भारत में वाणिज्यिक बकरी पालन दिन-प्रतिदिन बहुत लोकप्रिय होता जा रहा है। बकरी पालन एक बहुत ही लाभदायक व्यवसाय है, इसलिए भारत में इस व्यवसाय की लोकप्रियता तेजी से बढ़ रही है। यह देश के बेहतरीन और स्थापित पशुधन प्रबंधन विभाग में से एक है। बाजार की विशाल मांग और उचित प्रसार, लंबे समय के लिए इस व्यवसाय की तेज लाभप्रदता और स्थिरता सुनिश्चित करता है। लेकिन भारत में वाणिज्यिक बकरी पालन और इसके बाजार को मुख्यतः कुछ बड़े और प्रगतिशील उत्पादकों, उद्योगपतियों, व्यापारियों और बड़ी कंपनियों द्वारा ही अपनाया गया है। भारत में, बकरी पालन का अभ्यास छोटे से लेकर बड़े पशु पालकों द्वारा किया जाता है। देश में बकरी पालन से लगभग तीन करोड़ लोग जुड़े हैं। बकरियां मुख्य मांस उत्पादक जानवर हैं। केंद्रीय बकरी अनुसंधान संस्थान के अनुसार, देश में एक वर्ष में लगभग 942,930 टन (Tonnes) बकरी के मांस का उत्पादन किया जाता है। घरेलू या व्यावसायिक रूप से बकरी पालन के अनेकों लाभ हैं। बकरियां बहुउद्देश्यीय जानवर हैं, जो दूध, मांस, फाइबर (Fiber) आदि का उत्पादन एक साथ करती हैं। गाय और अन्य पशुधन पालन की तुलना में, बकरी पालन के लिए कम जगह और कम अतिरिक्त सुविधाओं की आवश्यकता होती है। इनके लिए आवास और अन्य प्रबंधन की मांग कम होती है। छोटे पैमाने पर जब बकरी उत्पादन किया जाता है तब वे अपने मालिकों और अपने अन्य पशुधन के साथ अपने घरों को साझा करने में सक्षम होती हैं।
बकरी पालन के लिए इंफ्रास्ट्रक्चर (Infrastructure), फीडिंग (Feeding) और इलाज जैसी उत्पादन लागत कम होती है। बकरी पालन में कृषि उत्पादों के विपणन के बारे में सोचने की आवश्यकता नहीं होती, क्योंकि आपके उत्पादों के विपणन के लिए देश में पहले से ही एक स्थापित बाजार है। अन्य पशु फार्म (Animal Farms) की तुलना में बकरी फार्म को बनाए रखना वास्तव में बहुत आसान है। बकरियां लगभग सभी प्रकार की कृषि-जलवायु परिस्थितियों के साथ अनुकूलित हो सकती हैं तथा इनमें बीमारियाँ भी कम होती हैं। बकरी पालन के लिए आपको एक ऐसे स्थान की आवश्यकता होगी, जहां ताजा और स्वच्छ पानी मौजूद हो तथा घास, फसल और अन्य हरे पौधों का उत्पादन आसानी से किया जा सके। चयनित भूमि, बाजार या शहर से बहुत दूर नहीं होनी चाहिए। यह सुनिश्चित करना आवश्यक है कि वस्तुओं और दवाओं की खरीद के लिए आपके चयनित क्षेत्र के पास एक उपयुक्त बाजार मौजूद हो।
भारत में विविध प्रकार की बकरी प्रजातियों का पालन किया जाता है, जिनमें जमुनापुरी, बीतल, बारबरी, सिरोही, चंग्थंगी (Changthangi), ब्लैक बंगाल (Black Bengal) आदि शामिल हैं। जमुनापुरी नस्ल मुख्य रूप से उत्तर प्रदेश राज्य में पाई जाती है। यह भारत की सबसे लंबी टांगों वाली बकरियों में सबसे बड़ी और सबसे सुंदर है, जो कि आमतौर पर सफेद रंग में पायी जाती है तथा प्रति दिन 2 से 2.5 किलोग्राम दूध देने में सक्षम है। इन्हें केवल मुख्य रूप से उनकी अत्यधिक दूध उत्पादन क्षमता के लिए पाला जाता है। बीतल मुख्यतः पंजाब राज्य में पायी जाती है। ये नस्लें मुख्य रूप से दूध और मांस के उद्देश्य से पाली जाती हैं। यह आम तौर पर जमुनापुरी नस्ल से छोटी होती है, जिसका औसत दुग्ध उत्पादन 150 किलोग्राम होता है। बारबरी नस्ल दिल्ली, उत्तर प्रदेश, गुड़गांव, करनाल, पानीपत और हरियाणा राज्य के रोहतक के शहरी इलाकों में लोकप्रिय है। यह नस्ल मुख्य रूप से दूध और मांस के उद्देश्य से पाली जाती है, जो कि प्रतिदिन 1 से लेकर 1.5 किलोग्राम दूध देने में सक्षम है। इस नस्ल की प्रजनन क्षमता भी बेहतर है। ब्लैक बंगाल को मांस, दूध, त्वचा और फाइबर उत्पादन के लिए बहुत उपयुक्त माना जाता है।
