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रक्षाबंधन मात्र त्यौहार नहीं है, यह भाई-बहन के अमर प्रेम का प्रतीक है, भावनात्मक और अविनाशी स्नेह का बंधन है, जो भाई और बहन को एक सूत्र में पिरोता है। रक्षाबंधन राखी और उपहारों तक ही सीमित नहीं है, यह रिवाज इस पवित्र त्यौहार के अनेक आयामों में जुड़ा है। यह त्यौहार पूरे भारत में बड़े उत्साह और जोश के साथ मनाया जाता है। रक्षाबंधन श्रावण मास की पूर्णिमा को मनाया जाता है।
रक्षाबंधन: पौराणिक संदर्भ
रक्षाबंधन से बहुत से उपाख्यान जुड़े हैं। भविष्य पुराण के अनुसार भगवान इंद्र और राक्षसों के बीच भयानक युद्ध हुआ। इंद्र ने बृहस्पति देव से राक्षसों को गायब करने के विषय में सलाह मांगी। बृहस्पति देव ने इंद्र को सलाह दी कि मंत्रों से पवित्र किया धागा, उनकी कलाई पर श्रावण मास की पूर्णिमा को बांधे। राजा इंद्र की पत्नी शचि, जिन्हें इंद्राणी भी कहा जाता है, ने देव बृहस्पति की कलाई पर धागा बांधा । पवित्र धागे, जिसे रक्षा सूत्र कहा जाता है, ने देवताओं को युद्ध में विजय दिलाई।
एक अन्य कथा में भगवान विष्णु के वामन अवतार की चर्चा है, जिसमें राजा बलि ने उन्हें तीन चरण बराबर भूमि देने के वचन के पूरे होने पर प्रसन्न होकर उन्हें वरदान दिया। राक्षसों का राजा बलि भगवान विष्णु का बड़ा भक्त था, उसने भगवान से प्रार्थना की कि वे दिन रात उसके सामने रहे। इस पर सहमत होकर भगवान विष्णु स्वर्ग में अपना निवास छोड़कर राजा बलि के द्वार पालक हो गए। देवी लक्ष्मी विष्णु को वापस स्वर्ग लाना चाहती थी। नारद की सलाह पर एक ब्राह्मणी के वेश में देवी लक्ष्मी राजा बलि के पास पति के लौटने तक शरण मांगने गई। श्रावण पूर्णिमा के दिन लक्ष्मी जी ने पवित्र धागा राजा बलि की कलाई पर बांध कर भगवान विष्णु को वापस स्वर्ग भेजने की प्रार्थना की। इसीलिए इस पर्व को बलेवा भी कहते हैं।
रक्षाबंधन का रिवाज भगवान यम( मृत्यु के देवता) और उनकी बहन यमुना के स्नेह का प्रतीक है। यमुना ने यम को राखी बांधकर अमर होने का आशीर्वाद दिया । यम इस अवसर से इतना प्रभावित हुए कि उन्होंने घोषणा की कि जो भी भाई अपनी बहन से राखी बंधवा कर उसकी सुरक्षा का वचन देगा, अमर हो जाएगा।
महाभारत में भी रक्षाबंधन का उल्लेख है। शिशुपाल की हत्या में भगवान कृष्ण की उंगली घायल हो गई। द्रौपदी ने अपनी साड़ी का टुकड़ा फाड़कर भगवान कृष्ण की उंगली पर बांधा था। चौपड़ के खेल में जब द्रौपदी का चीर हरण हो रहा था, तब भगवान कृष्ण ने एक कभी न खत्म होने वाला वस्त्र देकर द्रौपदी की इज्जत बचाई। यह घटना श्रावण मास की पूर्णिमा को घटित हुई थी।
ऐसा कहा जाता है कि जब अलेक्जेंडर द ग्रेट(Alexander the Great) ने 326 BC में भारत पर आक्रमण किया, रुखसाना (उनकी पत्नी) ने एक धागा पोरस(Poras) को भेजकर अपने पति को युद्ध में घायल ना करने का वचन लिया। परंपरा के अनुसार राजा पोरस ने राखी का पूरा सम्मान किया। लड़ाई के मैदान में जब पोरस एलेग्जेंडर पर अंतिम वार करने जा रहे थे, उन्होंने अपने आप को रोक लिया। इतिहासकारों के अनुसार, मुगल शासक हुमायूं ने राखी के प्रति अपना सम्मान प्रकट करते हुए शेरशाह सूरी के आक्रमण की परवाह न करते हुए, चित्तौड़ की विधवा रानी कर्णावती की मदद करने के लिए पहुंचे, जिसने हुमायूं को अपनी रक्षा के लिए राखी भेजी थी। इस प्रकार रक्षाबंधन का यह त्यौहार धर्म, जाति और पंथ की सीमाओं से परे बड़े सरोकारों का साक्षी है।
रक्षाबंधन का महत्व
