प्राचीन, मध्यकालीन और आधुनिक भारतीय इतिहास का कोई ना कोई हिस्सा अपने मेरठ शहर से जुड़ा हुआ है। यहां की पुरातत्विक खोज से ज्ञात होता है कि यह महाभारत कालीन हस्तिनापुर नगर था, जिसके अवशेष आज भी यहां मौजूद हैं। मेरठ के निकट स्थित परीक्षितगढ़ किले के विषय में कहा जाता है कि इसका नाम अर्जुन के पुत्र परीक्षित के नाम पर पड़ा था, क्योंकि इसका निर्माण राजा परीक्षित द्वारा करवाया गया था।
अर्जुन के वंशज मेरठ और उसके आस-पास के स्थानों पर लंबे समय तक शासन करते रहे। कहा जाता है कि एक बार अर्जुन के पौत्र अर्थात परिक्षित पुत्र जन्मजय को सांप ने काट लिया था, जिसके लिए उसने सफीदों नामक स्थान में सर्पबलि अनुष्ठान करवाया।
यह स्थान आज हरियाणा में स्थित है, सफिदों शहर में 18वीं शताब्दी में जिंद राज्य के शासकों द्वारा एक किले का निर्माण करवाया गया था। जिंद फुलकियान वंश के वंशज थे, इनके शासन की शुरूआत 1763 ईस्वी में हुयी थी। जिंद शासकों द्वारा बनवाया गया यह पहला किला था, जिसे बाद में सैन्य छावनी के रूप में प्रयोग किया जाने लगा। इसमें स्थित बुर्ज इसे मजबूती प्रदान करते हैं।
18वीं सदी में परीक्षित के किले में गुर्जरों का शासन रहा। गुर्जर नरेश नैन सिंह द्वारा इसकी मरम्मत करवायी गयी थी। इस किले की सीढ़ियों से मुगल शासक शाह आलम द्वितीय के दौरान के चांदी के सिक्के मिले हैं, जो स्पष्ट इंगित करते हैं कि मुगल काल के दौरान इस स्थान पर लोगों की आवाजाही रही होगी। आज यह किला मेरठ के अज्ञाात स्थलों में से एक है। हालांकि पर्यटक इसमें भ्रमण के लिए आते हैं।
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