गांधी जी ने कहा "यह एक छोटा सा मंत्र है, जो मैं आपको देता हूं। आप इसे अपने दिलों पर अंकित कर सकते हैं और अपनी हर सांस को इसकी अभिव्यक्ति दे सकते हैं। यह मंत्र है: 'करो या मरो' या तो स्वतंत्र भारत देखेंगे या उसकी कोशिश में मर जाएंगे, किन्तु हम अपनी गुलामी के अपराध को देखने के लिए जीवित नहीं रहेंगे।" इस बात ने नागरिकों को एक विशाल सविनय अवज्ञा आंदोलन के लिए प्रेरित किया, क्योंकि द्वितीय विश्व युद्ध (1939 से 1945) के अंत तक अंग्रेजों ने स्वतंत्रता देने से इनकार कर दिया था।
जब पुलिस ने फहराए गए झंडे को उतार दिया, तब लोगों पर लाठी चार्ज करना शुरू किया और फिर सड़कों पर जाकर किसी भी व्यक्ति और स्वयंसेवकों का शिकार करना शुरू कर दिया। उन्होंने होटलों से चाय पीने वाले लोगों को भी घसीट कर बाहर निकाला और जहां भी भीड़ देखी लाठियां चलाने लगे। पुलिस से भयभीत न होकर कुछ सेविकाओं ने साहसपूर्वक उनका सामना किया और उन्हें रुकने के लिए कहा। यहां तक कि सेविकाओं को भी पुलिस की मार झेलनी पड़ी।
सड़कों पर पुलिस द्वारा छोड़े गए मलबे की सफाई हो रही थी, किसी को यह याद नहीं है कि पुलिस ने कितनी बार आग लगाई या आंसू गैस का इस्तेमाल किया। सुबह से लाठीचार्ज शुरू होने के बाद, बंद नहीं हुए थे। भले ही कई लोग मारे गए, लेकिन उनकी दृढ़ता अडिग थी और शाम को बैठक की पुनः घोषणा की गई, जिसमें गांधीजी और बा अनुपस्थिति थे।
हजारों लोग शिवाजी पार्क मैदान में एकत्र हुए। लोगों का इतना विशाल समागम इससे पहले बॉम्बे (Bombay) में कभी नहीं देखा गया।
पुलिस द्वारा हमला रोकने से पहले, 3 घंटे तक इस विशाल भीड़ ने लाठी चार्ज और आंसू गैस से लड़ाई की। इन 3 घंटों के दौरान कई छोटी-छोटी बैठकें हुईं और गाँधी जी के संदेश को पढ़कर सुनाया गया कि "हर किसी को अहिंसा के तहत अंत तक लड़ाई लड़नी है।"
चित्र सन्दर्भ:
1942 की ज्वाला (The flames of 1942 book)