मेरठ में हज़रत शाहपीर का मकबरा उत्तर भारत के पुराने धार्मिक स्थलों में से एक है। यह शाहपीर साहब की दरगाह के रूप में भी प्रसिद्ध है। स्थानीय सूफी संत हज़रत शाहपीर की स्मृति में इस मकबरे का निर्माण वर्ष 1628 में मुगल महारानी और सम्राट जहाँगीर की पत्नी, नूरजहाँ द्वारा करवाया गया था। भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण के अनुसार, मुगल समाधि को राष्ट्रीय धरोहर स्मारक के रूप में सूचीबद्ध किया गया है। मकबरे को शहर में आश्चर्यजनक स्थापत्य कलाकृतियों में से एक माना जाता है, जिसे लाल पत्थरों से बनाया गया है; जो एक उत्कृष्ट अनुभूति देता है।
अपनी प्रभावशाली वास्तुकला के एक भाग के रूप में, मकबरा जटिल नक्काशी का दावा करता है। मेरठ में इस लोकप्रिय विरासत स्थल की वास्तुकला का एक और खूबसूरत पहलू यह भी है कि इसे इस तरह बनाया गया है कि इसमें मुख्य गुम्बद नहीं होने के बावजूद बारिश का पानी नीचे कब्र पर नहीं गिरता है। एक पौराणिक कथा के अनुसार, अपने पति जहाँगीर की अत्यधिक शराब पीने की आदत से परेशान होकर, नूरजहाँ ने अपने पति को नशे की लत से बाहर निकालने में मदद करने के लिए मेरठ के एक सूफी संत शाहपीर रहमतुल्ला औलिया से संपर्क किया। जब रानी ने अपने पति को कुछ दिनों में शराब से इनकार करते हुए देखा, तो वह संत की स्वास्थ्यप्रद शक्तियों से अत्यधिक आश्चर्यचकित हुई।
जिसके बाद नूरजहाँ ने वर्ष 1633 के आसपास शहर में एक मकबरे का निर्माण करने का आदेश दिया। वहीं ऐसा भी माना जाता है कि मकबरे का निर्माण कार्य हजरत शाहपीर के निधन से एक दिन पहले शुरू हुआ था। बाद मे बादशाह जहाँगीर और नूरजहाँ को सत्ता संघर्ष के लिए कश्मीर जाना पड़ा था, जहाँ जाहांगीर ने अपनी शेष साँसे ली और यह मकबरा अधूरा रह गया था। शाहपीर का मकबरा मुगल कला की पराकाष्ठा को प्रदर्शित करता है। इस मकबरे के छज्जे, जालियाँ व इसके अपूर्ण गुम्बद के अंदर वाले भाग पर की गयी कलाकृति इस मकबरे के सौन्दर्य को प्रदर्शित करती है। इस मकबरे को बनाने के लिये लाये गये नक्काशीदार पत्थर आज भी यहाँ पर जहाँ तहाँ फैले हुये हैं। मकबरे के सामने एक अन्य छोटा मकबरा बनाया गया है, जो कि शाहपीर के भाई का है जिनकी पीढियाँ आज भी यहाँ रहती हैं। शाहपीर का यह मकबरा लाल बलुए पत्थर से निर्मित है। इस मकबरे के चारो ओर कई और छोटी-छोटी कब्रों आदि को देखा जा सकता है। इस मकबरे की स्थिति वर्तमान समय में बहुत सही नहीं है, जिसका कारण यह है कि इस मकबरे में बनाए गए सुलेख कला के प्रतिमान ख़त्म होने के ओर अग्रसर हैं।
संदर्भ :-
https://timesofindia.indiatimes.com/city/meerut/Four-centuries-old-tomb-faces-public-neglect/articleshow/40524870.cms
https://bit.ly/35qiqQa
https://www.tourmyindia.com/states/uttarpradesh/mughal-mausoleum-meerut.html
https://www.indianholiday.com/tourist-attraction/meerut/monuments-in-meerut/shahpir.html
चित्र सन्दर्भ:
मुख्य चित्र में शाहपीर मकबरे की मुख्य ईमारत दिखाई गयी है। (Prarang)
दूसरे चित्र में शाहपीर के मकबरे के अंदर की गयी नक्काशी और अधूरा पड़ा गुम्बद दिखाया गया है, जिसके कारण ये मकबरा सदैव खुले आसमान के नीचे होता है।(Prarang)
अंतिम चित्र मकबरे के प्रवेश स्थल पर लगाया गया पुरातत्व विभाग का साइन बोर्ड। (Prarang)
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