अमरता का प्रतीक है बरगद का पेड

वृक्ष, झाड़ियाँ और बेलें
31-08-2020 07:22 AM
अमरता का प्रतीक है बरगद का पेड

भारत में पाये जाने वाले प्रत्येक पेड़ का अपना विशेष महत्व है। यहां पेड़ों की अनेक विविधता देखने को मिलती है जिनमें से बरगद का पेड़ भी एक है, जिसे वैज्ञानिक तौर पर फिकस बेंघालेंसिस (Ficus Benghalensis) भी कहा जाता है। यह पेड़ शहतूत परिवार (मोरेसी- Moraceae) का असामान्य आकार का पेड़ है, जो कि भारतीय उपमहाद्वीप का मूल निवासी है। इसकी उंचाई 30 मीटर (100 फीट) तक पहुंच सकती है तथा यह बाद में अनिश्चित काल तक फैलता है। इसकी शाखाओं से विकसित होने वाली वायवीय जड़ें नीचे की ओर बढती हैं तथा मिट्टी में जडे बना लेती हैं, जिससे नये तनों का विकास होता है। एक पेड एक समय में कई जड़ों और तनों के परिणामस्वरूप बहुत घने और मोटे पेड़ की आकृति ले सकता है। भारत के आंध्र प्रदेश में थिम्मम्मा मारीमनु (Thimmamma Marrimanu) नाम का बरगद का पेड़ दुनिया में किसी भी अन्य पेड़ की तुलना में सबसे बडी परिधि वाला पेड़ है। बरगद का पेड़ भारत के राष्ट्रीय वृक्ष के रूप में भी सुशोभित है, जिसे वट या बट आदि नामों से भी जाना जाता है। यह एक द्विबीजपत्री वृक्ष है, जिसकी आयु बहुत ही लम्बी होती है। वृक्ष के बीज दूसरे वृक्ष की दरारों में फंस जाते हैं, जहां उनका अंकुरण होता है और नये वृक्ष की उत्पत्ति होती है।

इसकी शाखाओं एंव कलिकाओं को तोड़ने से दूध जैसा तरल पदार्थ निकलता है, जिसे लेटेक्स (Latex) अम्ल कहा जाता है। पेड की पत्तियां प्रायः चौड़ी एंव अण्डाकार होती हैं जबकि फल गोल और लाल रंग का होता है। यह पेड़ औषधीय गुणों से भी भरपूर है, जिसका उपयोग आयुर्वेद में बड़े पैमाने पर किया जाता है। पेड़ की छाल और पत्तों का उपयोग अत्यधिक रक्तस्राव को रोकने के लिए किया जा सकता है जबकि इसका लेटेक्स बवासीर, गठिया दर्द आदि बीमारियों को ठीक करने के लिए उपयोगी है। मेरठ में भी अनेक स्थानों पर बरगद के पेड़ को आसानी से देखा जा सकता है, जिनमें से एक स्थान मेरठ कॉलेज भी है। मंगल पांडे हॉल (Hall) के पीछे पार्क में स्थित यह पेड़ आज भी महात्मा गांधी की याद दिलाता है। मेरठ से गांधी जी को बहुत लगाव था तथा वे कई बार यहां आकर देश की आज़ादी के प्रयासों हेतु युवाओं को सम्बोधित करते थे। गांधी जी ने मेरठ कॉलेज में स्थित इसी बरगद के पेड़ के नीचे बैठकर छात्र-छात्राओं को संबोधित किया था, जिसे देखने के लिए कई लोग अन्य क्षेत्रों यहां तक कि विदेशों से भी यहाँ आते हैं। बरगद के पेड़ को धार्मिक रूप से भी बहुत महत्वपूर्ण माना जाता है।

हिंदू धर्म में इस पेड़ को लेकर अनेक किवदंतियां हैं। लोग इसे बहुत पवित्र पेड़ मानते हैं, तथा इसके सम्बंध को देवी-देवताओं से जोडते हैं। इसमें सदियों तक बढ़ने और जीवित रहने की क्षमता होती है इसलिए श्रद्धालुओं द्वारा इसकी तुलना सीधे भगवान से की जाती है और इसे भगवान ब्रह्मा का स्वरूप माना जाता है। बरगद के पेड़ को अमरता का प्रतीक माना जाता है तथा इसे मृत्यु के देवता यम से भी जोड़ा गया है। यही कारण है कि इसे गांवों के बाहर शमशान के पास लगाया जाता है। पत्तियों का इस्तेमाल आमतौर पर पूजा और अनुष्ठान में किया जाता है। इसका उपयोग किसी भी समारोह जैसे कि बच्चे के जन्म और विवाह में नहीं किया जाता क्योंकि यह अपने नीचे या आस-पास घास का एक तिनका भी उगने नहीं देता अर्थात नवीकरण या पुनर्जन्म की अनुमति नहीं देता। इस प्रकार माना जाता है कि यह किसी दूसरे जीव की उत्पत्ति और विकास में सहायक नहीं है।

नारियल और केले जैसे पेड़ अस्थायी भौतिक वास्तविकता को परिलक्षित करते हैं क्योंकि ये मरते हैं और फिर खुद ही जन्म ले लेते हैं। जबकि बरगद को स्थायी भौतिक वास्तविकता की श्रेणी में रखा गया है अर्थात यह आत्मा की तरह है जो न तो मरती है और न ही जन्म लेती है। इस प्रकार यह पेड़ अमर है, यदि कोई प्रलय भी आ जाये तो भी यह बचा रहेगा। पेड को सन्यासी माना गया है क्योंकि यह आध्यात्मिक आकांक्षाओं का प्रतिनिधित्व करता है और भौतिकवादी दुनिया से मुक्त है। बरगद के पेड़ के नीचे आमतौर पर ऐसे लोग देखे जाते हैं, जिन्होंने अपने जीवन के भौतिक पहलुओं को छोड़ दिया है और वे परमात्मा की तलाश में भटक रहे हैं। गौतम बुद्ध ने सात दिनों तक इस पेड़ के नीचे बैठकर आत्मज्ञान प्राप्त किया था और इसलिए बौद्ध धर्म में भी इस पेड़ को बहुत महत्ता दी जाती है।

संदर्भ:
https://en.wikipedia.org/wiki/Banyan
https://www.amarujala.com/uttar-pradesh/meerut/banyan-tree-in-meerut-college-meerut-related-to-mhatma-gandhi
https://rgyan.com/blogs/the-banyan-tree-its-mythological-significance/

चित्र सन्दर्भ :
मुख्य चित्र में बरगद के प्राचीन वृक्ष को दिखाया गया है। (Wikimedia)
दूसरे चित्र में शिव मंदिर, किशनगढ़ के प्रांगण में लगा हुआ बरगद का वृक्ष दिखाया गया है। (Flickr)
तीसरे चित्र में बरगद के वृक्ष को दिखाया गया है। (publicdomainpictures)
अंतिम चित्र में एक अलीगढ के अचलताल में 172 वर्ष पुराना बरगद का वृक्ष दिखाया गया है। (Prarang)