भारत में चीते की पुनःस्थापना के लिए किये जा रहे हैं कई प्रयास

मेरठ

 25-08-2020 02:06 AM
स्तनधारी

भारत में जीव-जंतुओं की काफी विविधता देखने को मिलती है, किंतु ऐसे भी कई जंतु हैं, जो पहले यहां अत्यधिक संख्या में पाये जाते थे किंतु अब शायद ही देखने को मिलते हैं। इन्हीं जंतुओं में से एक है, चीता। भारत कभी चीता के लिए घर हुआ करता था, लेकिन अब ये भारत में मौजूद नहीं है। यहां मौजूद आखिरी चीते को 1947 में मार दिया गया था, जिसके बाद 1952 में इसे विलुप्त घोषित कर दिया गया। रिकॉर्ड (Record) किए गए इतिहास में यह भारत में विलुप्त घोषित किया गया एकमात्र बड़ा जानवर है। आज, चीता केवल पूर्वी ईरान (East Iran) के शुष्क क्षेत्रों में और बोत्सवाना (Botswana), नामीबिया (Namibia) और दक्षिण अफ्रीका (South Africa) में पाया जाता है, तथा यह भारतीय उप महाद्वीप में 60 वर्षों से अधिक समय से विलुप्त है। संयुक्त राष्ट्र कन्वेंशन टू कॉम्बैट डेजर्टिफिकेशन (United Nations Convention to Combat Desertification) की हालिया बैठक में, भारतीय प्रतिनिधिमंडल के एक शोधकर्ता ने चीता के विलुप्त होने का प्राथमिक कारण मरुस्थलीकरण (Desertification) को बताया। हालांकि मरुस्थलीकरण चीते के विलुप्त होने का एक महत्वपूर्ण कारण हो सकता है, लेकिन इसके अलावा भी अन्य कारण हैं, जिनकी वजह से चीता भारत में आज मौजूद नहीं है। इसका प्रमुख कारण 1700 और 1800 के दशक में चीते का अंधाधुंध शिकार था। चीते का उपयोग अन्य जानवरों के शिकार के लिए भी किया जाता था और इसके लिए उन्हें बंदी बनाकर प्रशिक्षण दिया जाता था। इन्हें काबू करना बहुत आसान था तथा अक्सर जानवरों को दौड़ और शिकार करने के लिए प्रशिक्षित किया जाता था। चीते का कैद में प्रजनन करना लगभग असंभव था और इस प्रकार उनकी संख्या कम होती चली गयी।
भारत में चीते को अब फिर से स्थापित करने का प्रयास किया जा रहा है, जिसके लिए वैज्ञानिक साक्ष्य के द्वारा ये बताया जायेगा कि अफ्रीकी चीता भारत के लिए एक विदेशी प्रजाति नहीं है और यह भारत में भी जीवित रह सकता है। इसके लिए सरकार 60 साल पहले विलुप्त हो चुके जानवर के आयात की अनुमति मांगने हेतु उच्चतम न्यायालय में याचिका लगाने की योजना बना रही है। भारत में चीतों का पुनःस्थापना उन क्षेत्रों में किया जाना है, जहां वे पहले मौजूद थे तथा प्रजनन करते थे, लेकिन मुगल काल, राजपूत और मराठा भारतीय राजपरिवार तथा बाद में ब्रिटिश उपनिवेशवादियों द्वारा इनका इतना अधिक दुरूपयोग किया गया कि 20वीं सदी की शुरुआत तक इनकी संख्या केवल कुछ हजार रह गयी। मुगल बादशाह अकबर ने चीतों को ब्लैकबक्स (Black Bucks) के शिकार के लिए रखा था। चीते शाही शिकार में सहायता किया करते थे। भारत में मौजूद आखिरी एशियाई चीतों में से तीन को कोरिया (Korea) के महाराजा रामानुज प्रताप सिंह देव द्वारा 1947 में गोली मार दी गयी थी।
चीते की पुनःस्थापना और प्रजनन प्रक्रिया में उनके पूर्व चरागाह वन निवासों की पहचान तथा बहाली की जायेगी। यह प्रत्येक राज्य के स्थानीय वन विभाग के कर्तव्यों के दायरे में है, जहां भारतीय केंद्र सरकार के वित्तपोषण के उपयोग के माध्यम से स्थानांतरण होता है। कुछ समय पूर्व पर्यावरण मंत्रालय ने भारत में नामीबिया चीते को आयात करने और फिर से प्रतिस्थापित करने के लिए 300 करोड़ रुपये की परियोजना प्रस्तावित की थी, किंतु शीर्ष अदालत ने नामीबिया चीता को आयात करने और फिर से पेश करने की इस परियोजना को मनमाना और अवैध बताते हुए इसे रद्द कर दिया। अदालत ने इस प्रस्ताव को वन्यजीव संरक्षण अधिनियम का स्पष्ट उल्लंघन करार दिया। नामीबिया से चीते का पहला बैच (Batch) 2012 के मध्य तक भारत पहुंच गया था और मध्य प्रदेश के वन्यजीव अभयारण्य में फिर से लाया जाना था। लेकिन शीर्ष अदालत द्वारा खराब योजना के लिए मंत्रालय को फटकार लगाने के बाद यह विचार छोड़ दिया गया।
चीता को आयात करने के लिए उत्सुक, मंत्रालय ने अब सबसे तेज जानवरों में से एक को आयात करने के लिए अपनी परियोजना का समर्थन करने के लिए वैज्ञानिक साक्ष्य पेश करने का फैसला किया है। उनका कहना है कि अफ्रीकी चीता भारत के लिए अलग नहीं है और यहां का पर्यावरण उसके अनुकूल हो सकता है। चीता की वापसी से भारत दुनिया का एकमात्र ऐसा देश होगा, जो दुनिया की आठ बड़ी बिल्लियों में से छह की मेजबानी करेगा।

