गवाह है, श्रम और शहरी जीवन निरंतर बदलाव से गुजरते रहे हैं। औद्योगिक युग में लोग घनी आबादी वाले शहरों में फैक्ट्रियों में काम करने के लिए रहते थे। औद्योगिक क्रांति ने रोजगार के नए दरवाजे खोले। नतीजतन मशीनों की खोज हुई, जिससे उत्पादन की गति बहुत बढ़ गई। तब से धीरे-धीरे करके मशीनों ने कई ऐसे कारोबार खत्म कर दिए, जो मनुष्य द्वारा हाथ से किए जाते थे। लेकिन यह मशीनीकरण ज्यादा दिन तक वैकल्पिक नहीं रहा, सर्वव्यापी महामारी ने इसे वक्त की जरूरत बना दिया। खास तौर से कोविड-19 के बाद की दुनिया में मशीनीकरण के लिए एक आदर्श स्थिति बन गई। मशीनीकरण और शहरीकरण के आपसी संबंध जगजाहिर हैं। आज के कामकाजी वातावरण में स्वचालन आला दर्जे की जरूरत बन गया है, इसका कामकाजी लोगों पर प्रभाव पड़ना स्वाभाविक है। जमाने की चाल से मेरठ भी अछूता नहीं है। यहां भी स्वचालन के प्रति सहमति की झलकियां दिखनी शुरू हो गई हैं।
क्या है डिजिटल क्रांति?
शहरी कामकाज में डिजिटाइजेशन(Digitization), स्वचालन के बढ़ते प्रयोग और इससे हमारी जीवन और कार्यशैली पर पड़ते जबरदस्त प्रभाव को एक नाम दिया जा सकता है- डिजिटल रिवोल्यूशन (Digital Revolution)। वैसे देखा जाए तो इसी के साथ सामाजिक, राजनीतिक और शहरी जोखिम, वर्तमान में प्रचलित स्वचालन और शहरीकरण में टकराव के कारण उत्पन्न होता है और उससे कामकाज की दुनिया, निगम, अर्थव्यवस्था, सामाजिक वर्ग और शहरी रहन-सहन सब में भारी बदलाव आते हैं। ब्रिस्टल(Bristol) का ही उदाहरण लें, यूके (UK) का प्रमुख शहर, इस बात की कल्पना की जा सकती है कि संभावित विकास, दोनों कारक(शहरीकरण और स्वचालन) आपस में मिलकर भविष्य की संभावनाओं का खाका तैयार करते हैं। इन नए परिदृश्यों के जरिए शुरुआत में एक सबसे बुरा और एक सबसे अच्छा उदाहरण रखकर उनमें छिपी विभिन्न संभावनाओं से परिचय होता है। सबसे बुरे परिदृश्य को सुधारने के लिए बनाई गई रणनीति सामाजिक रूप से साफ सुथरी और टिकाऊ शहरी जीवन की रूपरेखा तय करती है।
स्वचालन के बढ़ते प्रभाव
स्वचालित यंत्र के प्रयोग से मजदूरी की दर घट जाती है और उत्पादकता बढ़ जाती है। नए तरह के कामों का सृजन होता है। तकनीक में विकास जैसे की डिजिटाइजेशन, बनावटी तरीके से विकसित की गई बौद्धिक क्षमता(Artificial intelligence (AI)), 3D प्रिंटिंग और स्वचालन प्रमुख रूप से प्रचलित हैं। मशीन, कंप्यूटर और रोबोट सिर्फ संज्ञात्मक काम कर सकते हैं। मशीनें गलतियां कम करती हैं, अच्छा काम करती हैं और तेजी से करती हैं। यह सच है कि स्वचालन से पारंपरिक उद्योगों का विघटन होता है और इन कामों में जमाने से लगे लोगों के जीवन का भी। स्वचालन के क्षेत्र में संभावित नई क्रांति से इस क्षेत्र में नए पद सृजित किए जाएंगे ताकि उत्पादन में नई गुणवत्ता आए।
क्या शहरीकरण का परिणाम de-urbanization होगा?
दुनिया भर में शहरीकरण की प्रक्रिया जारी है। विकसित और विकासशील देशों में मेगासिटीज (Mega cities) का विकास हो रहा है। लोग शहरों की ओर बेहतर सुविधाओं, सांस्कृतिक-सामाजिक वातावरण की उम्मीद से आकर्षित होते हैं। गांव से शहरों की ओर लोगों के पलायन का एक बड़ा आर्थिक कारण है क्योंकि शहर आर्थिक शक्ति के अग्रदूत(Angels of Economic Power) माने जाते हैं किन्तु नौकरियों की कमी और बढ़ती आबादी के रहने के लिए उपयुक्त मकानों की समस्या शहरों के प्रति लोगों का मोहभंग भी कर रहे हैं।
क्या है भावी ऑन डिमांड इकॉनमी(On-Demand Economy)?
