भारतीय लक्ष्मी प्रतिमा इटली में

मेरठ

 22-07-2020 08:30 AM
द्रिश्य 3 कला व सौन्दर्य

प्राचीन भारत अपनी बहुमूल्य विरासत और कला के लिए पूरे विश्व भर में जाना जाता है। यहाँ पर अनेकों ही मूर्तियों आदि का निर्माण बड़े पैमाने से किया गया था जिसे की वेदेशों आदि में भी ले जाया गया था। वर्तमान समय में हम अक्सर दुनिया भर के विभिन्न संग्रहालयों में भारतीय मूर्तियों और प्रतिमाओं के विषय में जानकारी प्राप्त करते हैं, ये मूर्तियाँ मुख्य रूप से उपनिवेशिक काल के दौरान भारत से विदेशों में ले जाई गयी थी। विदेशों में अन्य कई और मूर्तियाँ पायी गयी हैं जो की उपनिवेशिक काल में नहीं बल्कि हजारों साल पहले ही यहाँ से ले जाई गयी थी। पोम्पी (Pompeii) एक अत्यंत ही महत्वपूर्ण पुरातात्विक स्थल है जो की वर्तमान समय में इटली (Italy) देश का हिस्सा है तथा कभी रोम साम्राज्य (Roman Empire) का हिस्सा हुआ करता था।

पोम्पी शहर करीब 79 ईस्वी में हुए एक अत्यंत ही भयानक ज्वालामुखी विस्फोट जो की यहीं के माउंट वेसुवियस (Mount Vesuvius) पर हुयी थी के कारण ज्वालामुखी के राख में दब गया था। इस पुरास्थल के उत्खनन उपरान्त जो तश्वीर निकल कर सामने आई थी वो विचलित करने वाली थी। यहाँ पर जानवरों और मनुष्यों के शरीर जो की सीमेंटीकृत (Cementation) हो चुके थे प्राप्त हुए। यहाँ से प्राप्त हुए सामग्रियों में एक ऐसी पुरासंपदा भी थी जिसने सबका ध्यान अपनी और आकर्षित किया। यह एक भारतीय प्रतिमा थी जिसे की विभिन्न पुरातत्व विदों ने लक्ष्मी और यक्षी की संज्ञा दी।

यह लक्ष्मी/यक्षी प्रतिमा हाथीदांत पर उकेरी गयी है। यह प्रतिमा अत्यंत ही खूबसूरती के साथ बनायी गयी है जिसमे आभूषणों, नायिकाओं का अंकन बड़ी ही बेहतरी से किया गया है। यह प्रतिमा सन 1938 में एमेडियो मैयुरी (Amedeo Maiuri) को मिला था। इस प्रतिमा को प्रथम शताब्दी का माना जाता है। अब सबसे महत्वपूर्ण प्रश्न यह है की यह प्रतिमा इटली पहुची कैसे तो इसका जवाब है व्यापार। प्राचीन भारत विश्व के सबसे महत्वपूर्ण व्यापार केन्द्रों में से एक था यहाँ पर अत्यंत ही बड़े पैमाने पर व्यापार होता था। जैसा की विदित हो की पोम्पी रोम साम्राज्य का हिस्सा था तो रोम और भारत के मध्य में अत्यंत ही घनिष्ट व्यापारिक सम्बन्ध थे।

संभवतः व्यापार ही एक कारण है जिसके जरिये यह प्रतिमा इटली पहुंची। इस प्रतिमा को शुरूआती दौर में मात्रु देवी के रूप में देखा जाता था जिसे की बाद में यक्षी और लक्ष्मी के रूप में देखा जाना शुरू हुआ जिसे की उर्वरकता का प्रतीक माना जाता है। इस प्रतिमा पर मात्र आभूषणों का ही अंकन किया गया है तथा यह प्रतिमा पूर्ण रूप से नग्न है जिसमे जननांग और वक्ष देखे जा सकते हैं, यह एक कारण है की इस प्रतिमा को उर्वरकता से जोड़ कर देखा जाता है। कोब(Cobb), पोलार्ड (Pollard) आदि विद्वानों की माने तो भारत और रोम में गहरा व्यापारिक सम्बन्ध था और इन दोनों देशों में समुद्री मार्ग से व्यापार होता था, लाल सागर और हिन्द महासागर इस व्यापार में अहम् भूमिका निभाते थे। प्लीनी (Pliny) ने तथा टॉलमी (Ptolemy) ने भी इन दोनों देशों के मध्य के व्यापार को वृहत तौर पर लिखने का कार्य किया है।