भाई बहन के स्नेहिल संबंध से अलग रक्षाबंधन का महत्व कई और कारणों से भी है। इसके गहरे आध्यात्मिक संदर्भ भी हैं। हर प्राणी एक अलौकिक ऊर्जा से निर्मित है। इस दिन भगवान गणेश और देवी सरस्वती की आवृत्ति बड़ी संख्या में धरती पर पहुंचती है और दोनों भाई बहन को इस पर्व-रिवाज से भरपूर लाभ मिलते हैं। दोनों में आध्यात्मिक ऊर्जा अपने चरम पर होती हैं। जैसे कि भाई राखी बंधवाने के बाद बहन की रक्षा का वचन देता है, उधर बहन ईश्वर से भाई की लंबी उम्र की प्रार्थना करती है। रीति रिवाज के अनुसार माथे पर तिलक लगाने का तात्पर्य है आत्म चेतना को जगाना। यह लालच, इच्छा, क्रोध, लगाव, अहंकार, दर्द आदि पर विजय का भी प्रतीक है।
हम सब किसी ना किसी ऋण बंधन से बंधे होते हैं। जब हम कलाई पर राखी बांधते हैं, तो उसका तात्पर्य यह समझा जाता है कि दिव्य ऊर्जा एक से दूसरे में चली जाती है। हालांकि भाई-बहन रिश्तो की डोर में बंधे रहते हैं, लेकिन इस ढंग से उनके बीच लेनदेन का खाता समाप्त हो जाता है, जिसका मतलब यह भी लगाया जाता है कि हमेशा के लिए पुराने कर्ज चुकता हो गए।
रक्षाबंधन के विभिन्न रूप
यह त्यौहार विभिन्न नामों और रूपों में भारत के राज्यों में मनाया जाता है।
लुंबा राखी
मारवाड़ी और राजस्थानी समाज में पारंपरिक रूप से मनाए जाने वाले इस रिवाज में बहने अपनी भाभी की चूड़ी पर राखी बांधती हैं। मारवाड़ी में चूड़ी को लुंबा कहते हैं। लुंबा राखी का महत्व इस अर्थ में है कि भाई की पत्नी उसकी अर्धांगिनी होती है, इसलिए विवाहित भाई का कोई भी संस्कार उसकी पत्नी को शामिल किए बिना पूरा नहीं होता। यह भाई के सुखी वैवाहिक जीवन की कामना को भी दर्शाता है।
गमहा पूर्णिमा
उड़ीसा में रक्षाबंधन को गमहा पूर्णिमा के रूप में मनाया जाता है। इस दिन घरेलू गाय और बैलों को सजा कर उनकी पूजा की जाती है । घर में बने केक जिसे पीठा कहते हैं और मिठाइयों को परिवार, रिश्तेदार और मित्रों में बांटा जाता है।
श्रावणी या जन्धयाम पूर्णिमा
संस्कृत में रक्षाबंधन के धागे को जनध्याम कहते हैं। उत्तराखंड के कुमाऊं क्षेत्र के लोग रक्षाबंधन और जनोपुन्यु श्रावणी पूर्णिमा को मनाते हैं। इस दिन लोग अपना जनेऊ बदलते हैं।
नराली पूर्णिमा
महाराष्ट्र, गुजरात और गोवा के तटीय क्षेत्रों में यह त्यौहार नराली पूर्णिमा के रूप में मनाया जाता है। इस दिन लोग समुद्र के देवता भगवान वरुण को सम्मान देने के रूप में समुद्र को नारियल अर्पित करते हैं। इस दिन मछुआरे मछली पकड़ना शुरू करते हैं।
कजरी पूर्णिमा
भारत के मध्य क्षेत्र के मध्य प्रदेश, छत्तीसगढ़, झारखंड और बिहार में रक्षा बंधन कजरी पूर्णिमा के रूप में मनाया जाता है। यह किसानों का एक महत्वपूर्ण त्यौहार होता है क्योंकि इस दिन से खेती का नया मौसम शुरू होता है। इस पवित्र दिन, इस कामना के साथ कि फसल की अच्छी उपज हो, जौ और गेहूं की फसल बोई जाती है।
पवित्रोपना
गुजरात में यह पर्व पवित्रोपना नाम से मनाते हैं। ज्यादातर लोग नजदीक के मंदिर में शिवलिंग पर जल चढ़ाते हैं, शिव पूजन करके उनका आशीर्वाद लेते हैं। ऐसी मान्यता है कि इस दिन जो भी प्रार्थना करता है, वह पाप मुक्त हो जाता है।
झूलन पूर्णिमा और पोंगल
बंगाल में रक्षाबंधन को झूलन पूर्णिमा भी कहा जाता है। इस दिन रक्षाबंधन के अलावा लोग भगवान कृष्ण और राधा रानी की पूजा करते हैं। वहीं तमिलनाडु में इसे पोंगल कहते हैं।
इस तरह रक्षाबंधन का दिन भाईचारे, समृद्धि, प्रसन्नता और समानता का त्यौहार होता है।
चित्र सन्दर्भ:
मुख्य चित्र में रक्षाबंधन का सांकेतिक चित्रण है।(Wikimedia)
दूसरे चित्र में इंद्र को रक्षाबंधन के सम्बन्ध में दिखाया गया है। (Flickr)
अंतिम चित्र में रक्षाबंधन की पौराणिक कथाओं और सामाजिक मान्यताओं को दिखाया गया है। (Prarang)