सम्मान की प्रतीक पगड़ी

मेरठ

 21-08-2020 03:57 AM
स्पर्शः रचना व कपड़े

पगड़ी को फारसी में दुलबंद और अंग्रेजी में टर्बन (Turban) कहा जाता है। यह लंबे कपड़े को लपेटकर टोपी की शक्ल में सिर पर पहना जाता है। सिर पर धारण करने वाली चीजें वैसे भी मान सम्मान का प्रतीक और शिरोधार्य होती हैं। यह विभिन्न समुदायों में अलग-अलग आकार और नामों से प्रचलन में रही हैं। भारतीय उपमहाद्वीप, दक्षिण पूर्व एशिया, अरब प्रायद्वीप, मध्य पूर्व और केंद्रीय एशिया, उत्तरी और पश्चिमी अफ्रीका आदि में पगड़ी का लंबा इतिहास रहा है। केसरी पगड़ी बहुत लंबे कपड़े से बनती है। यह ना सिली जाती है और ना काटी। सिख समुदाय में आदमी और औरत दोनों पगड़ी पहनते हैं। सूफी संतों की भी यह पारंपरिक वेशभूषा का हिस्सा है। पगड़ी की लाज, पगड़ी की शान जैसे मुहावरे समाज में प्रचलित हैं।


भारत में पगड़ी का इतिहास

भारत में सिर पर पगड़ी धारण करने से एक दैवीय आभास होता है। पगड़ी पहनने का चलन हर समाज और धर्म में प्रचलित था। पगड़ी की कहानी अचरज से भरी पड़ी है, खास तौर से यह सच्चाई कि 10000 BC में भी इसका चलन था।
प्रागैतिहासिक युग

इस युग में पहले तो अपनी सुरक्षा के लिए तथा बाद में अपनी सजावट के लिए पोशाकों के साथ-साथ सिर पर पहने जाने वाली पगड़ी के रूप, समय के साथ परिवर्तित होते रहे। आदिम युग में जब मनुष्य कपड़ा बुनना नहीं जनता था, कमर के आसपास पेड़ के तने से बनाया गया एक रिंग (Ring) की तरह का पहनावा पहनता था और उसमें अपने पत्थर के औजार टांगता था, इसी तरह प्रागैतिहासिक मनुष्य अपने सिर पर पत्तियों, फूलों और पंखों को लटका कर प्राकृतिक रूप से खुद को सजा कर रखता था। सिर पर पहनने वाले साफे के प्रमाण प्रागैतिहासिक गुफा पेंटिंग (Paintings), जो शिकारियों द्वारा कोई 10000 से 30000 साल पहले बनाई गई थी में मिलते हैं।


प्राचीन भारत

ऋग्वेद में टोपी का जिक्र, यज्ञ करते समय सिर पर पहनने के संदर्भ में आता है, ठीक वैसे ही टोपिया मोहनजोदड़ो और हड़प्पा सभ्यता में इस्तेमाल होती थी। प्राचीन भारत में पगड़ी गरिमा और अधिकार का प्रतीक होती थी। उत्तर वैदिक काल( 600- 320 BC) में सभी लोग 'उष्णीषा' नाम से सामान्य पगड़िया पहनते थे। ऐतिहासिक विकास को देखें तो यूरोपियन लोगों में हैट पहनने की शुरुआत से सैकड़ों साल पहले से भारतीय समाज में लोग पगड़ी पहन रहे थे। उस समय स्त्री और पुरुष दोनों की पगड़ी एक समान होती थी।


शुंग काल (185- 75 BC)

इस काल में पुरुषों की पगड़ी को 'कोहली' और स्त्रियों की पगड़ी को 'उत्तरीय' कहते थे। अलग-अलग स्थानों के लोग अलग-अलग पगड़ी पहनते थे।


गुप्त काल( 320- 550 AD)

इस काल में केवल शासक और उच्च पदस्थ अधिकारी पगड़ी पहनते थे। यह पद के हिसाब से भी भिन्न होती थी। 11वीं शताब्दी तक सभी स्त्री-पुरुष पगड़ी पहनने लगे।


इस्लामी युग (12- 17वी शताब्दी)

इस युग में फारसी/ अरबी संस्कृति के अनुसार पगड़ी में बदलाव हुए। सिर पर पहनने वाली टोपी के अनेक आकार होते थे- तिकोनी, नुकीली, चोटीनुमा, किनारे ऊपर की तरफ पलटे हुए, आदि। अकबर ने पगड़ी के डिजाइन (Design) में भारी फेरबदल की। यह भी कहा जाता है कि उन्होंने अपनी पगड़ी का रूप आकार मुगलाई के बजाय हिंदुस्तानी कर लिया था, जिसने बहुत से हिंदुओं को पगड़ी पहनने के लिए प्रेरित किया। जहांगीर की टोपी सोने के कपड़े की बनी और उसका आधार हीरो से बना था। अमीर खुसरो ने लिखा है कि दिल्ली के लोग छोटी पगड़ी और तिरछी टोपी पहनते थे। शायर मीर तकी मीर ने लिखा कि आम लोग तथा बूढ़े लोग जवान दिखने के लिए 'काजकुला टोपी' पहनते थे। 17वीं शताब्दी में एक कश्मीरी हिंदू दरबारी को उसके बेटे की शादी के उपलक्ष्य में राजा ने 100 यार्ड (Yards) लंबी पगड़ी उपहार में दी थी। शायद उसी समय से कश्मीरी हिंदुओं ने खास अवसरों पर बड़ी पगड़ी पहनना शुरू किया। आगे चलकर यह चलन राजस्थान और पंजाब पहुंचा, जहां त्योहारों पर बड़ी-बड़ी पगड़ी पहनी जाने लगी। बाद में 17वीं शताब्दी में औरंगजेब ने गैर मुस्लिम लोगों के पगड़ी पहनने पर रोक लगाने की कोशिश की। उसका तर्क था कि सिर्फ शासक वर्ग को पगड़ी पहनने का अधिकार है, शासितों को नहीं। इसके बाद हिंदुओं ने पगड़ी का बहिष्कार कर दिया।