शुरूआती दौर में यह माना जाता था की यह प्रतिमा मथुरा में बनी होगी परन्तु धावलीकर ने इसे बोगर्धन से सम्बंधित किया है जो की सातवाहन साम्राज्य का हिस्सा था। बोगर्धन से ऐसी ही दो प्रतिमाय प्राप्त हुयी थी जिसके आधार पर ही धवलीकर महोदय ने इसके स्थान के विषय में व्याख्या प्रदान की। सातवाहनों के अलावां पश्चिमी क्षत्रपों से भी इस क्षेत्र को जोड़ कर देखा जा सकता है। इस प्रतिमा पर खरोष्ठी में अभिलेख लिखित है, अब खरोष्ठी भाषा की बात करें तो यह अफ़ग़ानिस्तान (Afghanistan), पाकिस्तान (Pakistan) तथा भारत (India) के उत्तरी हिस्से में प्रयोग में लायी जाती थी ऐसी स्थिति में यह कहा जा सकता है की या तो इस प्रतिमा का निर्माण इसी क्षेत्र में हुआ होगा या फिर इस प्रतिमा को इस क्षेत्र में पहले लाया गया होगा जहाँ पर इस प्रतिमा पर लेख लिखे गए थे। इस प्रकार की प्रतिमा बौद्ध धर्म में बड़े पैमाने पर देखने को मिलती है जिसे की साँची व अन्य स्थानों पर देखा जा सकता है, उदाहरंस्वरूप शालभंजिका की प्रतिमा, यह प्रतिमा शालभंजिका की प्रतिमा से काफी हद तक सम्बंधित प्रतीत होती है। इस प्रतिमा को लक्ष्मी की प्रतिमा बुलाने में यह संदेह है क्यूंकि लक्ष्मी की प्रतिमाओं में प्रमुखतः कमल का अंकन किया जाता है जो इस प्रतिमा में देखने को नहीं मिलता है।

यक्ष या यक्षियों के विषय में यदि बात करें तो ग्राम देवताओं से ज्यादा सम्बन्ध रखते हैं, तथा इनको प्रकृति के साथ जोड़ कर देखा जाता है।

चित्र सन्दर्भ:
1. मुख्य चित्र में पोम्पेई लक्ष्मी की प्रतिमा को त्रिआयाम में दिखाया गया है। (Prarang)
2. दूसरे चित्र में पोम्पेई लक्ष्मी की प्रतिमा को शीर्ष से दिखाया गया है। (Wikipedia)
3. तीसरे चित्र में साँची स्तूप से प्राप्त देवी लक्ष्मी को दिखाया गया है। (Wikimedia)
4. चौथे चित्र में क्रमश: यक्ष मणिभद्र, प्रकृति में लिप्त यक्षी और यक्ष मुद्गरपानी को दिखाया गया है। (Prarang)
5. पांचवे चित्र में यक्ष देव कुबेर (जिन्हें खजाने का देवता भी खा जाता है) को दिखाया गया है। (Youtube)
6. अंतिम चित्र में गोमेध और अम्बिका की मूर्ति को दिखाया गया है। (Wikimedia)

सन्दर्भ :
1. https://en.wikipedia.org/wiki/Pompeii_Lakshmi
2. https://www.livehistoryindia.com/forgotten-treasures/2019/01/19/the-mystery-of-pompeii-lakshmi
3. https://www.ancientworldmagazine.com/articles/indian-figurine-pompeii/
4. https://en.wikipedia.org/wiki/Yaksha

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