किसी भी स्थल की ऐतिहासिकता वहां की धरोहर को खंगालने के उपरान्त ही पता चलती है और पुरातत्व एक ऐसा विषय है जो किसी भी स्थल की ऐतिहासिकता को प्रमाण के साथ प्रस्तुत करता है। हाल के दशक में भारतीय पुरातत्व ने कई ऐसी खोजों को अंजाम दिया है, जिसने भारत की ऐतिहासिकता को अन्य कई देशों की तुलना में और प्राचीन ले जाने का कार्य किया है। चावल की खोज उन्ही में से एक थी। मेरठ शहर के समीप ही बसे सिनौली गांव में कई वर्षों तक उत्खनन का कार्य किया गया, यह उत्खनन का कार्य भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण विभाग के अधीन किया गया था, उस समय यह उत्खनन इस बात को ध्यान में रखते हुए किया गया था कि यहां एक महानगर होगा और ऐसा था भी परन्तु अभी हाल में हुए उत्खनन ने यहाँ के इतिहास को और भी दिलचस्प बनाने का कार्य किया, इस खोज ने मात्र भारत ही नहीं बल्कि पूरे एशिया महाद्वीप के इतिहास को एक नयी पहचान देने का कार्य किया।
भारतीय इतिहास की रूपरेखा को यदि हम देखे तो यह जरूर पता चलता है कि भारत में घोड़ों का आगमन आज से करीब 2,400 वर्ष पूर्व विदेशियों के भारत आगमन के बाद हुआ था। परन्तु यहाँ से प्राप्त हुए उत्खनित वस्तुओं ने इस बिंदु को सिरे से नकारने का कार्य किया है। सिनौली में हुए उत्खनन में कांस्य युगीन रथ की प्राप्ति हुई है, माना जाता है कि रथों को भी विदेशियों द्वारा लाया गया था। इस प्रकार का कथन कई विद्वानों ने दिया था परन्तु जब इस पुरास्थल की तिथि हमारे सामने आई तो पुराने सारे तथ्य एक तरह से नकार दिए गए और भारतीय इतिहास में यह सिद्ध हो गया कि विदेशों में जिस समय मेसोपोटामिया (Mesopotamia) जैसी सभ्यता ने जन्म लिया था, कमोबेश उसी काल से हमारे पास भी रथ की उपलब्धता थी। हमारे सामने ऐसे कई कथन थे, जिसमें रथ का चित्रण और विवरण दोनों मिलता था परन्तु सिनौली के उत्खनन से पहले तक कोई ऐसी खोज नहीं हो पायी थी। यह पहला ऐसा मामला है जब चित्रण में नहीं बल्कि वस्त्विकता में एक रथ की प्राप्ति हुई है।
इस प्राप्ति में एक रथ ही नहीं बल्कि पूरा का पूरा शवाधान भी प्राप्त हुआ है, यह शवाधान एक योद्धा का था, इसके पीछे का प्रमुख कारण यह था कि इस कब्र के साथ कई बरछे, तलवार तथा खंजर आदि की भी प्राप्ति हुई थी। ये तमाम प्राप्तियां सिनौली के इतिहास और पुरातत्त्व को अत्यंत ही महत्वपूर्ण बना देती हैं। यहाँ से प्राप्त शवाधान को शाही कब्रगाह से संबोधित किया गया है, तथा यहाँ पर उत्खनित कब्रों की बात करें तो यहाँ पर कुल करीब 8 कब्रें हैं तथा इनमें लाशों को ताबूत में दफनाया गया था, जो कि एक अद्भुत बात थी। यहाँ से प्राप्त कब्रों में से 3 कब्रें ऐसी थी जिन्हें एक चारपाई की तरह बनाया गया था। यहाँ से प्राप्त वस्तुओं में पशु-पक्षियों, हथियार, विलासिता की सामग्री के साथ तीन रथों की प्राप्ति हुई थी।
सिनौली से प्राप्त रथ हथियार मुकुट आदि मेसोपोटामिया की सभ्यता से काफी हद तक समानांतर दिखाई देते हैं, जिसका एक प्रमुख कारण एक ही समय काल का एक होना हो सकता है। सिनौली की सभ्यता हड़प्पा या सिंधुघाटी की सभ्यता से भी समकालीन थी। यहाँ से प्राप्त रथ के अवशेष ने यह तो सिद्ध कर दिया कि यहाँ के लोगों को काष्ठ में ताम्बे का कार्य करना बखूबी आता था। यहाँ से प्राप्त तलवार, खंजर आदि कांसे के थे, जो एकदम सीधे और नुकीले थे। इसके अलावां यहाँ से हार्पून (Harpoon) की भी प्राप्ति हुई है, हार्पून का अंकन तो भारतीय पाषाण कालीन शैल चित्रों में भी हमें बड़ी संख्या में देखने को मिलता है। कुल मिला कर यह कहा जा सकता है कि सिनौली एक अत्यंत ही महत्वपूर्ण पुरास्थल हुआ करता था, जो अत्यंत ही उन्नत और योद्धाओं से भरपूर था।
सन्दर्भ :
http://www.ijarch.org/Admin/Articles/9-Note%20on%20Chariots.pdf
https://bit.ly/2Jnsak5
https://www.thehindu.com/news/national/other-states/asi-unearths-treasure-at-up-site/article26996341.ece
https://www.hindustantimes.com/delhi-news/asi-finds-coffin-burials-furnaces-and-other-artifacts-at-sanauli/story-YYIN7KLWWZSavYZ0xvNnOL.html
चित्र सन्दर्भ :
मुख्य चित्र में सिनौली से प्राप्त रथ का चित्रण है। (Flickr)
दूसरे चित्र में सिनौली से प्राप्त एक अस्थिपंजर और हथियार (तलवार) दिखाए गए है। (Prarang)
अंतिम चित्र में रथ के पहिये को दिखाया गया है। चित्र का श्रेय डॉक्टर अमित पाठक को जाता है तथा इसका प्रयोग उनकी अनुमति से किया गया है।
© - 2017 All content on this website, such as text, graphics, logos, button icons, software, images and its selection, arrangement, presentation & overall design, is the property of Indoeuropeans India Pvt. Ltd. and protected by international copyright laws.