संदर्भ:
https://en.wikipedia.org/wiki/Cheetah_reintroduction_in_India
https://bit.ly/2r4Nabt
https://bit.ly/35yNqyq

चित्र सन्दर्भ:
मुख्य चित्र में मादा चीते और उसके शावकों का एक समूह दिखाया गया है। (Publicdomainpictures)
दूसरे चित्र में नर चीते को अपने शिकार की राह देखते हुए दिखाया गया है। (Unsplash)
तीसरे चित्र में एक चीते का कलात्मक चित्रण है। (Prarang)
अंतिम चित्र में एक चीते को आराम करते हुए दिखाया गया है। (Youtube)

RECENT POST

  • अपने युग से कहीं आगे थी विंध्य नवपाषाण संस्कृति
    सभ्यताः 10000 ईसापूर्व से 2000 ईसापूर्व

     21-11-2024 09:28 AM


  • चोपता में देखने को मिलती है प्राकृतिक सुंदरता एवं आध्यात्मिकता का अनोखा समावेश
    पर्वत, चोटी व पठार

     20-11-2024 09:29 AM


  • आइए जानें, क़ुतुब मीनार में पाए जाने वाले विभिन्न भाषाओं के शिलालेखों के बारे में
    वास्तुकला 1 वाह्य भवन

     19-11-2024 09:22 AM


  • जानें, बेतवा और यमुना नदियों के संगम पर स्थित, हमीरपुर शहर के बारे में
    आधुनिक राज्य: 1947 से अब तक

     18-11-2024 09:31 AM


  • आइए, अंतर्राष्ट्रीय छात्र दिवस के मौके पर दौरा करें, हार्वर्ड विश्वविद्यालय का
    वास्तुकला 1 वाह्य भवन

     17-11-2024 09:30 AM


  • जानिए, कौन से जानवर, अपने बच्चों के लिए, बनते हैं बेहतरीन शिक्षक
    व्यवहारिक

     16-11-2024 09:17 AM


  • आइए जानें, उदासियों के ज़रिए, कैसे फैलाया, गुरु नानक ने प्रेम, करुणा और सच्चाई का संदेश
    विचार I - धर्म (मिथक / अनुष्ठान)

     15-11-2024 09:27 AM


  • जानें कैसे, शहरी व ग्रामीण स्वास्थ्य सेवाओं के बीच अंतर को पाटने का प्रयास चल रहा है
    विचार 2 दर्शनशास्त्र, गणित व दवा

     14-11-2024 09:20 AM


  • जानिए क्यों, मेरठ में गन्ने से निकला बगास, पर्यावरण और अर्थव्यवस्था के लिए है अहम
    नगरीकरण- शहर व शक्ति

     13-11-2024 09:22 AM


  • हमारे सौर मंडल में, एक बौने ग्रह के रूप में, प्लूटो का क्या है महत्त्व ?
    शुरुआतः 4 अरब ईसापूर्व से 0.2 करोड ईसापूर्व तक

     12-11-2024 09:29 AM






  • © - 2017 All content on this website, such as text, graphics, logos, button icons, software, images and its selection, arrangement, presentation & overall design, is the property of Indoeuropeans India Pvt. Ltd. and protected by international copyright laws.

    login_user_id