1854 में जब गंगा नहर पहली बार खुली तो यह विश्व का सबसे लंबा और मनुष्य द्वारा निर्मित सबसे महंगा जलमार्ग था। इसका निर्माण उत्तर भारत में गंगा और यमुना नदियों के मध्य सिंचाई के लिए किया गया था। हरिद्वार से 898 मील दक्षिण की ओर फैली हुई है। हरिद्वार हिंदुओं के प्रमुख पवित्र शहरों में से एक हैं। यह जानना बहुत रोचक है कि क्या है गंगा नहर का इतिहास जिससे मेरठ लाभान्वित है और जिसकी इंजीनियरिंग के चमत्कार के रूप में विशेष पहचान है। गंगा नहर की सालाना सफाई के दौरान पानी का वितरण प्रभावित होता है। सोचने का मुद्दा यह है कि आखिर स्कूटी करने का उपाय क्या है।
गंगा नहर का इतिहास गंगा नहर प्रणाली है जो भारत में गंगा और यमुना नदियों के बीच के दोआब क्षेत्र की सिंचाई करती है। मूल रूप से यह सिंचाई की नहर है, हालांकि इसके कुछ हिस्से नौ परिवहन में भी इस्तेमाल होते हैं, खासतौर से इसके निर्माण सामग्री के लिए। इस प्रणाली में अलग नौपरिवहन चैनल बंद दरवाजों के साथ उपलब्ध कराए जाते हैं ताकि नौकाये रास्ता ना भटके। गंगा नहर का निर्माण 1842 से 1854 के मध्य एक मूल हेड डिस्चार्ज 6000 फीट की गति से, ऊपरी गंगा नहर उस दिन से बराबर बड़ी होती गई और आज उसका हेड डिस्चार्ज 10,500 फिट है। गंगा नहर प्रणाली में मुख्य नहर 272 मील लंबी है और लगभग 4000 मील लंबी वितरण नालियां है। यह प्रणाली उत्तर प्रदेश और उत्तराखंड के 10 जिलों में 9000 स्क्वायर किलोमीटर उपजाऊ कृषि भूमि की सिंचाई करती हैं। गंगा नहर इन राज्यों में कृषि संबंधी समृद्धि का मुख्य स्रोत है और इन राज्यों के सिंचाई विभाग उपभोक्ताओं से उचित फीस लेकर का रखरखाव करते हैं। कुछ छोटे जल विद्युत प्लांट नहर पर होते हैं जो लगभग 33 मेगावाट विद्युत पैदा करते हैं( अगर अपनी पूरी क्षमता का प्रयोग करते हैं)। यह प्लांट नीर गजनी, चित्तौड़ा,सलावा, भोला, जानी, जोली और डासना में है। गंगा नहर की बनावट प्रशासनिक तौर पर गंगा नहर अपनी कुछ शाखाओं के साथ हरिद्वार से अलीगढ़ तक अप्पर गंगा नहर कहलाती है, और अलीगढ़ से नीचे अपनी शाखाओं के साथ निचली गंगा नहर कहलाती है। इतिहास एक सिंचाई प्रणाली की जरूरत 1837-38 मैं आगरा के विनाश कार्यकाल के बाद महसूस की गई जिसमें लगभग 800000 लोग मारे गए और लगभग 10 मिलियन रुपए राहत कार्यो पर खर्च हुए। नतीजतन तत्कालीन ब्रिटिश ईस्ट इंडिया कंपनी को भारी नुकसान उठाना पड़ा। नहर की खुदाई का काम 1842 में शुरू हुआ । जब नहर का औपचारिक उद्घाटन 8 अप्रैल,1854 को हुआ, इसका मुख्य चैनल 348 मील ( 560 किलोमीटर) लंबा, इसकी शाखाएं 306 मील( 492 किलोमीटर) लंबी और विभिन्न सहायक नदियां 3000 मील( 4800 किलोमीटर) लंबी थी। मई 855 में सिंचाई शुरू होने पर 5000 गांव की 767000 एकड़ (3100 स्क्वायर किलोमीटर) जमीन को स्विच आ गया। 1877 में निचले दोआब का आमूलचूल परिवर्तन हुआ। उन्नीस सौ के आसपास शारदा नहर की कुल लंबाई 3700 मील( 6000 किलोमीटर) जिसमें से 500 मील( 800 किलोमीटर) नौगम्य (navigable ) थे। नहर की इमारत में इत्तेफाक से भारत के पहले इंजीनियरिंग कॉलेज- कॉलेज ऑफ़ सिविल इंजीनियरिंग रुड़की की स्थापना हुई जिसे आज इंडियन इंस्टीट्यूट ऑफ टेक्नोलॉजी, रुड़की के नाम से जाना जाता है। इंजीनियरिंग के चमत्कार: 160 साल पुराने गंगा नहर के सुपर पैसेजेस 1854 में जब गंगा नहर की शुरुआत हुई , यह सबसे बड़ी और महंगी मानव निर्मित नहर थी। उत्तर भारत में गंगा और यमुना नदियों के बीच सिंचाई की सुविधा के लिए बनाई गई यह नहर 898 मील से ज्यादा हरिद्वार के दक्षिण में स्थित थी। ऊपर पहुंच कर, दूसरी नदियों और झरनों से जुड़ी। मॉनसून के समय, यह पानी के रास्ते फुल कर अपने आकार और बहाव की तीव्रता से खतरनाक होने लगे। इसीलिए जैसे कि एंथोनी आसियावत्ती (Anthony Acciavatti) ने अपनी किताब g गैनगेस वाटर मशीन (Ganges Water Machine) मे लिखा है, पानी के इन टुकड़ों पर, ऐसे रास्तों का निर्माण हुआ जो पानी के किस्से को दूसरे के ऊपर लगाता गया। इंजीनियरिंग के इन चमत्कारों के मुकाबले दुनिया में दूसरा उदाहरण नहीं मिलता। अप्पर गंगा नहर की सफाई शुरू 21 अक्टूबर तक कोई पानी की आपूर्ति नहीं वर्तमान में नोएडा 240 मिलियन लीटर पानी प्रतिदिन अपने बाशिंदों को उपलब्ध कराता है। अपर गंगा नहर के ऊपर बन रहे तालाब में लगातार विलंब होता चला जा रहा है। इसका लक्ष्य 2017 तक गाजियाबाद में तैयार हो जाने का था। अपर गंगा नहर की सफाई जो हरिद्वार से शुरू होकर मुजफ्फरनगर गाजियाबाद और बुलंदशहर पहुंचती है, एक सालाना कार्यक्रम है। यहां के निवासी इस दौरान पानी की सप्लाई के लिए बहुत परेशानी उठाते हैं। प्रशासन आश्वासन तो देते हैं, कार्यवाही का कुछ निश्चित नहीं होता। सफाई के दौरान किसानों को सलाह दी जाती है कि निजी साधनों जैसे टूबवेल और पंपिंग सेट का उपयोग खेतों को सिंचने के लिए करें। प्रशासन के सफाई अभियान के अतिरिक्त बहुत से सामाजिक संगठन और शैक्षिक संस्थान नदी तल की सफाई में सक्रिय रूप से भाग लेते हैं।© - 2017 All content on this website, such as text, graphics, logos, button icons, software, images and its selection, arrangement, presentation & overall design, is the property of Indoeuropeans India Pvt. Ltd. and protected by international copyright laws.