भारतीय पारंपरिक स्वदेशी खेल गिल्ली डंडा का इतिहास

मेरठ

 07-08-2020 06:18 PM
हथियार व खिलौने

गिल्ली-डंडा शब्द यथाशब्द ‘टिप-कैट(Tip-cat)’ से व्युत्पन्न हुआ था। यह भारतीय पारंपरिक स्वदेशी खेलों में से एक है। गिल्ली-डंडा की एक व्याख्यात्मक परिभाषा दी गई है: "दो छड़ियों (एक लंबी और दूसरी छोटी) का उपयोग करके खेला जाने वाला खेल है। इसे छोटी छड़ी के एक कोने पर लंबी छड़ी से मारकर खेला जाता है। इस खेल को अभी भी भारतीय उपमहाद्वीप और दक्षिण एशियाई देशों जैसे बांग्लादेश, भारत, श्रीलंका के देशों में खेला जाता है। वहीं बांग्लादेश में, इसे 'डंगुली खेल' के रूप में जाना जाता है; जबकि नेपाली में इसे 'दांडी बायो' के रूप में जाना जाता है, ये दोनों एक समान खेल हैं। वहीं गिल्ली-डंडा एक प्राचीन खेल है, जिसकी संभवतः 2500 साल पहले उत्पत्ति हुई थी।
इस खेल को खेलने के लिए एक 2-3 फीट लम्बे लकड़ी के डंडे और 3 से 6 इंच लंबी एक गिल्ली की जरूरत होती है, जिसके दोनों किनारों को नुकीला कर दिया जाता है, जिससे उस पर डंडे से मारने पर गिल्ली उछल जाती है। खेल के नियम भी बिल्कुल आसान हैं, इस खेल में खिलाड़ियों की संख्या कितनी भी हो सकती है, 2, 4, 10 या इससे भी अधिक, बस वे दो टीमों में बंटे होते हैं। एक छोटे से घेरे में खड़े होकर, खिलाड़ी एक पत्थर पर गिल्ली को एक झुके हुए तरीके से खड़ा करता है, गिल्ली का एक छोर जमीन को छूता है जबकि दूसरा छोर हवा में होता है।
इसके बाद खिलाड़ी गिल्ली के उठे हुए सिरे पर मारने के लिए डंडे का इस्तेमाल करता है, जो गिल्ली को हवा में उड़ा देता है। जब यह हवा में होती है, तो खिलाड़ी डंडे को गिल्ली से इतनी जोर से मरता है कि वह काफी दूर जाकर गिरे। गिल्ली को मारने के बाद, खिलाड़ी को एक प्रतिद्वंदी द्वारा गिल्ली के पुनर्प्राप्त किए जाने से पहले गोले के बाहर पूर्व-सहमत बिंदु तक भागकर जाना होता है और छूने की आवश्यकता होती है। गिल्ली के कोई विशेष आयाम नहीं होते हैं और इसमें सीमित संख्या में खिलाड़ी भी नहीं होते हैं।
ऐसा माना जाता है कि इस खेल की उत्पत्ति मौर्य राजवंश के शासन काल में हुई थी और इसी खेल से ही पश्चिमी खेलों जैसे क्रिकेट, बेसबॉल और सॉफ्टबॉल की उत्पत्ति हुई। परंतु धीरे-धीरे भारत में इसका प्रचलन कम होने लगा और क्रिकेट के आगमन, व्यस्त जीवन शैली तथा आधुनिक जीवन के कारण, ये खेल अब एक इतिहास बनाता जा रहा है। हिंदी लेखक प्रेमचंद ने अपनी लघु कथा 'गिल्ली-डंडा' के माध्यम से पुराने और आधुनिक समय के बीच के अंतर की ओर ध्यान केंद्रित किया है। इस कहानी में प्रेमचंद ने कहा है कि, "हमारे अंग्रेजी दोस्त मानें या न मानें मैं तो यही कहूँगा कि गिल्ली-डंडा सब खेलों का राजा है। अब भी कभी लड़कों को गिल्ली-डंडा खेलते देखता हूँ, तो जी लोट-पोट हो जाता है कि इनके साथ जाकर खेलने लगूँ।” गिल्ली-डंडा कहानी लेखक के बचपन की यादों पर आधारित है। इसमें लेखक और उनके मित्र गिल्ली डंडा खेलते थे, लेखक का एक मित्र था जिसका नाम था ‘गया’। गया एक निम्नतर जाति का बालक था। हालांकि उसकी जाति कभी भी उन लोगों की मित्रता में बाधा नहीं बनी थी। एक बार गिल्ली डंडा खेलते समय लेखक ने गया को उसकी बारी नहीं दी थी और गया गुस्सा होकर अपने घर चला गया था। फिर कुछ दिन बाद लेखक के पिता जी का तबादला दूसरे शहर में हो गया। अब लेखक एक वयस्क और एक सरकारी अधिकारी के रूप में वापस आता है। गाँव का दौरा करते समय उसे पुराने दिनों की सारी बातें याद आती हैं, फिर वे गया को ढूंढ निकालते हैं और उसे उसकी बारी वापस देने के लिए खेल का आयोजन करते हैं। आज हमारे सबसे पुराने और पारंपरिक खेलों में से एक "गिल्ली-डंडा" को जीवित रखने के लिए कई कदम भी उठाए जा रहे हैं। यूनेस्को की सलाहकार समिति और इंटरनेशनल काउंसिल ऑफ ट्रेडिशनल स्पोर्ट्स एंड गेम्स (UNESCO Advisory Committee and the International Council of Traditional Sports and Games) ऐसे सभी पारंपरिक खेलों को पुनर्जीवित और बढ़ावा देने के इच्छुक है, जो दुनिया में लगभग विलुप्त हो रहे हैं। इसकी मदद से ये खेल पुनः जीवित हो रहे हैं।