सिख हस्तक्षेप

औरंगजेब के प्रतिबंध का खासतौर से सिख समुदाय और साहसी हिंदू जैसे कि राजपूत, जाट और मराठों ने विरोध किया। वीरतापूर्वक अपनी आन बान शान की बरसों पुरानी परंपरा को कायम रखते हुए, पगड़ी पहनना जारी रखा। इस लड़ाई में सिखों के नौवे गुरु तेग बहादुर जी ने तिलक आदि हिंदू धर्म के प्रतीकों की रक्षा के लिए दिल्ली में शहादत दी। दसवें गुरु गोविंद सिंह जी ने पगड़ी की नई परिभाषा दी और उससे नये खालसा पंथ का जन्म हुआ। आज यह सारे विश्व में सिखों के जीवंत सांस्कृतिक प्रतीक के रूप में जाना जाता है।

विदेशों में पगड़ी के रूप रंग

समकालीन पगड़ी बहुत से रूप आकार और रंगों में प्रचलित है। उत्तरी अफ्रीका, केंद्रीय और मध्य एशिया और फिलीपींस (Philippines) में पगड़ी पहनने वाले हर बार पहनते समय इसे बांधते हैं। इसके लिए कपड़े की बहुत लंबी पट्टी इस्तेमाल होती है। आमतौर पर इसकी लंबाई 5 मीटर तक होती है। कुछ दक्षिण एशियाई लोग पगड़ी के आकार में टोपी सिलवाते भी हैं। यह क्षेत्र विशेष की जरूरत के हिसाब से बहुत बड़ी या औसत आकार की होती हैं। पारंपरिक रूप से पश्चिमी देशों में महिलाएं सिर पर टोपी पहनती हैं। 20वीं शताब्दी में इसका प्रचलन बहुत जोर शोर से था। यह सिली हुई होती थी ताकि इन्हें आसानी से पहना और उतारा जा सके। अरब प्रायद्वीप में सिर पर सादा या चेक स्कार्फ़ (Scarf) बांधा जाता है। अफगानिस्तान में पगड़ी राष्ट्रीय परिधान का हिस्सा है । बांग्लादेश में धार्मिक नेताओं द्वारा सफेद और सूफियों द्वारा हरी पगड़ी बांधी जाती है। म्यानमार में पगड़ी को गॉन्ग बॉन्ग (Gaung Baung) कहते हैं और बहुत से क्षेत्रीय रूपों में यह पहनी जाती है। मलेशिया में सिख पवित्र पगड़ी पहनते हैं। इंडोनेशिया में पारंपरिक पगड़ी को आईकेट (Iket) कहते हैं, इसका अर्थ बांधना होता है। यह तिरछे ढंग से मोड़कर तिकोने आकार में सिर पर बांधी जाती है। नेपाल में ग्रामीण क्षेत्रों के पुरुष पगड़ी या फेटा पहनते हैं। खासतौर से किसान इसका प्रयोग करते हैं। पाकिस्तान में भी गांव में इसका बहुत चलन है। पश्तून इलाके में यह ज्यादा पहनी जाती है। बलूच लोग बड़ी-बड़ी पगड़ी पहनते हैं। यूनाइटेड किंगडम (United Kingdom) में 6ठी शताब्दी से पुरुष महिलाएं पगड़ी पहन रहे हैं। आजकल इनकी जगह हैट ने ले ली है। ग्रीस (Greece) में पगड़ी को सारीकी कहते हैं। वियतनाम में भी इसका प्रयोग करते हैं। फिलीपींस में पगड़ी पहनने की प्राचीन परंपरा है। मुस्लिम महिलाएं कोमबोंग (Kombong) नाम की पगड़ी और पारंपरिक हिजाब (Hijab) पहनती हैं। पुरुष सामान्य पगड़ी पहनते हैं, जिसे पुतोंग (Putong) कहते हैं।

सन्दर्भ:
http://www.dsource.in/resource/sikh-turbans/history-turban-india
https://en.wikipedia.org/wiki/Turban
https://edition.cnn.com/style/article/turbans-tales-history/index.html
http://www.millinerytechniques.com/turbans.html

चित्र सन्दर्भ :

मुख्य चित्र में भारतीय राजपूत पगड़ी को दिखाया गया है। (Facebook)
दूसरे चित्र में भारत में पगड़ी के इतिहास का वर्णन करता हुआ संयुक्त चित्रण है। (Prarang)
तीसरे चित्र में प्रागेतिहासिक मानव को सिर के ऊपर छल्ले के साथ चित्रित किया गया है, जो पगड़ी का प्रारंभिक उदाहरण है। (Pngtree)
चौथे चित्र में मोहनजोदड़ो से प्राप्त प्रतिमा पर पगड़ी के साक्ष्य मिलते हैं। (Wikimedia)
पांचवें चित्र में भरौत शुंग को पगड़ी के साथ दिखाया गया है। (Wikipedia)
छठे चित्र में गुप्त और शुंग कालीन पगड़ी को चित्रित किया गया है। (Prarang)
अंतिम चित्र में पगड़ी में विभिन्न मुग़ल शासक दिखाए गए हैं। (Prarang)

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