भारतीय इतिहास के सबसे महत्वपूर्ण ग्रंथों की बात की जाए तो उसमे रामायण और महाभारत शीर्ष पर काबिज होते हैं। रामायण और महाभारत की ऐतिहासिकता सिद्ध करने के लिए कई अन्वेषण, शोध उत्खनन आदि हुए हैं, जिससे काफी हद तक यह साफ़ हो जाता है कि उत्तरी कृष्ण लेपित मृद्भांड परंपरा रामायण से और चित्रित धूसर मृद्भांड परंपरा का सम्बन्ध महाभारत से है। इसी तर्ज पर अनेकों शोध हुए हैं और उन्ही शोधों की श्रंखला के विषय में बात करें तो हमारे रामपुर के समीप ही कई ऐसे पुरास्थल हैं, जो महाभारत में वर्णित हैं। इन पुरास्थालों में से प्रमुख हैं अहिछत्र और काम्पिल्य। ये दोनों स्थल महाभारत में एक अत्यंत ही महत्वपूर्ण स्थान पर काबिज हैं। ये दोनों स्थल उत्तर पांचाल और दक्षिण पांचाल की राजधानियों के रूप में कार्य करती थी।
प्रमुख बिंदु के विषय में बात करें तो यह ऐसा है कि जबतक किसी भी पुरास्थल से चित्रित धूसर मृद्भांड, जिसे पीजीडब्लू (PGW) के नाम से भी जानते हैं की प्राप्ति नहीं हो जाती, तबतक उस स्थल को पूर्ण रूप से या वृहत स्तर पर महाभारतकालीन नहीं माना जाता। काम्पिल्य और अहिछत्र से बड़ी मात्रा में प्राप्त इस मृद्भांड ने महाभारत में वर्णित इन स्थलों की ऐतिहासिकता पर मुहर लगाने का कार्य किया है। अगर हम पुरातात्विक दृष्टिकोण से देखें तो अहिछत्र को भारतीय पुरातत्व के शुरूआती समय से ही एक महत्वपूर्ण स्थल के रूप में देखा जाता जा रहा था और यही कारण है कि यहाँ पर बड़े पैमाने पर उत्खनन आदि कार्य किये गए। आज अहिछत्र के विषय में सम्बंधित अनेकों पुस्तकें आदि उपलब्ध हैं परन्तु यदि वहीँ हम काम्पिल्य की बात करें तो वह काफी हद तक नजरअंदाज किया गया है या यूँ कहें की वहां पर बड़े पैमाने पर अभी तक किसी प्रकार का पुरातात्विक कार्य नहीं किया गया है। जैसा कि हमें पता है कि पांडवों का जो शहर था उसे हम इन्द्रप्रस्थ के नाम से जानते हैं और यहीं से करीब 300 किलोमीटर की दूरी पर वह स्थल स्थित है, जहाँ पर द्रोपदी का जन्म यज्ञ से हुआ था। द्रोपदी का जन्म काम्पिल्य में ही स्थित यज्ञ कुंड से हुआ था और आज भी काम्पिल्य में वह द्रोपदी कुंड स्थित है।
काम्पिल्य का पुरास्थल गंगा के किनारे बसा हुआ है। ऐसा माना जाता है कि द्रोपदी के पिता राजा द्रुपद की राजधानी वर्तमान फरुखाबाद जिले में थी। वर्तमान काल में काम्पिल्य अपने स्थिति पर आंसू बहा रहा है, आज भी इस क्षेत्र में अनेकों कुषाण कालीन प्रतिमाएं बिखरी पड़ी हुई हैं। वर्तमान समय में स्थिति के खराब होने के बाद भी यहाँ पर लाखों की संख्या में लोग घूमने आते हैं। आज द्रोपदी कुंड गंदे पानी के तालाब के रूप में उपस्थित है, जो एक बड़े चिंता का विषय है। ऐतिहासिक रूप से यदि देखा जाए तो इस स्थल का पहला सर्वेक्षण 1878 में अलेक्ज़ैंडर कन्निघम (Alexander Cunningham) के दौर में किया गया था। इस पुरास्थल की सर्वप्रथम खुदाई 1975-76 में हुई थी और इस खुदाई में चित्रित धूसर मृद्भांड परंपरा के अवशेष सामने आये थे। काम्पिल्य में अनेकों संस्थाओं ने उत्खनन आदि का कार्य कराया है, जिसमे बीबी लाल, वी. एन. मिश्र आदि के दिशा निर्देश में कार्य किया गया था। यह स्थल अपने संरक्षण के लिए आज भी राह देख रहा है, क्योंकि एएसआई (ASI) ने इस प्राचीन स्थल में रुचि खो दी, तो इसके संरक्षण का बीड़ा नीरा मिश्रा जी ने उठाया, जो दिल्ली की एक सामाजिक उद्यमी थीं। उन्होंने 2003 में द्रौपदी ट्रस्ट (Draupadi Trust) की स्थापना की और उसने काम्पिल्य के ढहते खंडहरों को संरक्षित करने का कार्य उठा लिया। द्रौपदी ट्रस्ट ने 2012 में आईआईटी-कानपुर (IIT-Kanpur) से ग्राउंड पेनेट्रेटिंग रडार (Ground Penetrating Radar) द्वारा जांच करवाई। आईआईटी की रिपोर्ट में विशिष्ट संरचनाओं, एक पत्थर की पक्की सड़क, रैखिक जलमार्ग और दीवार की संरचनाओं की उपस्थिति के संकेत प्राप्त किये गए। एएसआई की अनुमति से, ट्रस्ट ने लखनऊ विश्वविद्यालय के प्राचीन इतिहास और पुरातत्व विभाग द्वारा 2010-12 में उत्खनन भी करवाया।
सन्दर्भ :
http://www.draupaditrust.org/Excavations.html
https://en.wikipedia.org/wiki/Kampilya
https://en.wikipedia.org/wiki/Panchala_Kingdom_(Mahabharata)
चित्र सन्दर्भ :
मुख्य चित्र में द्रौपदी स्वयंवर और महाभारत युद्ध के चित्र दिखाए गए हैं। (Prarang)
दूसरे चित्र में अहिच्छत्र की खुदाई से प्राप्त गहने इत्यादि का चित्र है। (Wikimedia)
तीसरे चित्र में महाभारत के प्रमुख स्थानों में काम्पिल्य, दक्षिण पांचाल इत्यादि को मानचित्र (लाल घेरे) में दिखाया गया है। (publicdomainpictures)
अंतिम चित्र में अहिच्छत्र में खुदाई के दौरान का दृश्य है। (Youtube)
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