कुछ कारकों की वजह से बकरी पालकों को नुकसान का सामना भी करना पडता है। इन कारकों में प्रभावी ढंग से बकरी पालन के बारे में पर्याप्त जानकारी का अभाव, बकरी पालन व्यवसाय में आधुनिक पालन के तरीकों का अनुपयोग, जीवित बकरियों को एक स्थान से दूसरे स्थान तक ले जाने के लिए विशेष रूप से डिज़ाइन (Design) किए गए वाहनों की अनुपस्थिति आदि हैं। बिना किसी व्यवहारिक बकरी पालन प्रशिक्षण के बकरियों को निमोनिया (Pneumonia), डायरिया (Diarrhea), टेटनस (Tetanus) आदि जैसे कुछ घातक रोगों का सामना करना पडता है, जिसकी वजह से बकरियों में उच्च मृत्यु दर देखने को मिलती है। बकरी पालन में इस प्रकार के नुकसान से बकरी पालकों के लिए बकरी पालन फिर से शुरू करना मुश्किल होता है। बकरी उत्पादक ज्ञान की कमी के कारण उत्पादन के लिए सही नस्ल का चयन नहीं कर पाते हैं, परिणामस्वरूप वे अपना वांछित उत्पादन नहीं प्राप्त कर पाते और बकरी पालन में उनकी रुचि खोने लगती है। भारत के कुछ क्षेत्रों में उत्पादकों को उनके कृषि उत्पादों का उचित मूल्य नहीं मिलता, जो उन्हें बड़े उत्पादन के लिए हतोत्साहित करता है।
वर्तमान समय में पूरा विश्व कोरोना महामारी का सामना कर रहा है। इसके प्रसार को रोकने के लिए सरकार द्वारा की गयी तालाबंदी ने कई उद्योगों को प्रभावित किया, जिसमें बकरी पालन या बकरी उद्योग भी शामिल है। तालाबंदी के चलते दुग्ध और कुक्कुट (Poultry) उद्योग घाटे में चल रहा था। इनके अलावा, बकरी पालन से जुड़े एक बड़े कार्यबल को भी कोरोना महामारी संकट का सामना करना पड़ा है।
इस कारण से बकरी पालक न तो अपनी बकरियाँ बेच पा रहे हैं और न ही उनके लिए चारे का प्रबंध कर पा रहे हैं। मार्च में होली और मई में बकरा-ईद ऐसे दो प्रमुख अवसर होते हैं, जिनमें बकरी पालक अच्छा पैसा कमाते हैं। लेकिन कोरोना महामारी और तालाबंदी के कारण, यह वर्ष उन्हें खुश करने वाला नहीं रहा। इससे पहले, जब ये बकरियां मांग में थीं, बकरी पालक कमाई के साथ अन्य बकरियों के लिए चारा खर्च का प्रबंधन करने में सक्षम थे। लेकिन अब चूंकि इन बकरियों के लिए कोई खरीदार नहीं है, तो इनके लिए चारा खरीदने में बकरी पालक असमर्थ हैं। तालाबंदी के बाद से देश के कई राज्यों में मांस की बिक्री रुक गई है। इससे इस व्यवसाय से जुड़े लोगों को भारी नुकसान हुआ है। हालिया पशुधन जनगणना के आंकड़ों के अनुसार, भारत में बकरियों की संख्या 14.89 करोड़ है। देश में कुल मांस उत्पादन में, बकरी के मांस का उत्पादन 19% है। 2016 में जारी राष्ट्रीय दुग्ध विकास बोर्ड के आंकड़ों के अनुसार, हर साल 5 मीट्रिक (Metric) टन बकरी के दूध का उत्पादन होता है तथा छोटे किसान इस उत्पादन में प्रमुख योगदान देते हैं।
चित्र सन्दर्भ:
मुख्य चित्र में बंगाल बकरी को दिखाया गया है। (Flickr)
दूसरे चित्र में जमुनापुरी बकरी को दिखाया गया है। (Youtube)
तीसरे चित्र में बीतल बकरी को दिखाया गया है। (Wikipedia)
चौथे चित्र में बारबरी बकरी की प्रजाति है। (Wikimedia)
पांचवें चित्र में सिरोही प्रजाति की बकरी है। (Wikimedia)
अंतिम चित्र में वेस्ट बंगाल (West Bengal) बकरी को दिखाया गया है। (Flickr)
© - 2017 All content on this website, such as text, graphics, logos, button icons, software, images and its selection, arrangement, presentation & overall design, is the property of Indoeuropeans India Pvt. Ltd. and protected by international copyright laws.