उत्तर प्रदेश के रामपुर जिले के व्यस्त राष्ट्रीय राजमार्ग 87 पर एक छोटा गांव पड़ता है 'ननकार'। यह दो चीजों के लिए मशहूर है, एक तो सूफी संत एजाज मियां की कब्र और दूसरे यहां की गिटार (Guitar) वाली फैक्ट्री। एक बार विश्व के सर्वश्रेष्ठ वॉयलिन (Violin) बनाने वालों में शामिल होने के बावजूद, नोटबंदी, जीएसटी (GST) और सस्ते चीनी वाद्यों के कारण यह उद्योग पूरी तरह ध्वस्त हो गया। रामपुर के वॉयलिन की खासियत के कारण वह पूरे विश्व में लोकप्रिय था। बड़ी शुद्ध नापतोल के इसका निर्माण होता था।
दुनिया में वॉयलिन ही एकमात्र ऐसा वाद्य है, जो भावनाओं की सच्ची अभिव्यक्ति करता है। कुछ समय पहले तक 4 तार वाले वॉयलिन सिर्फ रामपुर में बनते थे। लेकिन पिछले दो-तीन वर्षों में चीनी खिलाड़ियों ने संगीत संबंधी वाद्यों का पूरा बाजार हड़प लिया। रामपुर में बने वॉयलिन इतने मशहूर है कि बर्कले म्यूजिक अकादमी (Berklee Music Academy) के कलाकार यही वॉयलिन बजाते थे। मोहब्बतें और दूसरी हिंदी फिल्मों में यही वॉयलिन बजाया गया था। लेकिन आज इनका कोई खरीदार नहीं है क्योंकि सस्ते चीनी और दूसरे देशों के वॉयलिन बाजार में उपलब्ध हैं।
क्यों खास है रामपुर के वॉयलिन?
यह पूरा गणित का एक खेल होता है, क्योंकि वॉयलिन बनाने में नाप की मुख्य भूमिका होती है। हर हिस्से की बहुत ध्यान से नाप ली जाती है। 4 तार जो लाजवाब धुन बजाते हैं, ब्राजील से आयातित चिनार के पेड़ से बने आधार, ऊपरी हिस्से में हिमाचल प्रदेश से लाई फर के पेड़ की लकड़ी और आबनूस की लकड़ी से बाकी हिस्से बनते हैं। 1 सेंटीमीटर की भी गलती से पूरा वाद्य बेकार हो जाता है। एक सस्ते वॉयलिन के निर्माण की लागत 1000 से 1500 आती है, औसत वॉयलिन की कीमत 2500 और सर्वश्रेष्ठ वॉयलिन की लागत 15000 तक होती है । बाजार में सस्ते वॉयलिन धड़ल्ले से मिलने के कारण रामपुर के बने सस्ते वॉयलिन की ही मांग होती है। मुंबई, कोलकत्ता और दूसरे स्थानों के ग्राहक 1200 रुपए के वॉयलिन की मांग करते हैं। उसी को वे 3000 में दूसरे ग्राहकों को मेड इन रामपुर का टैग दिखा कर बेच देते हैं। मुश्किल से वॉयलिन बनाने के 200 कारीगर ही बचे हैं। पहले 1000 से ऊपर लोग इस उद्योग में लगे थे। इस समय रामपुर में पांच बड़ी फैक्ट्री ही बची हैं, जिनमें 40 लोग काम कर रहे हैं। नोटबंदी के बाद से यह उद्योग उबर नहीं पाया। तमाम कुशल कारीगरों ने यह काम छोड़ दिया क्योंकि महीनों उन्हें वेतन नहीं मिल पा रहा था। बाहर से उस समय सामान की मांग भी नहीं हो रही थी। वॉयलिन उद्योग पर चौतरफा वार हो रहे थे। चिनार के पेड़,की आपूर्ति करने वालों ने सामान देने से मना कर दिया। बहुत दिनों तक वर्कशॉप बंद रही और सभी व्यापारियों को भारी नुकसान हुआ। इन व्यापारियों की समस्या के समाधान में बैंक, प्रशासन या किसी संगठन ने कोई पहल नहीं की है।
कैसे शुरू हुई थी रामपुर में वॉयलिन निर्माण की कहानी
गांव में दो भाई थे। उनमें से एक बढ़ई था और छोटा भाई वॉयलिन बजाता था , जो वह मुंबई से लाया था। यह 70 साल पुरानी बात है। एक दिन बड़े भाई के हाथ से अचानक वॉयलिन गिरकर टूट गया और उसके बाद छोटा भाई गिरकर अवसाद ग्रस्त हो गया। इससे बहुत ज्यादा दुखी होकर बड़े भाई ने बड़े नापतोल से टूटे वॉयलिन को ठीक कर दिया। वह इतना बेहतरीन था कि बहुत से लोग उसकी मांग करने लगे।
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