत्र जितना चाहो उतना ऊपर की ओर उठाए या नीचे की ओर उतारा जा सकता है। इस बैटरी का द्रव इस प्रकार बनता है –
18 आउंस (9 छटाँक) पीसी हुई लाल कसीस (Powdered Bichromate of Potash) और 3 पॉइंट (30 छटाँक) पानी को किसी तामचीनी (Enamelled Iron) के बर्तन में मिलाओ। उसमें एक-एक बूँद करके 16 आउंस (8 छटाँक) शुद्ध गंधक का तेज़ाब मिलाओ। ठंडा होने पर बैटरी में भर दो। उपर्युक्त द्रव के स्थान पर नीचे लिखे द्रव को भी काम में लाया जा सकता है:- 18 आउंस (9 छटाँक) क्रोमिक एसिड (Chromic Acid), 6 पॉइंट (60 छटाँक) ठंडा पानी और 6 आउंस (3 छटाँक) शुद्ध गंधक का तेज़ाब।
जस्ते के पत्रों पर भली-भाँती पारा चढ़ा लेना चाहिए अन्यथा लाल कसीस वाली बैटरियां बड़ी तेजी से बिजली की धारा उत्पन्न करती हैं। और ये बैटरियां छोटी मोटरें चलाने के लिए, रोशनी के लिए छोटी बत्तियां जलाने के लिए और आवेश-कुंडली (Induction Coil) से काम लेने के लिए बड़ी उपयोगी होती हैं। एक बैटरी की शक्ति दो वॉल्ट (Volt) की होती है।
बैटरी का इतिहास अलग-अलग चरणों से होकर गुज़रा है, जो वैज्ञानिकों की खोजों व उनके द्वारा दिए गए सटीक परिमाणों पर आधारित है। उन्हीं परिमाणों का नतीजा है कि हम वर्तमान समय में बड़े बड़े उपकरण तथा मशीनें बैटरियों की सहायता से चलाने में सक्षम हो सके हैं।
चित्र सन्दर्भ :
मुख्य चित्र में वर्तमान में प्रचलित विभिन्न बैटरियों को दिखाया गया है। (Prarang)
दूसरे चित्र में एलेसेंड्रो वोल्टा (Alessandro Volta) और उनकी बनायी गयी बैटरी को दिखाया गया है। (Prarang)
तीसरे चित्र में लिकलांस सैल (Leclanché Cell) को दिखाया गया है। (Youtube)
अंतिम चित्र में चार बर्तनवाली लाल कसीस बैटरी (Four Cell Bichromate Batteries) को दिखाया गया है। (Wikimedia)