दशकों से नैदानिक अनुसंधान (Clinical Research) मानव पीड़ा के मनोविज्ञान पर ध्यान केंद्रित कर रहा है और निरंतर इस पर प्रकाश डालने का प्रयास करता रहा है। लेकिन इस पीड़ा, जो कि अप्रिय प्रतीत होती है, का एक उज्ज्वल पक्ष भी है, जिस पर विभिन्न शोधों ने कम ही ध्यान दिया है। यह पक्ष है, 'करुणा या दयालुता'। मानवीय पीड़ा अक्सर करुणा के सुंदर कार्यों के साथ होती है जो कि दूसरों की मदद कर उन्हें राहत देना चाहती है। आपने देखा होगा कि अक्सर जब आपको कोई आवारा बिल्ली या कुत्ता दिखायी देता है, तो आप उसे खाना देने का प्रयास करते हैं। इसी तरह से आपने यह भी देखा होगा कि कई लोग बेघरों के लिए बनाए गये आश्रयों में भोजन वितरित करते हैं। यह भाव करूणा की वजह से ही उत्पन्न होता है। किसी की पीड़ा को देखते हुए मनुष्य में उत्पन्न भावनात्मक प्रतिक्रिया ही करूणा है, जिसमें मदद करने की एक प्रामाणिक इच्छा शामिल होती है। कई लोग करूणा और सहानुभूति या परोपकारिता को एक ही समझते हैं, लेकिन वास्तव में ये दोनों एक दूसरे से भिन्न है। शोधकर्ताओं ने सहानुभूति को दूसरे व्यक्ति की भावनाओं का भावनात्मक अनुभव माना है। एक अर्थ में, यह दूसरे की भावना का एक स्वचालित प्रतिबिंब है, जैसे कि एक दोस्त के दुख में खुद आंसू बहाना। जबकि परोपकारिता एक ऐसी क्रिया है, जो किसी और को लाभ पहुंचाती है। यद्यपि ये शब्द करुणा से संबंधित हैं, लेकिन करूणा के समान नहीं हैं। करुणा अक्सर, एक सहानुभूति प्रतिक्रिया और परोपकारी व्यवहार को शामिल करती है।
एक ऐसे बच्चे के बारे में विचार करें जोकि एक कुएं में गिरने वाला है। अपवाद के बिना, यदि आप इस दृश्य को देख रहे हैं, तो ऐसी स्थिति में आपके अंदर करूणा का भाव विकसित होगा। यह करूणा उसके माता-पिता की मदद करने या पड़ोसियों और दोस्तों की प्रशंसा प्राप्त करने के लिए उत्पन्न नहीं होती और न ही इसलिए उत्पन्न होती है कि आपको इस बात की चिंता है कि अगर आप बच्चे की मदद करने की कोशिश नहीं करेंगे तो आपकी प्रतिष्ठा को नुकसान होगा या फिर बच्चे के रोने की आवाज आपको पसंद नहीं है। इन सभी बातों से मेंगज़ी(Mengaji) ने यह निष्कर्ष निकाला कि करुणा का भाव मनुष्य के लिए मौलिक है। मेंगज़ी एक दार्शनिक थे, जो चौथी शताब्दी ईसा पूर्व चीन में रहते थे तथा उन्होंने कोंगज़ी (Kongzi-कन्फ्यूशियस- Confucius) की परंपरा का अनुसरण किया। इस प्रयोग से उन्होंने इस विचार की खोज की कि, मनुष्य सहज रूप से दयालु है। अनुमोदन करने और अस्वीकृत करने की क्षमता को छोड़कर इस प्रकार की समझ के अस्तित्व को प्रदर्शित करने के लिए मेंगज़ी ने विचार प्रयोग (Thought Experiments) दिया। उनके अनुसार सभी मनुष्यों में दया या करूणा का भाव होता है।
करुणा एक स्वाभाविक और स्वचालित प्रतिक्रिया है, जिसने हमारे अस्तित्व को सुनिश्चित किया है। यह आश्चर्य की बात नहीं है कि करुणा एक प्राकृतिक प्रवृत्ति है क्योंकि यह मानव अस्तित्व के लिए आवश्यक है। करुणा वास्तव में स्वाभाविक रूप से विकसित और अनुकूलित लक्षण हो सकती है। इसके बिना, हमारी प्रजातियों के अस्तित्व और उत्कर्ष की संभावना नहीं थी। करूणा या दयालुता सबसे उच्च वांछनीय लक्षणों में से एक है, जो शारीरिक और मानसिक स्वास्थ्य तथा समग्र कल्याण के लिए अत्यंत लाभप्रद है। यह हमें दूसरे लोगों के साथ सार्थक तरीके से जुड़ने में मदद करती है, जिससे हम बेहतर मानसिक और शारीरिक स्वास्थ्य का आनंद लेने में सक्षम हो पाते हैं और इस प्रकार किसी भी बीमारी से आसानी से बाहर निकल जाते हैं। यह हमारे जीवन काल को भी बढाती है। एक अध्ययन से पता चलता है कि दो साल से कम उम्र के बच्चों में भी, दूसरों को ख़ुशी देने से खुशी मिलती है, क्योंकि वे खुद ही ऐसे व्यवहार करते हैं। दयालु जीवन शैली तनाव के खिलाफ एक माध्यम के रूप में कार्य करती है। यह दूसरों से अच्छे संबंध की भावना को भी बढ़ाती है।
इस प्रकार का सामाजिक जुड़ाव- सामाजिक, भावनात्मक और भौतिक कल्याण का सकारात्मक फीडबैक (Feedback) उत्पन्न करता है। जिन लोगों के पास करूणा का भाव कम होता है उनके पास सामाजिक जुड़ाव की कमी होती है। कम सामाजिक संबंध आम तौर पर शारीरिक और मनोवैज्ञानिक स्वास्थ्य में गिरावट के साथ जुड़ा हुआ है, साथ ही असामाजिक व्यवहार के लिए एक उच्च प्रवृत्ति है, जो आगे अलगाव की ओर जाती है। एक दयालु जीवन शैली अपनाने से सामाजिक संबंध को बढ़ावा देने और शारीरिक और मनोवैज्ञानिक स्वास्थ्य में सुधार करने में मदद मिल सकती है।
करूणा के संदर्भ भारतीय धर्मों से भी मिलते हैं। हिंदू धर्म के शास्त्रीय साहित्य में, करुणा कई रंगों के साथ एक गुण है, प्रत्येक छाया को विभिन्न शब्दों द्वारा समझाया गया है। तीन सबसे आम शब्द दया, करुणा, और अनुकम्पा है। सभी जीवित प्राणियों पर दया करने का गुण हिंदू दर्शन में एक केंद्रीय अवधारणा है। बौद्ध धर्म में भी करूणा को अत्यधिक महत्व दिया गया है। दलाई लामा ने कहा है कि यदि आप चाहते हैं कि अन्य लोग खुश रहें, तो करूणा का अभ्यास करें। यदि आप खुश रहना चाहते हैं, तो करुणा का अभ्यास करें। अमेरिकी भिक्षु भिक्खु बोधी कहते हैं कि करुणा प्रेम-कृपा के पूरक की आपूर्ति करती है। जहां प्रेम-कृपा में दूसरों के सुख और कल्याण की कामना करने की विशेषता है, वहीं करूणा की विशेषता है कि दूसरों को कष्टों से मुक्त किया जाए।
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