संदर्भ :-
https://en.wikipedia.org/wiki/Gillidanda
https://www.khulasaa.in/sahitya/kahani/premchand-hindi-stories/gulli-danda-hindi-story-by-premchand/
https://www.sportskeeda.com/sports/gilli-danda-a-dying-indian-traditional-game
चित्र सन्दर्भ:
मुख्य चित्र में गिल्ली डंडा खेलते हुए बच्चों को दिखाया गया है। (Prarang)
दूसरे चिंत्र में गिल्ली डंडा दिखाए गए हैं। (Prarang)
तीसरे चित्र में दो युवक अपनी अपनी बारी पर गिल्ली के ऊपर प्रहार करते हुए। (Prarang)
अंतिम चित्र गिल्ली डंडा का आनद लेते बच्चों को संदर्भित करता है। (Publicdomainpictures)

RECENT POST

  • अपने युग से कहीं आगे थी विंध्य नवपाषाण संस्कृति
    सभ्यताः 10000 ईसापूर्व से 2000 ईसापूर्व

     21-11-2024 09:28 AM


  • चोपता में देखने को मिलती है प्राकृतिक सुंदरता एवं आध्यात्मिकता का अनोखा समावेश
    पर्वत, चोटी व पठार

     20-11-2024 09:29 AM


  • आइए जानें, क़ुतुब मीनार में पाए जाने वाले विभिन्न भाषाओं के शिलालेखों के बारे में
    वास्तुकला 1 वाह्य भवन

     19-11-2024 09:22 AM


  • जानें, बेतवा और यमुना नदियों के संगम पर स्थित, हमीरपुर शहर के बारे में
    आधुनिक राज्य: 1947 से अब तक

     18-11-2024 09:31 AM


  • आइए, अंतर्राष्ट्रीय छात्र दिवस के मौके पर दौरा करें, हार्वर्ड विश्वविद्यालय का
    वास्तुकला 1 वाह्य भवन

     17-11-2024 09:30 AM


  • जानिए, कौन से जानवर, अपने बच्चों के लिए, बनते हैं बेहतरीन शिक्षक
    व्यवहारिक

     16-11-2024 09:17 AM


  • आइए जानें, उदासियों के ज़रिए, कैसे फैलाया, गुरु नानक ने प्रेम, करुणा और सच्चाई का संदेश
    विचार I - धर्म (मिथक / अनुष्ठान)

     15-11-2024 09:27 AM


  • जानें कैसे, शहरी व ग्रामीण स्वास्थ्य सेवाओं के बीच अंतर को पाटने का प्रयास चल रहा है
    विचार 2 दर्शनशास्त्र, गणित व दवा

     14-11-2024 09:20 AM


  • जानिए क्यों, मेरठ में गन्ने से निकला बगास, पर्यावरण और अर्थव्यवस्था के लिए है अहम
    नगरीकरण- शहर व शक्ति

     13-11-2024 09:22 AM


  • हमारे सौर मंडल में, एक बौने ग्रह के रूप में, प्लूटो का क्या है महत्त्व ?
    शुरुआतः 4 अरब ईसापूर्व से 0.2 करोड ईसापूर्व तक

     12-11-2024 09:29 AM






  • © - 2017 All content on this website, such as text, graphics, logos, button icons, software, images and its selection, arrangement, presentation & overall design, is the property of Indoeuropeans India Pvt. Ltd. and protected by international copyright laws.

    login_user_id