पारंपरिक उद्योग खपत आधारित होते हैं। ऑन डिमांड इकोनामी एक लचीली प्रक्रिया है, जिसमें कंपनी (अक्सर कोई स्टार्टअप) उपभोक्ता की मांग के अनुसार तय समय सीमा में नपी-तुली आपूर्ति करती है।
स्वचालन से बढ़े गैर बराबरी और लोकलुभावनवाद
स्वचालन ने अमीर गरीब की खाई को और गहरा कर दिया है। ब्रिस्टल में औसत वेतन यूके से ज्यादा है। अगर सामाजिक दूरियां बढ़ी, इससे राजनीतिक अविश्वास पैदा होगा और राजनीति से जनता का मोहभंग हो जाएगा।
स्वचालन का कोई उपयुक्त जवाब है?
स्वचालन का अनियंत्रित प्रयोग जारी रहा तो संभावित सामाजिक और राजनीतिक खतरे बढ़ते रहेंगे। स्वचालन से आर्थिक असमानता और बेरोजगारी हो सकती है, लेकिन अगर व्यवस्था राजनीतिक रूप से हो तो यह धन और उत्पादकता में हिस्सेदार हो सकती है, जिससे बहुत से लाभांश (Incentives) दिए जा सकते हैं।
कोविड-19 ने उद्यमों के डिजिटल लेनदेन में स्वचालन को बढ़ाया
जैसे-जैसे कोविड-19 महामारी ने अपने पांव पसारे, डिजिटल लेनदेन का तूफान उठ खड़ा हुआ। तकनीकी प्रमुखों को मजबूरन रोबोटिक प्रोसेस ऑटोमेशन (Robotic Process Automation (RPA)) और हाइपर स्वचालन का सहारा लेना पड़ा। इन दोनों ने प्रभावी ढंग से स्थिति को संभाला। अधिकारी पूरे लेनदेन को डिजिटल करने का खतरा मोल नहीं लेना चाहते थे। सारी तकनिकी प्रक्रिया को बिना भूल-चूक करना और दूसरी तरफ डिजिटल लेनदेन के भयंकर रूप से बढ़ते दबाव ने स्थिति को और मुश्किल बनाया। व्यापार सुचारू रूप से चले और फिर भी रहे, यही सब की मंशा थी। आखिर में अधिकारियों को आरपीए और हाइपर स्वचालन को स्वीकार करना ही पड़ा।
क्या फर्क है RPA और हाइपर स्वचालन में?
रोबोटिक प्रोसेस ऑटोमेशन मानव के कार्य को ठीक मानव की तरह ही करने की अनुमति देती है। रोबोटिक प्रोसेस ऑटोमेशन में एक रोबोट का मतलब यह नहीं है कि शाब्दिक रूप से रोबोट मानव की जगह काम करने जा रहे हैं बल्कि इसका मतलब है- एक कंप्यूटर प्रोग्राम जो मानव कार्यों की नकल करता है।
हाइपर स्वचालन में कृत्रिम बौद्धिकता ( आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस) के सहयोग से मशीनों के लिए यह संभव हो पाता है कि वे मानवीय कार्य जैसे डिजाइन पहचाना, दृश्य बोध, आवाज की पहचान, निर्णय लेने जैसे कार्य कर सके। हाइपर स्वचालन में अधिक विकसित उपकरण और आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस की मदद से नई क्षमताओं और अंतर्दृष्टि का समावेश होता है और ज्यादा प्रभावी परिणाम हासिल होते हैं।
रोबोट कर रहे दफ्तर को जीवाणु मुक्त
मेरठ कैंट ऑफिस में रोबोट का इस्तेमाल फाइलों के रख रखाव, उन्हें लोगों की सीट तक पहुंचाने और जीवाणु मुक्त करने में किया जा रहा है। यह कदम कर्मचारियों के डर कि ऑफिस जाएंगे तो कोविड-19 के संक्रमण का शिकार हो जाएंगे को दूर करने के लिए उठाया गया है। रोबोट के पास एक अल्ट्रावॉयलेट बॉक्स होता है, जिसमें फाइलें रख दी जाती हैं, जिससे दूसरी मेज तक पहुंचने तक वे संक्रमण मुक्त भी हो जाती हैं। रोबोट को बनाने की कीमत ₹1000 से भी कम है। यह कदम 2 महीने पहले उठाया गया, कैंटोनमेंट बोर्ड ने अपने कर्मचारियों को आवश्यक सेवाएं देना शुरू किया।
चित्र सन्दर्भ:
मुख्य चित्र में शहरीकरण का एक कलात्मक चित्र दिखाया गया है।(Prarang)
दूसरा चित्र में मेरठ के गढ़ रोड मार्ग को दिखाया गया है। (Prarang)
तीसरे चित्र में स्वचालन को कलात्मकता के साथ प्रस्तुत किया गया है। (Freepik)
अंतिम चित्र में आधुनिकीकरण को दिखाया गया है।(Prarang)
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